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समाज में देशभक्ति एवं स्वाभिमान को जागृत करते हुए स्व राज्य से स्व तंत्र की ओर आगे बढ़ें

इतिहास इस बात का साक्षी है कि विश्व के जिन-जिन देशों में आक्रमणकारी शक्तियों ने वहां की संस्कृति को मिटाने का प्रयास किया समाज की जागृति के परिणामस्वरूप उन सभी जगहों पर स्व राज्य से स्व तंत्र का जागरण हुआ है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 10:49 AM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 10:50 AM (IST)
समाज में देशभक्ति एवं स्वाभिमान को जागृत करते हुए स्व राज्य से स्व तंत्र की ओर आगे बढ़ें
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर का प्रारूप। फाइल

शिवप्रकाश। छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में एकत्रित रामभक्त कारसेवकों ने गुलामी के प्रतीक विवादित ढांचे का ध्वंस कर दिया। यह ऐतिहासिक घटना भारत सहित समूचे विश्व को आश्चर्यचकित करने वाली थी। हिंदू समाज के मन में लंबे समय से यह पीड़ा थी कि उनके आराध्य देव के जन्मस्थान पर श्रीराम की महिमा के अनुरूप मंदिर नहीं है। इसी पीड़ा के परिमार्जन के लिए सैकड़ों वर्षों से श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष चल रहा था। देश में तमाम आस्थाओं से जुड़े संत समाज सहित सामान्य रामभक्त जनता की आहुति से यह यज्ञ पूर्ण हुआ।

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विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में चले इस आंदोलन की व्यापकता से देश परिचित ही है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह मुद्दा अपने निर्णायक पड़ाव पर पहुंचा। अब वहां भगवान श्रीराम की महिमा के अनुरूप भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है। हमारे देश पर 327 ई. पू. सिकंदर का आक्रमण हुआ था। उसके पश्चात अनेक बर्बर जातियां आक्रमणकारी के रूप में भारत आईं। इनमें यूनानी, तुर्क, डच, फ्रेंच, शक, हुण, कुषाण, पुर्तगाली, मंगोल आदि प्रमुख रहे। अंत में ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से अंग्रेज हमारे यहां व्यापार करने आए और समाज की कमजोरी के कारण यहां के शासक बन गए। अपने साम्राज्य को स्थापित करने के लिए इन सभी शक्तियों ने हिंसा एवं लूट का सहारा लिया। साथ ही इन सभी शक्तियों ने भारत के स्वाभिमान एवं आस्थाओं को कुचलने का कार्य किया।

देशभर में विखंडित असंख्य आस्था के प्रतीक इन प्रसंगों की याद दिलाते हैं। लगातार संघर्ष, कभी जय-कभी पराजय का दुष्परिणाम यह हुआ कि समाज अपना स्वाभिमान खोता गया। हिंदू समाज को उसके अतीत के गौरव को भुलाने के लिए बौद्धिक जगत में सुनियोजित षड्यंत्र भी हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वाभिमान  जागरण का जो कार्य होना चाहिए था, उसके स्थान पर गुलामी की मानसिकता से युक्त इतिहास शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा। माक्र्स एवं मैकाले पुत्रों का भारतीय समाज को भारतीयता से काटने का यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था।

भारत में विदेशी शक्तियों से पोषित जहां यह षड्यंत्र चल रहा था, वहीं समाज में स्वाभिमान जागरण के प्रयास भी उसी गति से चल रहे थे। अपनी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर से प्रेरणा लेकर अनेक व्यक्ति, समूह एवं संगठन इस दिशा में अग्रसर हुए। इन प्रयासों का ही परिणाम था कि स्वतंत्रता के आंदोलन का मूल मंत्र स्वधर्म, स्वभाषा एवं संस्कृति बनी। श्रीराम मंदिर का आंदोलन भी स्वाभिमान जागरण का ही उदाहरण है। सुप्त हिंदू समाज जैसे जैसे जागृत होकर स्व को खोजने का प्रयास कर रहा है, वैसे वैसे उसके मस्तिष्क में सभी घटनाएं स्वप्न के समान झंकृत हो रही हैं। इसको स्मरण आ रहा है कि किस प्रकार साम्राज्यवादी ताकतों ने उसके श्रद्धा स्थान, उसके महापुरुष एवं राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों के साथ व्यवहार किया। उसके स्वभाषा और स्वधर्म के लिए लड़ने वाले महापुरुषों को बौना एवं आक्रमणकारियों को आदर्श बनाने का प्रयास हुआ है। स्व का यह जागरण अब समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकट हो रहा है, जो होना अपेक्षित भी है।

इतिहास, विज्ञान, कला, गणित आदि सभी क्षेत्रों में यह भारतीयता का जागरण भी प्रकट हो रहा है। सोमनाथ का पुनरुद्धार, बंबई से मुंबई, मद्रास से चेन्नई, कलकत्ता से कोलकाता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रास द्वीप का नाम बदलकर सुभाष चंद्र बोस द्वीप, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम परिवर्तित कर रानी कमलापति, दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम डा. एपीजे अब्दुल कलाम रोड, अयोध्या को वैश्विक शहर का गौरव, दिव्य काशी भव्य काशी का विकास ये सभी स्वाभिमान जागरण के ही उदाहरण हैं। आयुर्वेद और योग की स्वीकृति भी इसी जागृति का परिणाम है।

विश्व के जिन-जिन देशों में आक्रमणकारियों ने वहां की संस्कृति एवं पहचान को मिटाने का प्रयास किया, समाज की जागृति से वहां भी इस स्व का जागरण हुआ है। इतिहास की अनेक घटनाएं हमको इसका स्मरण कराती हैं। अंग्रेजों ने श्रीलंका का नाम सीलोन कर दिया था। श्रीलंका सरकार ने 1972 में इसे पुन: श्रीलंका कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी को विभाजित कर दो भाग पश्चिमी एवं पूर्वी जर्मनी बना दिया था। बर्लिन में एक बड़ी दीवार खड़ी कर दी गई। नौ नवंबर 1989 को वहां की जनता ने उस दीवार को गिरा दिया। उपरोक्त समस्त उदाहरण अपने देश एवं विदेश में स्व जागरण की कड़ी में हुई अनेक घटनाओं में से ही कुछ हैं।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि साम्राज्यवादी ताकतों ने विश्व में जहां भी इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम दिया, उन सभी स्थानों पर समाज अपने स्व को लेकर खड़ा हुआ। समाज ने अपने प्रतिमान एवं श्रद्धा के स्थानों को खोजा। ये घटनाएं किसी धर्म एवं व्यक्ति के विरोध में न होकर स्व का स्वाभाविक प्रकटीकरण है। समाज में देशभक्ति एवं स्वाभिमान को जागृत करते हुए हम आजादी के अमृत महोत्सव में स्व राज्य से स्व तंत्र की ओर बढ़ें एवं अपने देश को विश्व में सुरक्षित, अग्रणी एवं आत्मनिर्भर बनाएं।

[राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री, भाजपा]


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