पुराने दौर से निकल ग्राहक से बनाया रिश्ता, बजट समझा; तैयार करा दिया ड्र्रेस
विश्वास जमाने के लिए गुणवत्ता युक्त कपड़ा सस्ता उपलब्ध कराने की सोच। दुकान के प्रोपराइटर अशोक मोतियानी कहते हैं किकस्टमर की डिमांड समझी और वेडिंग कलेक्शन की ओर कदम बढ़ाए। तो रास्ता बनता चला गया। कोरोना काल का दौर चला। ऐसे नाजुक दौर में लोगों ने रिश्ता बनाए रखा।
लखनऊ, जेएनएन। यह वह दौर था जब अधिकांश लोग पापलीन, छाल्टीन, पटरा, रूबिया और मारकीन का प्रयोग किया करते थे। ज्यादातर लोग कपड़ा लेकर दर्जी से सिलवाने की परंपरा पर ही विश्वास करते थे। टैरिलीन और टेरीकॉट उच्च वर्ग की पसंद हुआ करती थी। ऐसे में विश्वास जमाने के लिए गुणवत्ता युक्त कपड़ा सस्ता उपलब्ध कराने की सोची गई। मात्र 80 रुपये में बेहतरीन पैंट-शर्ट लोगों तक पहुंचाई गई। लोगों को अपनी बजट के मुताबिक कम दामों में कपड़ा मिलने लगा। विश्वास बढ़ने लगा तो कारोबार भी चढ़ने लगा। ग्राहक की प्राथमिकता बदली तो धीरे-धीरे बदलाव भी शुरू हुए।
वर्ष 1984 में गणेशगंज में दुकान को विस्तार देते हुए शोरूम बनाया गया। दुकान के प्रोपराइटर अशोक मोतियानी कहते हैं कि जब दुकान में बदलाव किया गया। ऐसे में दुकान के नाम की खोज शुरू हुई। कई नाम आए लेकिन तय नहीं हो पाया। एक दिन की बात है कि पारिवारिक बुजुर्ग राय दी कि नाम ऐसा हो रिश्ते स्थापित करे और अपनत्व का संकेत दे। राय बनीं तो उन्होंने नाम सुझाया छोटे भाई की छोटी दुकान। पूरी बाजार में सबसे अलग और रिश्ता बनाने वाला नाम जल्द ही लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। करीब एक दशक बाद ग्राहक स्थायित्व ढूंढने लगा। लोगों के बीच रिश्ता कायम करते हुए आगे बढ़ने लगे।अब यह नाम सबसे दिल-ओ-दिमाग पर है।
कस्टमर की डिमांड समझी और वेडिंग कलेक्शन की ओर कदम बढ़ाए। तो रास्ता बनता चला गया। सहालग शुरू हो रही है तो इस समय शेरवानी लेने वालों की भीड़ है। कोरोना काल का दौर चला। यह ऐसा समय था जब ग्राहक दुकान तो दूर घर से निकलने में भी गुरेज करता था। ऐसे नाजुक दौर में लोगों ने रिश्ता बनाए रखा। कार्ड से पेमेंट, ग्राहक के आने और जाने के बाद सैनिटाइजेशन की विशेष व्यवस्था से ग्राहकों में सेफ्टी का विश्वास जमा। अब कस्टमर फिर से साथ हैं।
कोरोना काल में कैश बिक्री रखी कम
कोरोना संक्रमण पीक पर था। ऐसे में ग्राहक के साथ स्टॉफ और खुद की सेफ्टी की चिंता थी। चूंकि अनलॉक में बाजार तो खुल गए थे। इसके बाद भी दुकान खोलने में तेजी न दिखाकर एक कार्ययोजना बना बिक्री सुनिश्चित कराने की दिशा में काम आगे बढ़ाया। इस काल में अधिकांश ग्राहकों के पास नगदी कम थी। ऐसे में कार्ड भुगतान को लेकर अलग-अलग बैंकों की पॉस मशीनें लगाईं। लोगों ने भी इसमें सहयोग किया। एक तो ग्राहक कम थे दूसरे कैश भुगतान को लोग ज्यादा तरजीह नहीं दे रहे थे। इसका नतीजा यह रहा कि करंसी कम आने लगी और लोगों को नोट गिनने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ी।
ग्राहकों को कराते हैं आज भी सुरक्षा का बोध
मोतियानी कहते हैं कि दुकान में प्रवेश करते ही ग्राहक के हाथों को सैनिटाइज किया जाता है। उसके बाद जहां वह बैठता है उस स्थान पर अलकोहल कंटेंट का प्रयोग किया जाता है। ग्राहक के जाने के बाद उस समूचे स्थान पर छिड़काव किया जाता है। हर दो घंटे बाद शोरूम का सैनिटाइजेशेन किया जाता है। इसी सेफ्टी का भरोसा उन्हें शो-रूम तक खींच लाता है।
बजट देख कपड़ों की अलग-अलग रेंज
आमतौर पर दुकानों में या तो बडे़ ब्रांड मिलते हैं या फिर सिर्फ रोजमर्रा वाले। हमारे प्रतिष्ठान ने ग्राहकों को खींचने के लिए बजट के मुताबिक खरीदारी की व्यवस्था बना रखी है। यानी पॉकेट देखकर व्यक्ति अपनी जरूरत का कपड़ा खरीद सकता है। यहां तक कि अगर ग्राहक को सूट जल्द तैयार कराना है तो अच्छे टेलर तत्काल फोन काल से शोरूम पहुंच कर नाप लेते हैं और तय समय पर छूट के साथ कपड़ा सिलकर उनतक पहुंचा देते हैं।
आकर्षक गिफ्ट आइटम भी देते हैं अलग पहचान
बाजार को देखते हुए कपड़ों के रेट यहां कम रखे गए हैं। इसके साथ ही ग्राहक को खरीद पर गिफ्ट आइटम भी तय किए गए हैं। 15 हजार की खरीद पर स्ट्राली सूटकेस समेत पांच चीजों को दिया जाता है। वहीं दस हजार खरीद पर बेल्ट और पर्स समेत पांच आइटम दिए जा रहे हैं। पांच हजार या इससे कम रुपयों का कपड़ा खरीदने वाले को भी चीजें दी जाती हैं।