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भाजपा के सामाजिक सम्मेलनों में पिछड़ों के मन का गुबार फूटा

पिछड़ों की कई मांगों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह कहना पड़ा कि सरकार आपकी मांगें पूरा करना चाहती है लेकिन, समाजवादी पार्टी ने अदालती दांव-पेंच से रोड़ा अटका रखा है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 10:47 AM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:47 AM (IST)
भाजपा के सामाजिक सम्मेलनों में पिछड़ों के मन का गुबार फूटा
भाजपा के सामाजिक सम्मेलनों में पिछड़ों के मन का गुबार फूटा

लखनऊ [आनन्द राय] । भाजपा ने पिछड़ी उप जातियों के सिलसिलेवार सम्मेलन में उनके मन की थाह ली तो जाट, गुर्जर समेत कई समाजों की टीस उभर गई। पिछड़ों के बूते भारी बहुमत से 2014 और 2017 का चुनाव जीत चुकी भाजपा अब उनकी ही कसौटी पर है। लोकसभा चुनाव से पहले अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं तो भरोसा हासिल करने की चुनौती भी बनी रहेगी। 

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जाटों को आरक्षण देने और एससी-एसटी एक्ट को लेकर फतेहपुर सीकरी के सांसद चौधरी बाबूलाल का गुस्सा अपने समाज के सम्मेलन में फूटा था। गुर्जर सम्मेलन में मुजफ्फरनगर जिले के विधायक अवतार सिंह भड़ाना अपने दिल का गुबार रोक नहीं पाये। पांच बार सांसद रह चुके भड़ाना ने कहा था कि अगर दलितों और पिछड़ों को सम्मान मिला होता तो भाजपा उपचुनाव में पश्चिम की दोनों सीटें नहीं हारती।

भड़ाना का कथन बानगी भर है। अन्य समाजों के नेता भी भाजपा को सजग करने का मौका नहीं चूके। हर समाज ने यह जताने की कोशिश की कि जब वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे तो पिछड़ों ने मोदी को सिर-आंखों पर बिठाया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई में हुए चुनाव की सफलता का भी पिछड़ों ने खूब श्रेय लिया।

पिछड़ों की गोलबंदी में केशव की अहम भूमिका

उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई में सात अगस्त से पिछड़ों के सम्मेलन का सिलसिला शुरू हुआ और सोमवार को मौर्य-कुशवाहा समाज के सम्मेलन तक चला। कई प्रमुख सम्मेलनों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए। समापन योगी ने ही किया। संगठन की सरपरस्ती में केशव मौर्य ने पिछड़ों की गोलबंदी में अहम भूमिका निभाई। पिछड़ों के कुल 21 सम्मेलन हुए।

डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय का कहना है कि इतने सम्मेलनों की अगुवाई करना, केशव मौर्य के खाते में महत्वपूर्ण रिकार्ड है। गौर करें तो प्रजापति, राजभर, नाई, अर्कवंशीय, विश्वकर्मा, पाल-बघेल, साहू-राठौर, लोध-राजपूत, भुर्जी, निषाद, हलवाई, जायसवाल-कलवार, स्वर्णकार, जाट, कुर्मी-पटेल, गिरी, चौरसिया, यादव, गुर्जर और मौर्य-कुशवाहा, दर्जी समाज के अलग-अलग प्रतिनिधियों को आमंत्रित कर भाजपा ने उनसे सीधा संवाद किया।

सर्वाधिक मुखर हुए जाट, गुर्जर और निषाद

निषाद, प्रजापति जैसे समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग ने जोर पकड़ लिया है तो जाट समाज ने खुद के लिए आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट के विरोध में आवाज उठा दी है। गुर्जर समाज को मंत्रिमंडल में एक भी स्थान न मिलने की टीस है। ऐसे ही और भी उपजातियों की अपनी अलग-अलग मांगें हैं। पिछड़ों की कई मांगों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह कहना पड़ा कि सरकार आपकी मांगें पूरा करना चाहती है लेकिन, समाजवादी पार्टी ने अदालती दांव-पेंच से रोड़ा अटका रखा है।

इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि इन सम्मेलनों में केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ों के बड़े नेता के रूप में उभरे और सम्मेलन में आये सभी समाजों ने उनकी अगुवाई पर मुहर लगाई। हालांकि भाजपा संगठन से जुड़े एक प्रमुख पिछड़े नेता का कहना है कि 'पिछले दो चुनावों में पिछड़ों ने भाजपा को बहुत मजबूती दी है। चुनाव से पहले उनकी मांगों को पूरा करने के लिए ठोस पहल करनी होगी।


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