विश्व धरोहर दिवसः जानें नवाबों की पुरानी राजधानी से नई तक निर्मित चारबाग शैली की इमारतें
यमुना नदी तट पर बसे आगरा हो या गोमती तट पर आबाद लखनऊ या फिर सरयू तट पर बसा फैजाबाद हो चारबाग शैली की इमारतों के नमूनों से भरे पड़े हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। यमुना नदी तट पर बसे आगरा हो या गोमती तट पर आबाद लखनऊ या फिर सरयू नदी तट पर बसी अवध के नवाबों की पुरानी राजधानी फैजाबाद हो चारबाग शैली की मुगल कालीन इमारतों और स्थापत्य कला के नमूनों से भरी पड़ी हैं। यही नहीं इन शहरों के आसपास के जिलों में इस तरह के प्रभाव के परिणाम देखने को मिलते हैं। आगरा में ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, बुलंद दरवाजा, लखनऊ में इमामबाड़ा, राजा महमूदाबाद की कोठी, रेजीडेंसी जैसी अनेक इमारते इसी शैली का उदाहरण पेश करती है।
बहू-बेगम के मकबरा ताजमहल की आभा
प्रेम का प्रतीक बना ताजमहल
ताजमहल चारबाग शैली का सर्वश्रेष्ठ निर्माण है। इसे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था। आगरा में बने ताजमहल पर हमेशा सैलानियों की भीड़ रहती है। कभी भीतर तो कभी लोग बाहर से ही दीदार कर प्रफुल्लित होते रहते हैं।फैजाबाद में नवाब शुजाउद्दौला की बेगम रहीं अम्मत-उज-जहरा की याद में बना मकबरा अपनी खूबसूरती और स्थापत्य कला के चलते देश के नक्शे पर खास पहचान रहता है। अवध क्षेत्र की खास धरोहरों में शुमार बहू-बेगम मकबरा देखने में आगरा के ताजमहल जैसी आभा बिखेरता है लेकिन रखरखाव के प्रति तंत्र की उदासीनता और अतिक्रमण से बेजार होने के कारण अपेक्षा के अनुरूप सैलानियों को सम्मोहित नहीं कर सका है।
दरबारी दराबअली ने शुरू कराया निर्माण
अवध के नवाब रहे शुजाउद्दौला की बेगम अम्मत-उज-जहरा के 1816 में इंतकाल के बाद उनकी याद में मकबरा शहर के मुजफरा नाका के पास स्थित जवाहरबाग में उनकी संपत्ति के रूप में छोड़े गए तीन लाख रुपये से बनवाया गया। ईरानी चारबाग शैली में बने मकबरे की तामीर 1818 में बेगम के खास दरबारी दराबअली ने शुरू कराई लेकिन नींव रखने के साथ ही उनका निधन हो गया तो बाकी का निर्माण कार्य बेगम के वकील पनाह अली और उनकी गोद ली बेटी के पुत्र मिर्जा हैदर ने पूरा कराया। लगभग एक दशक में निर्मित मकबरा तकरीबन पांच सौ एकड़ में लखौरी ईंटों की चहारदीवारी के मध्य स्थित है। बेगम को जहां सुपुर्द-ए-खाक किया गया था, वहीं मुख्य हिस्सा है। फैजाबाद-इलाहाबाद मार्ग पर स्थित मकबरा का गुंबद चौथी मंजिल पर है।
आश्चर्यचकित करता मेहराबों का कलात्मक निर्माण
वास्तु संरचना के नजरिए से मेहराबदार दरवाजों पर आलेखन, फूल-पत्तियों की आकृत्ति, कंगूरों की महीन पच्चीकारी, झरोखों एवं छोटे-छोटे मेहराबों का कलात्मक निर्माण देखने वाले कलाप्रेमियों को आश्चर्यचिकत कर देता है। बल्ब के आकार के मुख्य गुंबद, सांप के फन की तरह फूले नागपुष्प एवं गुंबद के ऊपरी हिस्से पर धातुनिर्मित मोर की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसके ऊंचे स्थान से पूरे फैजाबाद शहर का ²श्य देखा जा सकता है। यह परिसर अब भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और शिया बोर्ड समिति इसका प्रबंधन देखती है, लेकिन सरकारी तंत्र की अनदेखी के चलते अतिक्रमण ने इसकी भव्यता छीन ली है और प्रचार-प्रसार की कमी ने सैलानियों को दूर कर रखा है।
नई पीढ़ी को लुभाती बाग की खूबसूरती
नवाब शुजा-उद्-दौला के स्थापित जवाहरबाग में पेड़-पौधे कि यहां आने वाला हर कोई सम्मोहित रहता। ताड़ के विशालकालय पेड़ और सैकड़ों के किस्म के छोटे-बड़े छायादार, शोभादार, सु्गंधित एवं खूबसूरत फूलों के पेड़-पौधे पूरे परिसर में हरियाली के सबब बने हुए हैं। महापौर ऋषिकेश उपाध्याय ने बताया कि बहू बेगम मकबरा अयोध्या नगर निगम की धरोहर है। पर्यटकों को इसकी ओर आकर्षित करने के लिए नगर निगम अपने स्तर से हर संभव प्रयास करेगा। पुरातत्व विभाग एवं शिया वक्फ बोर्ड के सहयोग से विशेष योजना बनाई जाएगी। इसमें प्रचार-प्रसार के कार्यक्रम भी शामिल होंगे।
जानें चारबाग शैली
चारबाग शैली में बाग का एक खाका होता है। एक वर्गाकार बाग को चार छोटे भागों में, चार पैदल पथों द्वारा बाँटा जाता है। फारसी में, हिन्दी समान ही चार अर्थात चार एवं बाग अर्थात बागीचा होता है। ताजमहल इसी शैली का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। अधिकतर मुगल मकबरों के बाग इसी शैली में बने हैं। इसके हरेक बाग में चार फूलों की बडी़ क्यारियाँ हैं। चारबाग का मूल फारस के एकाएमिनिड साम्राज्य कालीन है। यूनानी इतिहासकार हेरोडॉटस एवं जेनोफोन इसका व्यापक विवरण देते हैं, जो कि सायप्रस की राजसी नगरी, पासारगडे में बने थे। भारत में शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया। यहाँ इस शैली का उपयोग बहुत ही खूब है। अन्य ऐसे उदाहरणों से पृथक ताजमहल चारबाग के मध्य में ना होकर इसके उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस बाग में मोरपंखी के पेड़ लगे हैं। साथ ही फलों के पेड़ भी दिखाई देते हैं।