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Budget 2021-22: सुनिए वित्तमंत्री जी... कोरोना से बीमार यूपी के छोटे उद्योग, चाहिए सुधारों की 'डोज'

पंजीकृत और गैर पंजीकृत मिलाकर करीब 90 लाख एमएसएमई इकाइयों वाले यूपी ने कोरोना के गंभीर संकट में खुद को संभालने की भरसक कोशिश की है लेकिन अंदरूनी कमजोरी रफ्तार बढ़ाने का हौसला नहीं दे रही। ऐसे में केंद्रीय बजट में सुधारों का डोज चाहिए।

By Umesh Kumar TiwariEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 06:52 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2021 07:08 AM (IST)
Budget 2021-22: सुनिए वित्तमंत्री जी... कोरोना से बीमार यूपी के छोटे उद्योग, चाहिए सुधारों की 'डोज'
सबसे अधिक एमएसएमई इकाइयों वाले उत्तर प्रदेश को इस बार केंद्रीय बजट से बड़ी उम्मीदें हैं।

लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के सपने को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश यदि एक ट्रिलियन की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेते हुए आगे आया है तो उसके पीछे ताकत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम (एमएसएमई) उद्योग क्षेत्र की ही है। पंजीकृत और गैर पंजीकृत मिलाकर करीब 90 लाख एमएसएमई इकाइयों वाले यूपी ने कोरोना के गंभीर संकट में खुद को संभालने की भरसक कोशिश की है, लेकिन अंदरूनी कमजोरी रफ्तार बढ़ाने का हौसला नहीं दे रही। ऐसे में केंद्रीय बजट में सुधारों का डोज चाहिए। खास तौर पर एमएसएमई में से ही सूक्ष्म और लघु इकाइयों के लिए मध्यम से अलग प्रोत्साहन की जरूरत महसूस की जा रही है।

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औद्योगिक सुधार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए जा रहे लगातार प्रयास ही उद्योगों की बजट से उम्मीदों को बल भी दे रहे हैं। दरअसल, अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले एमएसएमई क्षेत्र को बाजार में सिमट चुकी उत्पादों की मांग ने वर्तमान और निकट भविष्य को संकट में डाल दिया है। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज कुमार कहते हैं कि उद्योगों को दरकार तो बहुत है, लेकिन सरकार बजट में कुछ प्रविधान करते हुए भी बड़ा सहारा दे सकती है।

आइआइए के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज कुमार कहते हैं कि एमएसएमई में पचास करोड़ रुपये वार्षिक टर्नओवर तक लघु, उससे नीचे सूक्ष्म और 250 करोड़ रुपये तक मध्यम उद्योगों को रखा गया है। यह अंतर बहुत ज्यादा है। ऐसे में एमएसएमई के सरकार की कोई प्रोत्साहन योजना समान रूप से सभी श्रेणियों को लाभान्वित नहीं कर पाती। सूक्ष्म और लघु की अपनी समस्याएं-जरूरतें हैं। इसके अलावा बाजार में मांग नहीं है। ऐसे में सरकार की 25 फीसद सरकारी खरीद एमएसएमई से किए जाने की नीति है, लेकिन इस प्रोक्योरमेंट पॉलिसी का लाभ भी तुलनात्मक रूप से सक्षम मध्यम श्रेणी की इकाइयों को मिलता है।

पंकज कुमार कहते हैं कि सरकार को सूक्ष्म और लघु उद्योग के लिए उनकी स्थिति के अनुसार मदद देनी चाहिए। इसके अलावा आइआइए ने मुद्दा उठाया है कि प्रत्यक्ष कर में तीस फीसद वाले बड़े स्लैब में आने वाले उद्योगों का टैक्स घटाकर 22 फीसद कर दिया है, लेकिन उसमें प्राइवेट लिमिटेड को ही रखा है, जबकि अधिकांश छोटे उद्योग प्रोपराइटरशिप या पार्टनरशिप वाले हैं। उन्हें भी इसमें शामिल करना चाहिए।

खाद्य प्रसंकरण उद्योग को मिले प्रोत्साहन : एसोचैम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अध्यक्ष विजय आचार्य का कहना है कि उत्तर प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए बहुत संभावनाएं हैं। सरकार इसे बढ़ाना भी चाहती है। बेहतर हो कि बजट में इसके लिए अलग से कुछ वित्तीय प्रविधान किया जाए। साथ ही बेरोजगारी के संकट को दूर करने के लिए स्टार्टअप योजना को भी और आर्थिक प्रोत्साहन की जरूरत है। वहीं, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज यूपी चैप्टर के को-चेयरमैन कहते हैं कि सरकार ने उद्योगों को लोन दिलाने की योजना तो बनाई हैं, लेकिन कोरोना काल में तमाम इकाइयों की वित्तीय स्थिति ऐसी हो कि वह बैंकों के नियम-मानकों को पूरा नहीं कर सकतीं। ऐसे में कुछ संशोधन इस दिशा में भी करने होंगे।


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