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पतंगबाजी की परपंरा पर चाइनीज मांझे का कलंक, लखनऊ में प्रतिबंधित मांझा बेचने वालों का बहिष्कार

पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी जयंती के अवसर पर पतंगबाजों की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि के साथ पुलिस प्रशासन से आम पतंग के कारोबारियों और उड़ाने के शौकीनों ने ऐसे अभियान में उनका साथ देने की बात कही है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 26 Dec 2020 06:05 AM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2020 09:24 AM (IST)
पतंगबाजी की परपंरा पर चाइनीज मांझे का कलंक, लखनऊ में प्रतिबंधित मांझा बेचने वालों का बहिष्कार
भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी को दी श्रद्धांजलि।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। मानवर, लच्छेदार, तौकिया, दो पन्नी, चर खनिया, आड़ी, मझोली, सवा की तीन, पौना व गेंददार। ये नाम शहर-ए-लखनऊ की पतंगों का है। आसमानी जंग में अपनी अदाओं से लाेगों को अपनी ओर खींचने वाली इन पतंगों पर चाइनीज मांझे का कलंक लग गया है। पतंगबाजी के शौकीन जहां इस कलंक से परेशान हैं तो इनके कारोबारी ऐसे मांझे को बेचने वालों का बहिष्कार कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर इस परपंरा को बचाने की जुगत में सभी पसीना बहा रहे हैं।

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पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी जयंती के अवसर पर पतंगबाजों की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि के साथ पुलिस प्रशासन से आम पतंग के कारोबारियों और उड़ाने के शौकीनों ने ऐसे अभियान में उनका साथ देने की बात कही है तो दूसरी ओर आम कारोबारियों का सहयोग करने की विनती भी की है तो इस काले कारोबार में लिप्त हैं। अब्दुल हमीद की अध्यक्षता में वजीरगंत में हुई बैठक में उपाध्यक्ष गुरुदत्त, कोषाध्यक्ष देवेंद्र कुमार संरक्षक अमित जैन, नीरज रस्तोगी , उमेश कुमार व संदीप शर्मा समेत कई पतंग के शौकीन शामिल हुए।

ऑनलाइन आ रहा है चाइनीज मांझा

राजधानी में पतंग व्यापार मंडल के अध्सक्ष अब्दुल हमीद ने बतायाकि शहर में चाइनीज मांझा नहीं बिकता है, इसके बावजूद आम दुकानदारों को उसी नजर से देखा जाता है। हम सब चाइनीज मांझे को बेचने वालों का विरोध करते हैं। बड़ी ऑनलाइन कंपनियां इसका कारोबार करती हैं। नासमझ युवा इसका प्रयोग कर लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे मांझे की बिक्री पर भी रोक लगनी चाहिए।

बरेली मेंं मांझा और राजधानी में बनती है पतंग

राजेंद्रनगर काइट क्लब के उमेश शर्मा ने बताया कि वैसे तो अपने शहर में भी पतंग के मांझे बनते हैं, लेकिन बरेली के मांझे की बात ही अलग है। डोर में लगने वाला केमिकल खास होता है, जबकि, पतंग लखनऊ की पसंद की जाती है। शहर में कारीगर के नाम पर पतंगों की मांग होती है। हमेशा की तरह इसबार भी लखनऊ की पतंग और बरेली का मांझे की मांग सबसे ज्यादा है। क्लब के सचिव अमर नाथ कौल ने बतायाकि हर शौकीन पतंगबाजों को बरेली का मांझा ही पंसद आता है। पुराने शहर के वजीरबाग के दरीवाला, सआदतगंज के बीबीगंज, मोनीपुरसा व हुसैनगंज सहित कई इलाकों में चल रहे छोटे-बड़े कारखानों में पतंग तैयार होती हैं। कई घरों में भी महिलाएं व पुरुष पतंग बनाने का काम कर रहे हैं। पतंग हाथ से बनती है तो हर दिन 100 से 200 बड़ी पतंग ही एक स्थान पर बन पाती हैं। 15 से 50 रुपये में बड़ी पतंग बिकती हैं।

पुलों पर लगे तार तो रुकेगी दुर्घटना

राजेंद्रनगर के पतंगबाज संदीप शर्मा बताते हैं कि पेंच लड़ाने के साथ ही लूटी पतंग की बात ही कुछ और है।

खरीदकर पतंग उड़ाने से इतर लूटी पतंग उड़ाने का मजा ही कुछ अलग होता है। सरकार को पुलों पर तार बांधकर घटनाओं को रोक सकती है। पतंग कारोबारी नीरज रस्तोगी व विवेक अग्रवाल ने बताया कि कटी पतंग लूटने वाले का जलवा होता है। पतंग भले ही लूट में फट जाए, लेकिन जिसके हाथ लगती है, उसका सब सम्मान भी करते थे। दीपावली के दूसरे दिन में पतंग उड़ाने की सदियोें पुराना चलन चला आ रहा है। महापुरुषों के चित्रों वाली पतंग भी हम सब बनाकर समाज को जागरूक करते हैं। जोगिंदर सिंह व जफर अहमद पतंगबाजी तीन दशक से कर रहे हें, लेकिन पार्क के अलावा कहीं पतंग नहीं उड़ाते।


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