यूपी में राज्यसभा की दसवीं सीट पर भी दांव खेल सकती भाजपा
प्रदेश से दस सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो रही है। भाजपा के हिस्से में आठ और सपा के हिस्से में एक सीट तय है लेकिन, भाजपा दसवीं सीट पर भी दांव खेल सकती है।
लखनऊ [आनन्द राय]। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उप चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन दिया तो इसके निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी भी इसको लेकर अतिसक्रिय हो गई है। प्रदेश से दस सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो रही है। सहयोगी दल समेत भाजपा के हिस्से में आठ और सपा के हिस्से में एक सीट तय है लेकिन, दसवीं सीट पर किसी का स्पष्ट बहुमत न होने से मामला रोमांचक हो सकता है। भाजपा दसवीं सीट पर भी दांव खेल सकती है।
सहयोगी दलों समेत भाजपा के पास 325 विधायक हैं, जबकि सपा के पास 47, बसपा के पास 19, अपना दल (सोनेलाल) के पास नौ, कांग्रेस के पास सात और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पास चार विधायक हैं। शेष निर्दल हैं। राज्यसभा के एक सीट के लिए 40 विधायकों के मत की जरूरत होगी। रविवार को गोरखपुर और फूलपुर में बसपा कोआर्डिनेटरों ने सपा उम्मीदवारों को समर्थन देने की घोषणा की तो तत्काल उसके तार राज्यसभा चुनाव से जुड़ गए। प्रदेश में बसपा के पास राज्यसभा में जाने भर विधायकों की संख्या नहीं है, इसलिए बसपा प्रमुख मायावती या उनके भाई आनन्द कुमार के लिए समाजवादी पार्टी का समर्थन मुफीद हो सकता है। बसपा ने इस बाबत पत्ते नहीं खोले हैं क्योंकि सपा के समर्थन के बावजूद उसको दर्जन भर से अधिक विधायकों की जरूरत होगी। ऐसे में कौन इनके लिए खेवनहार होगा, अभी कह पाना मुश्किल है। पर, इतना जरूर है कि अंदरखाने खिचड़ी पकने लगी है। भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा व अपना दल तथा कांग्रेस के विधायकों पर सबकी नजर टिक गई है।
भाजपा 2016 में कर चुकी प्रयोग
उपचुनाव में भाजपा की राह रोकने के लिए सपा के साथ बसपा ने कदम बढ़ा दिया तो भाजपा भी राज्यसभा में उसके लिए रोड़ा बन सकती है। संख्या बल न होने के बावजूद भाजपा 2016 के राज्यसभा चुनाव में इस तरह का प्रयोग कर चुकी है। तब भाजपा के पास 50 से भी कम विधायक थे। केंद्रीय मंत्री शिवप्रताप शुक्ल भाजपा के इकलौते उम्मीदवार थे लेकिन, दूसरी सीट पर निर्दल प्रीति महापात्रा को समर्थन देकर उसने कांग्रेस के कपिल सिब्बल की राह कठिन कर दी थी।
इस बार चुनाव में भाजपा दूसरे दलों के बागियों और संपर्क में रहने वाले विधायकों की मदद ले सकती है। पिछले राज्यसभा चुनाव में भाजपा के प्रभाव में दूसरे दलों के कई विधायकों ने प्रीति महापात्रा को वोट किया और उनमें कई विधानसभा चुनाव में भाजपा का टिकट हासिल करने में कामयाब हुए। अब माना यही जा रहा है कि दूसरे दलों के कुछ विधायकों को भाजपा लोकसभा में मौका दे सकती है और वह भाजपा के इशारे पर अपना वोट दे सकते हैं। अगर भाजपा ने 2016 का प्रयोग दोहराया तो सपा-बसपा गठबंधन की राह कठिन होगी।
भाजपा का जातीय समीकरण पर भी जोर
राज्यसभा चुनाव में भाजपा किसे उम्मीदवार बनाएगी, अभी इस पर कयास चल रहे हैं। अमित शाह की कार्यकारिणी के महामंत्री अनिल जैन व अरुण सिंह और सुधांशु त्रिवेदी से लेकर राम माधव और डॉ. रजनी सरीन समेत कई नामों की चर्चा है। 2019 की मुहिम को देखते हुए यह भी तय है कि भाजपा राज्यसभा में दलितों और पिछड़ों को भी प्रतिनिधित्व देगी। दलितों में प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर, जुगल किशोर, पूर्व डीजीपी बृजलाल, दुष्यंत गौतम, कांता कर्दम और रमेश चंद्र रतन समेत कई प्रमुख नाम हैं।
पिछड़ों में प्रदेश महामंत्री अशोक कटारिया, पूर्व एमएलसी बृजभूषण कुशवाहा के नाम चर्चा में हैं। यादव बिरादरी से किसी प्रमुख नेता को मौका मिल सकता है। राज्यसभा उम्मीदवारों के संदर्भ में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, संगठन महामंत्री सुनील बंसल की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से चर्चा हो चुकी है और अभी फिर इस पर चर्चा होनी है। मोदी और शाह के अनुमोदन के बाद ही नामों पर मुहर लगेगी।