अति पिछड़ों को साधने की राह पर संभल कर बढ़ रही भाजपा
हाईकोर्ट के निर्देश पर 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र देने का शासनादेश जारी कर भाजपा ने अति पिछड़ों को साधने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया है।
लखनऊ, जेएनएन। हाईकोर्ट के निर्देश पर 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र देने का शासनादेश जारी कर भाजपा ने अति पिछड़ों को साधने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया है। हालांकि दलितों और पिछड़ों के लिए तय अलग-अलग आरक्षण की गणित में उलझे इस मुद्दे को परवान चढ़ाकर वह अपना सियासी लक्ष्य किस हद तक साध पाती है, यह देखने वाली बात होगी। अपने सियासी फायदे को देखते हुए 17 अति पिछड़ी जातियों को साधने के लिए समय-समय पर सपा-बसपा भी दांव चलती रहीं हैैैं।
पेचीदा है मामला
शनिवार को सूबे की राजधानी में मौजूद केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले इस मुद्दे की पेचीदगी की ओर इशारा कर गए। यह कहते हुए कि यदि सरकार अति पिछड़ों को अनुसूचित जाति में शामिल करना चाहती है तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए तय आरक्षण में पांच फीसद की कटौती कर दलितों के आरक्षण के लिए तय सीमा को उतना और बढ़ाए ताकि अति पिछड़ों की आमद से दलितों को नुकसान न हो। एनडीए की सहयोगी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अठावले का यह कथन इस बात का संकेत है कि अति पिछड़ों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा दोधारी तलवार भी साबित हो सकता है।
सहयोगी भी उठाते रहे सवाल
खुद योगी सरकार के पूर्व व मौजूदा सहयोगी भी इस मुद्दे पर अलग-अलग तरीके से अपनी दलीलें देते रहे हैं। भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने तो कई मौकों पर आपत्ति दर्ज करायी है कि जातियों की सामाजिक-आर्थिक गणना किए बिना आरक्षण में बंटवारे का फार्मूला लागू करना ठीक नहीं होगा। वहीं योगी सरकार से बर्खास्त किये गए पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर इस मुद्दे पर पिछड़ों के आरक्षण में बंटवारे की मांग करते रहे हैैं। उन्होंने राजभर समेत कई अति पिछड़ी जातियों की खातिर ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसद आरक्षण को तीन श्रेणियों में बांटने का एक फार्मूला सुझाया था लेकिन वह कारगर नहीं हो पाया।
राजभर ने लगाया आरोप
अब शासनादेश जारी होने पर ओम प्रकाश राजभर ने ट्वीट कर भाजपा पर आरोप लगाया हैै कि यदि 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की उसकी जरा भी मंशा होती तो 26 अप्रैल 2015 को राज्यसभा में लाये गए प्राइवेट मेंबर बिल का उसने विरोध न किया होता। अपने एक और ट्वीट में उन्होंने आरोप लगाया हैै कि सरकारी तंत्र के माध्यम से भाजपा की केंद्र व प्रदेश सरकारें 17 अति पिछड़ी जातियों के साथ सिर्फ छलावा व वोट की राजनीति करने का काम कर रही हैं।
शासनादेश के बावजूद आशंकाएं
यह बात और है कि जातियों के जाल में उलझे इस मुद्दे पर कदम आगे बढ़ाने के बाद भी भाजपा खुलकर इसका श्रेय नहीं ले पा रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जाटव के अलावा दूसरी दलित जातियों ने भाजपा को समर्थन दिया है। कोरी, वाल्मीकि, धानुक, पासी, खटिक, आदि जातियां भाजपा के पीछे खड़ी रही हैं। 17 नई जातियों के अनुसूचित जाति के कोटे में शामिल होने से उनके लिए मौके कम हो सकते हैं और वे इसका विरोध कर सकते हैं। यही वजह हैै कि योगी सरकार ने कोर्ट का स्थगनादेश हटने के बाद चुपचाप आदेश तो जारी कर दिया लेकिन खुलकर इसका श्रेय नहीं ले पा रही हैं।