दिग्गजों के महामुकाबलों का साक्षी रहा लखनऊ, आज भी बरकरार भाजपा की छाप
1991 चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा का झंडा लहराया था। 2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को भारी मतों से दी थी शिकस्त।
लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। लंबे समय तक अटल बिहारी वाजपेयी की पहचान रही लखनऊ संसदीय सीट पर आज भी भाजपा की छाप है। 1991 से भाजपा ने इस सीट को अपने ही कब्जे में रखा है। यह सीट इस लिहाज से भी वीआइपी है क्योंकि इसे अटल की कर्मभूमि माना जाता है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस सीट से सांसद हैं और अगला चुनाव भी उन्हीं को लड़ना है। उमराव जान जैसी फिल्म बनाने वाले फिल्मकार मुज्जफर अली, फिल्म अभिनेता राजबब्बर भी लखनऊ से जोर-अजमाइश कर चुके हैं। कांग्रेस ने तो अटल बिहारी वाजपेयी को हराने के लिए कश्मीर से डॉ. कर्ण सिंह को आयात किया था। मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे नेता भी लखनऊ से सांसद बने थे। प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी भी यहां ताल ठोक चुके हैं।
वर्ष 2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार रही प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी को भारी मतों से हराया था। राजनाथ को 5,61,106 मत तो रीता को 2,88,357 मत मिले थे। हालांकि विधानसभा चुनाव में रीता जोशी ने भाजपा का दामन थाम लिया और योगी सरकार में वे मंत्री हैं। अतीत में जाएं तो लखनऊ की सीट पर भाजपा का वर्ष 1991 के बाद से ही कब्जा है। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने सीट को जनता दल के मंधाता सिंह से छीना था और फिर वह वर्ष 2004 तक लखनऊ से सांसद के साथ ही प्रधानमंत्री भी रहे। वर्ष 1989 में जनता दल के मंधाता सिंह ने लखनऊ सीट पर जीत हासिल की थी।
इससे पूर्व लखनऊ सीट पर कांग्रेस का परचम लहराता रहा था। कांग्रेस की शीला कौल 1971, 1980 और 1984 में लखनऊ से सांसद चुनी गईं, तो 1977 के चुनाव में बीएलडी से हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस की शीला कौल को चुनाव हराकर संसद में पहुंचे थे। थोड़ा और पीछे जाएं तो अटल बिहारी वाजपेयी को 1957 और 1962 का चुनाव हारना पड़ा था। 1957 में भारतीय जनसंघ के बैनर पर चुनाव में उतरे अटल बिहारी वाजपेयी को कांग्रेस उम्मीदवार पुलीन बिहारी बनर्जी से पराजित होना पड़ा था। पुलीन बिहारी को 69,519 मत और अटल को 57,034 मत मिले थे, तो 1962 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बीके धवन को 1,16,637 और अटल को 86,620 मत मिले थे।
ढलती उम्र के साथ 2004 का चुनाव लड़ने के बाद राजनीति से तौबा करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि को उनके खास माने जाने वाले लालजी टंडन ने संभाला था। अटल की खड़ाऊं के सहारे टंडन 2009 में संसद पहुंचे थे। वर्ष 2014 के चुनाव में लालजी टंडन से यह सीट राजनाथ सिंह की झोली में चली गई।