अब कड़ाही के 'काले तेल' से बनेगा बायो डीजल
सरोकार-स्वस्थ समाज: बायो डीजल के लिए तेज हुईं कोशिशें। खुले तेल के रूप में बिक रहे हानिकारक खाद्य तेल पर लगेगा अंकुश।
लखनऊ[रूमा सिन्हा]। क्या आपने कभी हलवाई के यहां पूड़ी-कचौड़ी या नमकीन तले जाने वाले कड़ाहे पर नजर डाली है? बार-बार इस्तेमाल से यह तेल काला हो जाता है। ऐसा तेल सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है। घरों में तो यह तेल थोड़ी मात्रा में निकलता है, लेकिन देश में हर साल लाखों मीट्रिक टन खराब तेल निकलता है, जिसे बाजार में 'खुला तेल' कहकर बेच दिया जाता है। होटल, रेस्टोरेंट, कैटरर्स, हलवाई आदि आधी कीमत में मिलने वाले इस तेल का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं। इस तेल का टोटल पोलर कंपाउड (टीपीसी) 25 फीसद से कहीं अधिक होता है जो इसे जहरीला बना देता है। ऐसे तेल से बना खाना सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है। यहां तक कि कैंसर जैसे रोगों का बड़ा कारण माना जाता है, लेकिन अब इस तेल का इस्तेमाल बायो डीजल बनाने में प्रयोग किया जाएगा। उम्मीद है कि अगले छह से आठ माह में लखनऊ-कानपुर में बायो डीजल इकाई शुरू हो जाएगी।
दरअसल, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) का रवैया काफी सख्त हुआ है। बीती एक जुलाई को एफएसएसएआइ ने कानून बनाते हुए इस पर पाबंदी लगा दी है कि पैकेज्ड फूड कंपनियां, होटल या फूड चेन चलाने वाले किसी भी स्थिति में 25 प्रतिशत से अधिक टीपीसी के ऑयल का प्रयोग नहीं कर सकेगे। उ.प्र. राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड के स्टेट को आर्डीनेटर व सदस्य संयोजक पीएस ओझा बताते हैं कि कानून बन जाने के बाद ऐसे तेल की खुली बिक्री पर काफी हद तक रोक लग सकेगी। उनका कहना है कि इस कानून के जरिए ऐसे खुले तेल को जहां से यह बड़े पैमाने पर निकल रहा है वहीं पर रोक लग सकेगी। जाहिर है कि बाजार में भी इसकी उपलब्धता आसान नहीं रह जाएगी। यही नहीं एफएसएसएआइ ने विदेशों से आयात किए जाने वाले यूज्ड ऑयल पर भी 21 अगस्त से रोक लगा दी है। इससे बाहर से मंगाए जाने वाला तेल भी आना बंद हो जाएगा। उन्होंने बताया कि राजस्थान व छत्तीसगढ़ ने इसमें अच्छा काम किया है और अब प्रदेश में भी गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। ओझा बताते हैं कि वर्तमान में तेल कंपनियों को दस प्रतिशत बायो ऑयल मिलाने के नियम हैं। जल्द ही इसे बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में खाद्य तेलों से बनाए जाने वाले बायो डीजल का भविष्य काफी अच्छा है।
कोशिशें रंग लाई:
बायोडीजल एसोसिएशन ऑफ इंडिया व बायो फ्यूल डेवलपमेंट बोर्ड के सदस्य संदीप चक्रवर्ती बताते हैं कि वर्ष 2013 से इस बात के प्रयास किए जा रहे थे। एफएसएसएआइ ने बीती एक जुलाई को कानून बनाकर बाजार में खुले तेल के रूप में बिक रहे जहर को रोकने की कोशिश की है। वह कहते हैं कि समस्या कितनी विकराल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में हर साल दो लाख 25 हजार मीट्रिक टन वनस्पति तेल का प्रयोग किया जाता है। इसमें से 40 प्रतिशत यानी करीब 90 लाख लीटर ऑयल पैकेज्ड फूड कंपनिया, होटल, बड़ी-बड़ी कैंटीन आदि में इस्तेमाल किया जाता है। इसका 30 फीसद जो कि लगभग 2.7 लाख मीट्रिक टन टीपीसी 25 फीसद से अधिक होने के कारण बेकार हो जाता है। चक्रवर्ती बताते हैं कि इससे 3.1 मिलियन किलो लीटर बायो ऑयल हर साल तैयार किया जा सकता है जिसकी बाजार में कीमत करीब 18 हजार करोड़ रुपये आंकी गई है। वह कहते हैं कि जो 60 फीसद खाद्य तेल घरों में प्रयोग होता है उसके लिए भी आगे प्रयास करने होंगे। वजह यह है कि नाली-नालियों के जरिए यह तेल एसटीपी, व पानी शोधन करने वाले प्लांट को चोक करने के साथ नदियों को दूषित करता है। बड़ी संख्या में रोजगार सृजित होंगे :
वह कहते हैं कि बायो डीजल बनाने लिए जगह-जगह से तेल एकत्र किया जाएगा। इसके लिए टेक्नोलॉजी विकसित की गई है। यह कार्य एक एप के जरिए होगा। इसकी शुरुआत चार सितंबर से गुजरात में की जा रही है। इसके बाद लखनऊ, कानपुर सहित सभी बड़े शहरों में की जाएगी। तेल इकठ्ठा करने व अन्य कार्यो के लिए करीब 87 हजार लोगों की जरूरत होगी अर्थात रोजगार के अवसर सृजित होंगे। दस लीटर से लेकर 25 लीटर क्षमता के कार्गो से तेल एकत्र कर उसी समय भुगतान कर दिया जाएगा।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान निदेशक डॉ.आलोक धावन कहते हैं कि तेल को दो बार से अधिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। खासतौर से मांसाहारी भोजन बनाने के बाद बचे तेल में हेक्टोसाइक्लिक अमीन की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। इसके अलावा बार-बार फ्राई करने के बाद बचे तेल में पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) की मात्रा काफी बढ़ जाती है जो कैंसर का मुख्य कारक माना जाता है।