KGMU : बायो-बैंकिंग जल्द, जीनोमिक और मॉलीक्यूलर मेडिसिन बनाने में मिलेगी मदद
कलाम सेंटर में करंट ट्रेंड इन जीनोमिक एंड मॉलीक्यूलर मेडिसिन पर आयोजित हुई कार्यशाला। मरीजों के टिश्यू से डीएनए-आरएनए किए जाएंगे प्रीजर्व।
लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू में जल्द ही बायो-बैंकिंग की शुरुआत की जाएगी। इसके तहत संस्थान में जांच के लिए आने वाले मरीजों के टिश्यू से आरएनए और डीएनए को प्रीजर्व किया जाएगा। इससे आगे बीमारी के हिसाब से जीनोमिक और मॉलीक्यूलर मेडिसिन बनाने में मदद मिलेगी। मॉलीक्यूलर रिसर्च विभाग में सेटअप शुरू किया जाएगा। यह जानकारी डॉ.नीतू सिंह ने कलाम सेंटर में आयोजित करंट ट्रेंड इन जीनोमिक एंड मॉलीक्यूलर मेडिसिन पर आयोजित कार्यशाला में दी।
डॉ.सिंह ने बताया कि बीमारियों के इलाज और उनके लिए नई दवाएं बनाने की संभावनाओं को तलाशने के लिए जरूरी है कि टिश्यू के आरएनए और डीएनएन की जीनोमिक और मॉलीक्यूलर स्टडी की जाए। इसके लिए मरीजों के ब्लड और टिश्यू सैंपल लिए जाएंगे। आरएनए और डीएनए को पांच से 10 साल तक प्रीजर्व किया जा सकता है। इसका लाभ मरीजों को भी मिल सकेगा, जिसमें यह पता चल सकेगा कि सर्जरी के बाद इलाज कितना प्रभावी होगा। बैंकिंग के लिए क्रायो-बायो मशीन मंगाई जा रही है। पहले डेमो मॉडल रखा जाएगा।
देश में भी शुरू हो इंटरनेशनल जीन प्रोजेक्ट
यूएस में इंटरनेशनल हंड्रेड थाउजेंड जीनोम प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें मरीजों के जीन पर स्टडी हो रही है। इसी तर्ज पर देश में भी जीन स्टडी होनी चाहिए, जिससे कॉर्डियोवेस्कुलर और कैंसर जैसी बीमारियों के लिए नई संभावनाएं तलाशी जा सकेंगी। वहीं किसी भी तरह के बीमारी फैलाने वाले जीन को भी ढूंढ़ा जा सकेगा।
एक दवा से दूसरी बीमारी का भी हो सकता है इलाज
डॉ.नीतू ने बताया कि एक नई दवा बनने में कम से कम 10 वर्ष का समय लगता है। इसलिए मौजूदा दवा में जीनोमिक स्टडी की जाए, जिससे एक दवा से अगर किसी दूसरी बीमारी का इलाज भी हो सकता है तो उसका इस्तेमाल किया जा सके।