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SP clash: अब चुनाव आयोग बताएगा साइकिल चुनाव चिह्न किसका

चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी विवाद पर सुनवाई करेगा। चुनाव चिह्न साइकिल और पार्टी किसके पास रहेगी? इस पर फैसला हो सकता है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 12 Jan 2017 11:05 PM (IST)Updated: Thu, 12 Jan 2017 11:17 PM (IST)
SP clash: अब चुनाव आयोग बताएगा साइकिल चुनाव चिह्न किसका

लखनऊ (जेएनएन)। चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के विवाद पर सुनवाई करेगा। इसमे चुनाव चिह्न साइकिल और पार्टी किसके पास रहेगी? इस पर फैसला हो सकता है। फिलहाल साइकिल को लेकर दोनों खेमों की धड़कन बढ़ी है। आयोग साइकिल चुनाव चिह्न को फ्रीज भी कर सकता है इसीलिए आयोग के फैसले पर उत्तर प्रदेश और बाहरी राज्यों की भी निगाहें लगी हुई हैं।

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए साइकिल के महत्व का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। 2012 से पहले साइकिल यात्रा के जरिये उन्होंने बसपा सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। तब उनकी पहल पर प्रदेश भर में साइकिल यात्राओं का सिलसिला चला। मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपने हर उद्बोधन में साइकिल पर फोकस किया। साइकिल को उन्होंने समाजवाद का प्रतीक बनाने की कोशिश की। उनके आवास से लेकर दफ्तर तक साइकिल के ही निशान देखने को मिलते हैं। इस कार्यकाल के आखिरी दो वर्षों में साइकिल ट्रैक बनाने से लेकर उन्होंने जन-जन के दिमाग में अपना चुनाव चिह्न चस्पा करने की भरपूर कोशिश की।

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जाहिर कि साइकिल हाथ से फिसलने की स्थिति में अखिलेश को अपने मंसूबों पर पानी फिरता नजर आएगा। ऐसा भी नहीं है कि मुलायम सिंह यादव को इससे प्रेम नहीं है। आम आदमी की इस सवारी को उन्होंने भी हर मौके पर याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। राष्ट्रीय दलों के बाद क्षेत्रीय दलों में अगर किसी का चुनाव निशान लंबे समय से जनता के बीच में है तो वह सपा ही है।

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यही वजह है कि आम नागरिक भी चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार कर रहा है। दोनों खेमों के नेता भले यह कहें कि चुनाव तो नेता के चेहरे पर लड़ा जाता है लेकिन, जिस तरह सपा के निशान का प्रचार है उससे तो यह स्पष्ट है कि इसके न मिलने की स्थिति में दोनों को चुनाव मैदान में मशक्कत करनी पड़ेगी। समाजवादी पार्टी की साइकिल सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि बिहार और मध्य प्रदेश में भी दौड़ती रही है। उन राज्यों में समाजवादी पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता लखनऊ से लेकर दिल्ली तक दोनों खेमों में बंटकर अपने-अपने भविष्य की राह जरूर तलाश रहे हैं, लेकिन उन्हें भी हाथ से साइकिल के फिसलने का डर सता रहा है।

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