मां के गर्भ से ही बच्चे में हो जाती है कुपोषण की शुरुआत, ऐसे करें बचाव
प्रदेश में 50 फीसद गर्भवतियां एनीमिया की शिकार हैं। ऐसी गर्भवतियों को हाई रिस्क डिलीवरी का भी खतरा।
लखनऊ (अमित कुमार मिश्र)। कुपोषण एक ऐसी समस्या है, जिसकी वजह से शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। बच्चों में कुपोषण की शुरुआत तो मां के गर्भ से ही हो जाती है। अगर गर्भवती माताएं कुपोषित हैं तो उनके गर्भ में पल रहा बच्चा भी कुपोषित होता है। कुपोषण माताओं में एनीमिया का भी बड़ा कारण है।
केजीएमयू के प्रो. डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में 50 फीसद गर्भवतियां एनीमिया की शिकार हैं। इसकी एकमात्र और सबसे बड़ी वजह कुपोषण है। ऐसी गर्भवतियों को हाई रिस्क डिलीवरी का भी खतरा होता है। कई बार जच्चा-बच्चा दोनों की जान चली जाती है या बच्चा गर्भ में ही दम तोड़ देता है। इसके अलावा समय से पूर्व प्रसव व डिलीवरी के बाद कुपोषित बच्चा ही पैदा होता है। ऐसे में बच्चे के मानसिक, इमोशनल और शारीरिक विकास पर असर पड़ता है। डॉक्टरों के पास जब भी गर्भवती आए तो एक बार उनकी पूरी जांच की जानी चाहिए।
ऐसे बचें गर्भवती
डॉ. सूर्यकांत के अनुसार यदि गर्भवतियां पांच चीजों को नियमित सेवन करें तो वह कुपोषण से बच सकती हैं। इसके अलावा अगर मां डायबिटिक नहीं है तो उन्हें नियमित रूप से देशी गुड़ का सेवन करना चाहिए। यह आयरन का बहुत अच्छा स्नोत है। हीमोग्लोबिन की मात्र भी बढ़ाता है। गर्भावस्था के दौरान माताएं जो भोजन तीन बार में करती हैं, उसे उन्हें थोड़ा-थोड़ा करके कम से कम छह बार में कुछ घंटों के अंतराल पर देना चाहिए। अन्य वजहें : खराब पोषण के अलावा कुपोषण होने की कुछ अन्य वजहें भी हो सकती हैं। इनमें दिल, लिवर, टीबी, कैंसर, डायरिया, आंतों की बीमारी, हेपेटाइटिस, एचआइवी, एड्स इत्यादि हैं।
पांच चीजें
- हरी सब्जियां : विटामिन का स्नोत
- रोटी : काबरेहाइड्रेट
- दालें : प्रोटीन
- फल : खनिज तत्व व बिटामिन
- दूध : प्रोटीन, विटामिन व कैल्शियम
बच्चों पर दुष्प्रभाव
- गर्भ के अंदर व बाहर बच्चे का विकास बाधित हो जाता है।
- बच्चे देर से चलते, बोलते हैं।
- मस्तिष्क का विकास रुक जाता है या बहुत कम हो पाता है। ऐसे बच्चे मंदबुद्धि के होते हैं। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
- कैल्शियम-विटामिन-डी की पूर्ति नहीं होने से रिकेट्स व सूखा रोग हो जाता है।
- शरीर में सूजन आने लगती है। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
- हड्डियां टेंढ़ीमेढ़ी व कमजोर हो जाती हैं।
- सिर के बाल कम हो जाते हैं या पूरी तरह नहीं उगते।
- त्वचा रूखी व आभाहीन हो जाती है।
- दस्त-उल्टी होने से डायरिया व खून की कमी से एनीमिया भी हो जाता है।
- कमजोरी, थकान, होंठ फटने जैसे लक्षण विकसित होते हैं। बच्चा अक्सर रोता रहता है या सुस्त रहता है।