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बैडमिंटन के राष्ट्रीय खिलाड़ी मुकुल संभाल रहे चाय का ठेला, लॉकडाउन से बेपटरी हुआ जीवन, लेकिन लड़ने का जज्बा बरकरार

लॉकडाउन की वजह से आर्थिक संकट से जूझ रहे राष्ट्रीय स्तर के बैडमिंटन खिलाड़ी ने लगाया ठेला खुद ही गढ़ रहे अपना किरदार कोर्ट पर वापसी का है दृढ़ निश्चय।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 11:07 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 03:20 PM (IST)
बैडमिंटन के राष्ट्रीय खिलाड़ी मुकुल संभाल रहे चाय का ठेला, लॉकडाउन से बेपटरी हुआ जीवन, लेकिन लड़ने का जज्बा बरकरार
बैडमिंटन के राष्ट्रीय खिलाड़ी मुकुल संभाल रहे चाय का ठेला, लॉकडाउन से बेपटरी हुआ जीवन, लेकिन लड़ने का जज्बा बरकरार

लखनऊ [भाष्कर सिंह]। चाय के ठेले के पास नीली टी-शर्ट पहने खड़े इस शख्स का परिचय जान लीजिए। यह हैं 18 वर्षीय बैडमिंटन खिलाड़ी मुकुल तिवारी, जो कि स्टेट चैंपियनशिप और नेशनल चैंपियनशिप तक अपने रैकेट की ताकत दिखा चुके हंै। आप सोच रहे होंगे कि नाकामी के बाद चाय का ठेला लगा लिया होगा। ऐसा बिल्कुल नहीं है ... इस तस्वीर का दूसरा पहलू है मुकुल की जीवटता। वो खुद कहते हैं कि यह महज एक पड़ाव है... मंजिल की ख्वाहिश और उसे पाने की जज्बा दिल में अब भी बरकरार है। मुकुल कहते हैैं... हम यह क्यों कहें कि अपने दिन खराब हैैं... कांटों से घिर गए मानो गुलाब हैैं।

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जानिए कहानी 

मुकुल के पिता बहराइच निवासी राम विलास तिवारी बाबू बनारसी दास बैडमिंटन अकादमी, गोमती नगर के सामने चाय का ठेला लगाते थे। 2010 की बात है, उनका आठ वर्षीय बेटा बैडमिंटन सीखने की जिद करता था। अकादमी के कोच थे पीके भंडारी। राम विलास ने डरते हुए भंडारी साहब से बात की तो वो मुकुल को कोचिंग देने को तैयार हो गए। अकादमी ने भी फीस माफ कर दी। बेटा जाने लगा तो बड़ी बेटी पूजा ने भी रैकेट थाम लिया। यहीं से सफर शुरू हुआ मुकुल और पूजा तिवारी का।

जानिए उपलब्धि

मुकुल ने 16 साल की उम्र में 2018 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। इस उपलब्धि का जश्न वह नहीं मना सके और अर्थिक परेशानियों से घिरे परिवार की मदद करने की ठान ली। जयपुर की एक अकादमी में उसी साल कोचिंग देना शुरू किया और अभी झांसी की एक निजी अकादमी में कार्यरत हैं। कोचिंग देने के कारण उनका खेल प्रभावित हुआ। 2019 में यूपी स्टेट चैंपियनशिप के सिंगल्स के शुरुआती दौर से ही बाहर हो गए, हालांकि मिश्रित युगल में सेमीफाइनल तक का सफर तय किया। यहां हैमस्ट्रिंग की चोट के कारण टूर्नामेंट से बाहर हो गए। जैसा रिवाज है, बैडमिंटन संघ ने उन्हेंं उनके हाल पर छोड़ दिया। उनका नेशनल चैंपियनशिप खेलने का सपना टूट गया लेकिन, मुकुल भी हार नहीं मानने वाले थे। उन्होंने 2020 के लिए बड़ा लक्ष्य तय किया। हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन लग गया और मुकुल के लिए दुनिया 360 डिग्री पर घूम गई। वेतन मिला नहीं और प्रैक्टिस अलग से छूट गई।

महंगा खेल है पिता पर बोझ नहीं डाल सकते

मुकुल कहते हैं कि बैडमिंटन महंगा खेल है। अब किसी से कुछ मांगने की हिम्मत नहीं और पिता पर बोझ नहीं बनना चाहता। इसलिए 2018 के नेशनल चैंपियनशिप के दौरान ही तय कर लिया था कि अब खुद ही कुछ करूंगा। सरकारी नौकरी के लिए न तो क्वालीफाई हूं और न उम्र है। इसलिए प्राइवेट अकादमी की राह पकड़ी।

ठेला मजबूरी नहीं, अपमान से मिलती है प्रेरणा

लॉकडाउन के कारण लाखों लोग प्रभावित हुए। मुकुल और उनके पिता राम विलास भी प्रभावित हुए। आॢथक रूप से परेशान राम विलास ने 10 तारीख से ठेला दोबारा लगाया तो मुकुल ही इसे संभालने लगे। वह कहते हैं कि काम छोटा-बड़ा नहीं होता है। मुझे चाय-समोसा बनाने में कोई शर्म नहीं है, बल्कि मैं इसे सम्मानजनक मानता हूं।

फिटनेस हासिल करनी है

मुकुल कहते हैं कि जब तक नौकरी नहीं मिलती, चाय के ठेले से जीविका चलाकर खेल पर फोकस करूंगा। अब लक्ष्य तय किया है तो खेलने के लिए फिटनेस हासिल करनी होगी।

बहन भी कर रही संघर्ष

20 वर्षीय पूजा तिवारी लखनऊ के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पार्ट टाइम कोच हैं और अपनी पढ़ाई कर रही हैं। वह भी नेशनल तक खेल चुकी हैं, इन दिनों घर पर ही अपनी मां का हाथ बटा रही हैं। पूजा जल्द ही अपनी पढ़ाई पूरी करके सरकारी नौकरी हासिल करना चाहती हैं, ताकि भाई को खेलने का पूरा मौका मिल सके।


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