सूख रही गोमती, कुकरैल को मिल रहा शारदा का पानी
राजधानी में जल के कुप्रबंधन का नतीजा भुगत रहे शहर वासी। यूं ही बह जाने वाले वर्षा जल का अभी तक नहीं हो सका प्रबंधन।
लखनऊ[रूमा सिन्हा]। भीषण गर्मी में शहरी आबादी पानी की किल्लत से परेशान है। पहले कठौता में शारदा सहायक का पानी न आने के कारण गोमती नगर व इंदिरा नगरवासियों को जल संकट झेलना पड़ा। वहीं अब गऊघाट से होने वाली जलापूर्ति पर गोमती के घटते जल स्तर से संकट पैदा हो गया है। आलम यह है कि गोमती का जल स्तर हर रोज एक इंच कम हो रहा है। गुरुवार को जल स्तर 346.4 फिट पहुंच गया। वहीं जल स्तर गिरने और गर्मी के चलते प्रदूषण भी बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एक हफ्ते हालात ऐसे ही रहे तो मछलियों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
शहर की लाइफ लाइन गोमती एक तरफ तो पानी को तरस रही है। वहीं कुकरैल नाला, शारदा सहायक के पानी से लबालब है। कुकरैल में मिल रहा नहर का पानी दूषित होकर गोमती में बैराज के पास मिल रहा है। नहर के साफ पानी का इस तरह से नाले में मिलना पानी के कुप्रबंधन व जिम्मेदार महकमों की लापरवाही दर्शाता है। सिंचाई विभाग के अभियंता बताते हैं कि चिनहट रजबहा से माइनर को दिए जाने वाले जिस पानी का उपयोग नहीं हो पाता वह टेल एंड पर प्राकृतिक ड्रेन में बह जाता है। सिंचाई विभाग इस पानी को रोक नहीं सकता है।
सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी मात्र में बह रहा नहर का साफ पानी नाले के गंदे पानी के साथ मिलकर दूषित हो रहा है, जिसका विभाग के पास कोई उपाय नहीं। ग्राउंड वॉटर एक्शन ग्रुप के विशेषज्ञ इसे पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना ठहराते हैं। उनका कहना है कि दरअसल यह जल प्रबंधन की ही खामी है जिसके चलते शारदा सहायक का पानी बजाय गोमती में आने के, गंदे नाले में पहुंच कर दूषित हो रहा है। जबकि होना तो यह चाहिए कि पानी नाले में मिलाए जाने के बजाय चैनेलाइज कर किसी तालाब में डाला जाए जिससे जल संरक्षण भी होगा और तालाब भी लबालब हो जाएंगे। यदि तालाब नहीं हैं तो वॉटर रिजरवायर तैयार किए जा सकते हैं। लेकिन नहर के पानी को नाले में जाने देना किसी तरह न्यायपूर्ण नहीं है। वह भी तब, जबकि कई देश सीवर तक के पानी का उपचार कर पेयजल के रूप में प्रयोग कर रहे हैं वहीं हम नहर के पानी को गंदे नाले के हवाले कर इत्मीनान से बैठे हैं।
हर वर्ष होते हैं परेशान, फिर भी प्लानिंग नहीं
अंबेडकर विवि के डॉ. वेंकटेश दत्ता कहते हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपियन यूनियन से हमें सीख लेने की जरूरत है, जिस तरह से वह पानी का प्रबंधन करते हैं। इसके विपरीत हमारी कोई प्लानिंग ही नहीं है। जिससे लोग हर साल परेशान होते हैं। डॉ. दत्ता कहते हैं कि चंद रोज बाद मानसून आ जाएगा। हर साल की तरह बक्शी के तालाब के आठ-नौ गाव फिर बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे। वर्षो गुजर गए लेकिन विभाग बाढ़ के पानी को संग्रहीत करने की योजना तक नहीं बना सके। जबकि चंद्रिका देवी मंदिर के पास पर्याप्त स्थान है जहा रिजरवायर बनाकर पानी को संग्रहित किया जा सकता है। तैयार रहें जल संकट के लिए
गोमती का जल स्तर गुरुवार को घटकर 346.4 फिट हो गया। माना जा रहा है कि एक इंच जल स्तर और घटा तो ऐशबाग और बालागंज जलकल को पंपिंग के लिए लगे एक पंप को बंद करना पड़ेगा। बताते चलें कि गऊघाट पर जल स्तर 346.8 फिट चाहिए होता है। तभी कच्चा पानी गऊघाट से ही पंप किया जाता है। अधिकारी बताते हैं कि गोमती का जल स्तर यदि एक इंच और नीचे गया तो बालागंज जलकल को पंप किए जाने वाले एक पंप को बंद करना पड़ सकता है। बारिश भी नहीं हुई है इसलिए नदी में पानी कम है। उधर मौसम विभाग ने भी फिलहाल बारिश की संभावनाओं से इन्कार किया है। ऐसे में जल संकट होना तय है।