Ayodhya Ram Temple News : राममंदिर का हिस्सा बनेंगी परमहंस की शिलाएं
Ayodhya Ram Temple वर्ष 2002 में शिलादान कार्यक्रम करके प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि को सौंपी गई थीं शिलाएं। पिछले 18 वर्षों के जिला कोषागार के डबल लॉक में सुरक्षित रखी पूजित शिलाएं।
अयोध्या [प्रवीण तिवारी]। Ayodhya Ram Temple Update: 18 वर्ष बाद अहिल्या रूपी शिलाओं की डबल लॉक से मुक्ति का समय आ गया है। इन्हें उपयुक्त समय पर मंदिर की नींव में प्रयुक्त किया जाएगा। मंदिर के जिस प्रखंड में ये शिलाएं फिट बैठेंगी, वहीं पर इनका उपयोग किया जाएगा। इन शिलाओं का दान मंदिर आंदोलन के नायक रहे दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्रदास परमहंस ने किया था। तब से लेकर आज तक ये शिलाएं कोषागार के डबल लॉक में रखी हैं। विहिप के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज का कहना है कि ये शिलायें हम सबकी श्रद्धा से जुड़ी हैं। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को इसकी जानकारी है। सही समय पर इनका प्रयोग होगा।
वर्ष 2002 में मंदिर आंदोलन के दिग्गज संत रामचंद्रदास परमहंस ने हजारों रामभक्तों की मौजूदगी में राममंदिर के लिए शिलाओं का दान किया था। रामभक्त मंदिर निर्माण के लिए परिसर की ओर कूच करने पर आमादा थे। तत्समय परमहंस को साधने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आइएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को अपने दूत के रूप में भेजना पड़ा था। शत्रुघ्न सिंह पीएमओ में तत्कालीन अयोध्या सेल के प्रभारी थे। परमहंस से शत्रुघ्न सिंह ने शिलाएं ली थीं। पांच-पांच फीट की इन शिलाओं को तब कोषागार के डबल लॉक में सुरक्षित रखवा दिया। परमहंस रामचंद्रदास के प्रतिनिधि रहे भाजपा नेता व साकेत महाविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष निशेंद्र मोहन मिश्र बताते हैं कि परमहंस की इच्छा थी कि जब भी राम मंदिर का निर्माण शुरू हो तो इनका प्रयोग किया जाए।
दूरदर्शी संत ने पूरी की थी साध
अदालत से लेकर धरातल तक पर राम मंदिर के लिए हमेशा दो-दो हाथ करने को तैयार रहने वाले महंत रामचंद्र दास परमहंस ने न सिर्फ अपनी आंखों में पल रहे भव्य राम मंदिर निर्माण के सपने को पूरा किया बल्कि इस बहाने वह भक्तों को भी यह संदेश देने में सफल रहे कि आने वाले समय में राम जन्म स्थान पर भव्य और दिव्य मंदिर बनकर ही रहेगा। दरअसल में अपनी बढ़ती आयु के कारण ही उन्होंने मंदिर के लिए पूजित शिलाओं का दान किया। हालांकि इस दौरान उन्हें सरकारों से लोहा लेना पड़ा, पर जुनूनी स्वभाव के प्रखर संत परमहंस ने अपनी साध पूरी की। इसके एक वर्ष बाद ही वह परलोक सिधारे गए। आज भी मंदिर आंदोलन के लिए किए गया उनका संघर्ष लोगों के जेहन में कौंध रहा है।