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Ayodhya Ram Temple News : रामजन्मभूमि मुक्ति में नहीं भुलाया जा सकता संतों का अविस्मरणीय अवदान

Ayodhya Ram Temple News विहिप के आंदोलन की शुरुआत से पहले भी संत समाज जन्मभूमि मुक्ति के लिए संघर्षरत था

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 07:56 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 07:45 AM (IST)
Ayodhya Ram Temple News : रामजन्मभूमि मुक्ति में नहीं भुलाया जा सकता संतों का अविस्मरणीय अवदान
Ayodhya Ram Temple News : रामजन्मभूमि मुक्ति में नहीं भुलाया जा सकता संतों का अविस्मरणीय अवदान

अयोध्या [रघुवरशरण]। Ayodhya Ram Temple News : रामजन्मभूमि आंदोलन को वर्तमान सुखद परिणति तक पहुंचाने में संतों का अविस्मरणीय अवदान भुलाया नहीं जा सकता है। पूर्व गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ, दिगंबर अखाड़ा के ब्रह्मलीन महंत रामचंद्रदास परमहंस और मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास जैसे संतों के संरक्षण में विश्व हिंदू परिषद ने 1984 में मंदिर आंदोलन का ताना-बाना बुना, लेकिन इसके पहले से ही संत जन्मभूमि की मुक्ति के लिए हुंकार भर रहे थे। अगर कहें कि रामलला का आज जो भव्य मंदिर बनने जा रहा है, उसकी जमीन संत समाज के नायकों ने ही तैयार की, तो गलत न होगा। 

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रामलला के प्राकट्य में नायक बनकर उभरे महंत अभिरामदास

बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी के नागा साधु महंत अभिरामदास की रामलला के प्राकट्य प्रकरण में अहम भूमिका थी। पीठ की विरासत के अनुरूप वे पहलवानी में निपुण थे। लंबे-तड़ंगे युवा संन्यासी अभिरामदास की यह खूबी हिंदू महासभा का स्थानीय पदाधिकारी बनने और रामलला के लिए दावेदारी जताने में काफी उपयोगी साबित हुई। स्थानीय साधु-संत उन्हेंं रामजन्मभूमि के उद्धारक के रूप में याद करते हैं। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति के प्राकट्य के बाद विरोधी पक्ष ने जब भी मूर्ति हटाने की मुहिम छेड़ी, तो अभिरामदास उनके सामने फौलाद बनकर खड़े नजर आए। विवादित ढांचे में मूर्ति रखने को लेकर जो प्राथमिकी दर्ज की गई थी, उसमें अभिरामदास ही मुख्य अभियुक्त बनाए गए थे। 1981 में वह ब्रह्मलीन होने से पहले अपने उत्तराधिकारी एवं निर्वाणी अनी अखाड़ा के महंत धर्मदास को मंदिर की पैरोकारी की जिम्मेदारी सौंप गए। 

महंत भास्करदास ने विवाद के बीच शांत-संयत रहकर लड़ी लड़ाई

निर्मोही अखाड़ा के साधु के रूप में लंबे समय तक रामजन्मभूमि से लगे रामचबूतरा पर रामलला की पूजा-अर्चना करने वाले महंत भास्करदास रामजन्मभूमि मुक्ति के प्रबल पक्षधर थे। वे उस दौर में भी शांत-संयत बने रहे, जब रामलला के प्राकट्य से पूरे देश में हलचल मची थी। उन्होंने जन्मभूमि की मुक्ति के लिए तनाव-तकरार की बजाए अदालती लड़ाई का रास्ता चुना। 

1959 में निर्मोही अखाड़ा ने फैजाबाद की अदालत में रामजन्मभूमि पर स्वामित्व का वाद दाखिल किया। इस वाद की पैरवी का दायित्व भास्करदास ने संभाला। कालांतर में अखाड़ा के उप सरपंच, पंच एवं अखाड़ा के महंत बने, लेकिन रामजन्मभूमि की पैरोकारी की जिम्मेदारी पूरी गंभीरता से निभाते रहे। तीन वर्ष पूर्व 90 वर्ष की अवस्था में रामजन्मभूमि पर वह ब्रह्मलीन हो गए। मंदिर के भूमिपूजन के साथ अब उनके जीवन भर की तपस्या फलीभूत होने जा रही है। उनके उत्तराधिकारी महंत रामदास कहते हैं, यह गुरुजी की तपस्या है कि आज हम मंदिर निर्माण होते देख पा रहे हैं।


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