अच्छे खाने के भी शौकीन हैं अटल बिहारी
वाकपटुता में माहिर कवि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अच्छा बोलने के साथ अच्छे खाने के भी बेहद शौकीन थे। खाने से शौकीन अटल बिहारी वाजपेयी को हर शहर में खाने के उम्दा अड्डे भी पता थे। बूंदी के लड्डू हों या फिर मंगौड़ी। हर दुकान के साथ अटल बिहारी
लखनऊ। वाकपटुता में माहिर कवि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अच्छा बोलने के साथ अच्छे खाने के भी बेहद शौकीन थे। खाने से शौकीन अटल बिहारी वाजपेयी को हर शहर में खाने के उम्दा अड्डे भी पता थे। बूंदी के लड्डू हों या फिर मंगौड़ी। हर दुकान के साथ अटल बिहारी वाजपेई की यादें जुड़ी हुई हैं।
शिक्षक के बेटे की विदेश मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद मसरूफियत बढ़ती गई, मगर जुबां से व्यंजनों का स्वाद नहीं उतरा। ग्वालियर की गलियों में लड्डू के जायके से ही शायद अटल का सरल व्यक्तित्व बना है। उनकी कविता... मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना, ग़ैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना। जैसी कविताएं, वैसा व्यक्तित्व। सीधा, सच्चा और सरल। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह में ग्वालियर के हलवाई के लड्डू, जलेबी और कचौड़ी का जायका बना रहा। लखनऊ के लोकप्रिय सांसद रहे अटल जी को चौक की चाट तथा ठंडाई भी बेहद पसंद थी। होली पर ठंडाई और दिवाली पर मिठाई के बिना अटल बिहारी वाजपेयी के खाने के शौक की चर्चा अधूरी है। ठंडाई से लगाव तो जगजाहिर है। पसंद ना पसंद को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी का नज़रिया साफ है। शायद इसी कारण से उनकी सिर्फ तारीफ करता है।