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लुप्त होती विधाओं को संजोने में लगे कलाकार

वाद्ययंत्रों के पारंपरिक रंगों की चमक बरकरार रखने के लिए राजधानी के कई कलाकार आज भी बड़ी शिद्दत से लगे हुए हैं। वह वादन परंपरा के रंगों को अपनी अंगुलियों के जादू से चटख कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Sep 2018 09:47 AM (IST)Updated: Sat, 01 Sep 2018 01:50 PM (IST)
लुप्त होती विधाओं को संजोने में लगे कलाकार
लुप्त होती विधाओं को संजोने में लगे कलाकार

लखनऊ (जुनैद अहमद)। हमारी परंपराओं में विभिन्न कलाओं के रंग भरे हैं। जिनमें से एक रंग उन वाद्ययंत्रों का भी है, जो लुप्त होती जा रही हैं। वह चाहे सारंगी, बासुरी, वायलिन, वीणा, सितार हो या पखावज सभी वाद्ययंत्र की अपनी खासियत है, जो आधुनिकता के इस दौर में कहीं गुम होते जा रहे हैं। इन वाद्ययंत्रों के पारंपरिक रंगों की चमक बरकरार रखने के लिए राजधानी के कई कलाकार आज भी बड़ी शिद्दत से लगे हुए हैं। वह वादन परंपरा के रंगों को अपनी अंगुलियों के जादू से चटख कर रहे हैं। आइए, मिलते हैं ऐसे वाद्ययंत्रों को लुप्त होने से बचाने का प्रयास करने वाले कलाकारों से.।

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50 साल से वीणा बजा रहा हूं

राजधानी में वीणा के अकेले संगतकर्ता श्रीकुमार मिश्र हैं, जो पिछले 50 वर्षो से मयूर वीणा बजा रहे हैं। संगीत नाटक अकादमी के संगीत सर्वेक्षक रह चुके श्रीकुमार ने 12 साल की उम्र से अपने पिता रामजी मिश्र से वीणा की शिक्षा लेनी शुरू की। उसके बाद कनक राय त्रिवेदी, के लाल बनर्जी से उन्होंने शिक्षा ली। श्रीकुमार बताते हैं कि संगीत के माहौल में पला-बड़ा हूं। वीणा तो मेरी आध्यात्मिक साधना है, जिसे मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर चुका हूं। देश में लगभग हजारों प्रस्तुति दे चुका हूं। अब बहुत जल्द विदेश में वीणा की प्रस्तुति देने की तैयारी कर रहा हूं। पहली लड़की जिसने बासुरी में एमए किया

संगतकर्ताओं में अमूमन पुरुष ही बासुरी बजाते हैं, ऐसे में अलका ठाकुर ने अपनी प्रतिभा से बासुरी वादन में खूब नाम कमाया है। राजधानी से रियलिटी शो तक में अपनी बासुरी की धुनों को पहुंचाने वाली अलका ने काफी संघर्ष किया। 1999 में भातखंडे संगीत सम विवि में प्रवेश लेने वाली अलका ने मुंबई-दिल्ली समेत कई राज्यों में अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने बासुरी में एमए करने वाली पहली महिला का रिकार्ड भी बनाया। द राइजिंग स्टार रियलिटी शो में अलका ने बासुरी वादन किया। वह अब इंडिया गॉट टैलेंट की तैयारी कर रहीं हैं। राष्ट्रपति भवन में वायलिन बजाया

देश-विदेश में वायलिन की प्रस्तुति देकर अपनी खास पहचान बनाने वाले दीपक मिश्र बचपन से ही संगीत के माहौल में रहे हैं। वायलिन सीखने के लिए भातखंडे संगीत सम विवि में नौ साल लगाए। उन्होंने पंडित धनश्याम शर्मा व गोपाल चंद नंदी से उन्होंने वायलिन की शिक्षा ली। उन्होंने बताया कि वायलिन बजाना बहुत मुश्किल है, इस लिए कम लोग सीखते हैं। सबसे पहले संगतकर्ता के रूप में वायलिन बजाया। उसके बाद एकल वादन किया। आकाशवाणी, दूरदर्शन के लिए कार्यक्त्रम भी किए। देश में लगभग सभी राज्यों में प्रस्तुति दी। उसके बाद 2006 में राष्ट्रपति भवन में वायलिन की प्रस्तुति दी। फिर 2010 में यूरोप की कई शहरों में वायलिन की एकल व संगतकर्ता के रूप में प्रस्तुति दी। पाच हजार से ज्यादा प्रस्तुति दे चुका हूं

देश के मशहूर पखावज वादक डॉ. राजखुशी राम पिछले लगभग 50 वर्षो से पखावज में अपनी अंगुलियों का जादू बिखेर रहे हैं। डॉ. राजखुशी राम ने बताया कि सात साल की उम्र में वह पखावज का ऐसा दीवाना हुआ कि पूरा जीवन उसको समर्पित कर दिया। पखावज को मृंदग भी कहते हैं। देश-विदेश में उन्होंने लगभग पाच पखावज की प्रस्तुति दे चुके हैं। वह चाइना में छह महीनें में 120 प्रस्तुति देकर काफी मशहूर हुए। उन्होंने फिल्म नाचे मयूरी में संगीतकार लक्ष्मीकात-प्यारेलाल के निर्देशन में भी पखावज वादन किया। उन्होंने पखावज की शिक्षा पंडित सखाराम मृदंगाचार्य, पंडित विनायक राव, स्वामी पागलदास जी महाराज से ली। उन्हें तालमणि, सर्व साधना रत्‍‌न, सगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।


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