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World Radio Day: तीन हजार के रेडियो की मरम्मत के मिले नौ हजार, लद्दाख से आए आर्मी अफसर ने खुश होकर द‍िया इनाम

दुकान पर लद्दाख से आर्मी के आफिसर आए। उनके पास करीब 50 वर्ष पुराना रेडियो था। वह किसी भी हाल में उस रेडियो को ठीक करवाना चाहते थे। इसके लिए वह मुंह मांगी कीमत देने के लिए भी तैयार थे।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 03:36 PM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 03:36 PM (IST)
World Radio Day: तीन हजार के रेडियो की मरम्मत के मिले नौ हजार, लद्दाख से आए आर्मी अफसर ने खुश होकर द‍िया इनाम
विक्की कोलकाता गए और वहां से उसके पार्ट लेकर आए।

लखनऊ, जेएनएन। हजरतगंज में रेडियो की पुश्तैनी दुकान चला रहे विक्की चौधरी के पास दूर-दूर से लोग पुराने रेडियो खरीदने या उसकी मरम्मत के लिए आते रहते हैं। एक बार दुकान पर लद्दाख से आर्मी के आफिसर आए। उनके पास करीब 50 वर्ष पुराना रेडियो था। वह किसी भी हाल में उस रेडियो को ठीक करवाना चाहते थे। इसके लिए वह मुंह मांगी कीमत देने के लिए भी तैयार थे। जब विक्की ने उनको कहा कि इसे ठीक होने में समय लगेगा, तो वह मुझसे बोले कि मैं इसके लिए छह महीने तक इंतजार कर लूंगा। फिर विक्की कोलकाता गए और वहां से उसके पार्ट लेकर आए। चार महीने बाद वह रेडियो उनको सौंपे। उन्होंने तीन हजार रुपये की कीमत के रेडियो के सात हजार रुपये दिए। इसके अलावा वो इतना खुश हो गए कि उन्होंने दो हजार रुपये अलग से दिए।

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एक ऐसा ही दिलचस्प वाकया हुआ। दुकान पर पुलिस महकमे के एक अफसर आए। वह अपनी माताजी के लिए रेडियो खरीदना चाहते थे। कुछ समय बाद जब विक्की उनके पास रेडियो लेकर पंहुचे तो माताजी खुशी से झूम उठीं। अफसर ने कहा कि भाईसाहब आपने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी दौलत दे दी। 

प्राइवेट एफएम चैनलों ने दिया अलग रूप-रंग

पहले भी रेडियो का मकसद मनोरंजन था और आज भी वही है। विविध भारती, पिनाका गीत माला और फौजी भाइयों के लिए जो कार्यक्रम आते थे, ये सभी माइल स्टोन हैं। उस समय के रेडियो ने ही दिशा दी थी कि आगे चलकर रेडियो का प्रारूप क्या होगा। प्राइवेट एफएम चैनलों ने रेडियो को अलग रूप-रंग दे दिया है। अब आप अपने चहेते आरजे को देख-सुन सकते हैं। कुछ मिनटों में ही पूरी दुनिया की खबरें आप तक पहुंचाई जाती हैं। आज का रेडियो या कहें कि प्राइवेट चैनल पहले से बहुत ज्यादा बिंदास हैं। ध्यान बस ये रखते हैं, रेडियो में बिंदास बातें तो हों, मगर उसमें बदतमीजी का स्थान न हो। बिंदास होने और बदतमीज होने में धागेभर का फर्क है। प्राइवेट रेडियो ने पहुंच बढ़ाई है। प्राइवेट एफएम चैनल जनता को रेडियो के करीब लेकर आए हैं। शहर की समस्याओं के बारे में बताने के साथ हम उसका समाधान भी खोजने का प्रयास करते हैं। जितने भी आरजे आ रहे हैं, उन्हें भाषा की शालीनता को समझना होगा। रेडियो हमेशा खूबसूरत था है और रहेगा। - आरजे राशि, रेडियो सिटी 91.1


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