Corona Virus: खास पहरेदार ही बना शरीर की कोशिकाओं का दुश्मन, क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
वैज्ञानिकों ने इस नए दुश्मन का पता लगाने के बाद सलाह दी है। ताकि इस पर भी नजर रख कर मरीजों को तमाम परेशानी से बचाया जा सके।
लखनऊ, (कुमार संजय)। इम्यून सिस्टम शरीर को बैक्टीरिया या वायरस से बचाने का काम करता है, लेकिन कोरोना के मामले में एक खास पहरेदार ही शरीर की कोशिकाओं का दुश्मन बन रहा है। यह संक्रमित मरीजों में बीमारी की गंभीरता बढ़ाने के साथ ही दूसरी परेशानियां खड़ी कर सकता है। इन दुश्मन का नाम एंटी फास्फोलिपिड एंटीबॉडी (एपला) है, जो कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले फास्फोलिपिड के खिलाफ काम करने लगता है। वैज्ञानिकों ने इस नए दुश्मन का पता लगाने के बाद सलाह दी है कि इस पर भी नजर रख कर मरीजों को तमाम परेशानी से बचाया जा सकता है।
कोरोना संक्रमण के बाद एपला से खून के थक्के बनने की आशंका होती है। फेफड़े की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं सहित अन्य स्थानों पर थक्के बनने से रक्तस्नाव का भी खतरा बना रहता है। शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है, जिसे डॉक्टरी भाषा में थ्रम्बोसाइटोपिनिया कहते है। इस परेशानी को एंटी फास्फोलिपिड एंटीबॉडी ( एपला) सिंड्रोम कहते है। इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में कोगुलोपैथी एंड एंटी फास्फोलिपिड एंटीबॉडी इन पेशेंट विथ कोविड-19 विषय पर जारी केस स्टडी में पर कहा गया है कि कोविड-19 के मरीजों में इस एंटीबॉडी के स्तर पर ही नजर रखनी होगी।
शोधपत्र में विशेषज्ञों ने कोरोना के कुछ मरीजों में एंटी कार्डियोलिपिन एंटीबॉडी-ए के साथ बीटा टू ग्लायकोप्रोटीन आईजी-ए, आईजी-जी का स्तर बढ़ा हुआ देखा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस एंटीबॉडी का रोल अधिक मरीजों में मिलता है तो मैनेजमेंट से संभव है कि इसकी गंभीरता को कम किया जा सके।
क्या है एंटी फास्फोलिपिड एंटीबॉडी सिंड्रोम
एंटीबॉडी मतलब शरीर में रोगों से लड़ने वाला तंत्र (प्रतिरक्षा तंत्र) खून में मौजूद सामान्य प्रोटीन पर गलती से हमला करके उन्हें नष्ट करने लगता है। इसे एंटीफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम भी कहते है। इसके के कारण नसों और अंगों के भीतर खून के थक्के बन सकते हैं। अभी तक यह गर्भवती में गर्भपात और बच्चे के मृत पैदा होने का कारण बनता था, लेकिन अब कोरोना मरीजों में बीमारी की गंभीरता बढ़ाने वाला बताया गया है।
40 फीसद में वेनस थ्रम्बोसिस की आशंका
इस शोध की पुष्टि एक और शोध पत्र इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल ने लांसेट ने एटेशन सुड बी पेड टू वेनस थ्रम्बोसिस प्रोफाइलेक्सिस इन मैनेजमेंट कोविड-19 में भी हुआ है। इसमें एक हजार से अधिक भर्ती होने वाले मरीजों में वेनस थ्रम्बोसिस (वीटी) की आशंका 40 फीसद मरीजों में देखी गई है। इस परेशानी में रक्त वाहिका में खून का थक्का बनने लगता है। इसके कारण रक्तस्नाव की आशंका रहती है। सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में थक्का बनने से वो फट जाती है।
खून पतला करने की दवाएं होती हैं कारगर
संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट प्रो. विकास कहते हैं कि एंटी फास्फोलिपिड सिंड्रोम और वेनस थ्रम्बोसिस के लक्षणों में खून के थक्के बनना शामिल हैं, जो पैर, बांह या फेफड़ों में बन सकते हैं। खून पतला करने वाली दवाएं थक्के बनने के जोखिम को कम कर सकती हैं।