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बेजुबानों से मोहब्बत कर मानवता का धर्म न‍िभा रहीं न‍िक‍िता, लॉकडाउन में भी नहीं रुके कदम

लखनऊ में एमकॉम की छात्रा निकिता ऐरन अपने इलाके में पशु चिकित्सक के रूप में पहचानी जाती हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 10 Jun 2020 08:23 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jun 2020 07:00 AM (IST)
बेजुबानों से मोहब्बत कर मानवता का धर्म न‍िभा रहीं न‍िक‍िता, लॉकडाउन में भी नहीं रुके कदम
बेजुबानों से मोहब्बत कर मानवता का धर्म न‍िभा रहीं न‍िक‍िता, लॉकडाउन में भी नहीं रुके कदम

लखनऊ, (निशांत यादव)। केरल में गर्भवती हथिनी को विस्फोटक भरा अनानास खिलाने की घटना हो या हिमाचल प्रदेश में गाय के साथ की गई ऐसी ही क्रूरता। हर संवेदनशील शख्स को इन घटनाओं ने झकझोर कर रख दिया। बर्बरता की इन वीभत्स तस्वीरों के बीच अपने शहर में रोजाना सज रहे कई नजारे दिल को राहत देते हैं। यहां बहुत से ऐसे पशुप्रेमी मौजूद हैं जो सड़क पर घूमने वाले बेसहारा पशुओं की अपनों जैसी देखभाल करते हैं। ऐसा ही एक नाम है अलीगंज की निकिता ऐरन का। नेशनल पीजी कॉलेज की एमकॉम छात्रा का पशु प्रेम ऐसा है कि बहुत से लोग इन्हें जानवरों की डॉक्टर जानते हैं। पशुओं के संग हाल-फिलहाल हुई दर्दनाक घटनाओं के बीच सुकून और प्रेरणा से भरी निकिता की कहानी से रूबरू कराती रिपोर्ट...।

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लॉकडाउन में कड़ी सख्ती के बीच जब लोग घर से नहीं निकल रहे थे, तब परास्नातक की छात्रा निकिता ऐरन बेसहारा पशुओं का पेट भरने में जुटी थीं। यह सिर्फ लॉकडाउन की ही बात नहीं, निकिता का यह पशु प्रेम बचपन में ही शुरू हुआ था। वह तब से गाय और श्वानों की सेवा करती आ रही हैं। अब यह काम उनके जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। रात को जब तक बेसहारा पशुओं को खाना नहीं दे देतीं, तब तक वह भोजन नहीं करती हैं। उन्होंने घर के बाहर बेजुबानों की प्यास बुझाने के लिए हौद बना रखी है। इन दिनों इसमें घर की बर्फ मिलाई जाती है, जिससे पशुओं को इस मौसम में प्यास बुझाने के साथ तरावट का अहसास हो सके।

निकिता पशु प्रेमी हैं, मगर बहुत से लोग उन्हें पशु चिकित्सक जानते हैं। कुछ दिन पहले ही सड़क पर घूम रहे एक छोटे श्वान को पार्गो हो गया था। यह तरह के वायरस का संक्रमण था। लोग उसे देखकर कहते थे कि यह नहीं बचेगा। यहां तक कि कई लोगों ने बदबू के डर से उसे कहीं और ले जाने की सलाह दी। तब निकिता लगातार पांच दिन उसे अस्पताल ले गई। ड्रिप चढ़वाई और जब वह ठीक हो गया तो निकिता उसे लेकर अपनी कॉलोनी आ गईं। लोग हैरान थे कि यह छोटा श्वान अब पूरी तरह स्वस्थ था। उसका नाम कोको रखा गया। निकिता गायों के लिए भी चोकर, चारा और भूसा लेकर हर शाम निकलती हैं। श्वानों को भी वह रोजाना शाम छह से सात बजे के बीच खाना खिलाती हैं। यदि कोई श्वान कभी घायल हो जाए या उसे इलाज की जरूरत लगे, तो अब लोग निकिता को फोन कर देते हैं। निकिता दवा लेकर उसका इलाज करने में जुट जाती हैं। रोज शाम खाना लेकर जैसे ही निकिता की कार अलीगंज की गलियों में मुड़ती है। वहां के श्वानों की पूंछ खुशी से हिलने लगती है। गाय के कान खड़े हो जाते हैं। बेजुबानों पर प्यार लुटाते हुए निकिता बताती हैं कि ये बेसहारा पशु मुझे अपना मानते हैं। कभी बैंक व अन्य जगह काम से जाती हूं तो इलाके के श्वान मुझे पहचानकर कार को चारों ओर से घेर लेते हैं।

दुम हिलाते श्वानों को पुचकारते हुए खाना खिलाती निकिता को देखकर अल्ताफ हुसैन हाली का शेर याद आ जाता है...।  

जानवर आदमी फरिश्ता ख़ुदा, आदमी की हैं सैकड़ों किस्में।


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