अब आप ही बताइए नाट्य अकादमी के साथ ये कैसा नाटक !
सरकारी संस्था भारतेंदु नाट्य अकादमी की मौजूदा हालात पर एक लेख।
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बाद रंगमंच प्रशिक्षण के लिए सबसे प्रतिष्ठित सरकारी संस्था भारतेंदु नाट्य अकादमी हमारे शहर में है। ये लखनऊ और लखनऊ वालों के लिए गर्वित होने का विषय हो सकता है, पर ऐसा है नहीं। कम से कम अकादमी के मौजूदा हालात तो गर्व करने का मौका बिल्कुल नहीं दे रहे। हाल ही में यहां बचीं एकमात्र पूर्णकालिक प्रशिक्षिका चित्रा मोहन सेवानिवृत्त हो गईं। अकादमी में पूर्णकालिक प्रशिक्षक के तीन पद पहले से ही रिक्त चल रहे हैं। इधर, मंत्री जी के निर्देश पर अकादमी प्रबंधन ने नए सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी। विज्ञापन भी आ गया। दाखिले की अंतिम तारीख भी तय हो गई। अब सवाल ये है कि जब अकादमी में कोई पूर्णकालिक प्रशिक्षक है ही नहीं, तो रंगकर्म के विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देगा कौन? अब आप ही बताइए नाट्य अकादमी के साथ इससे बड़ा नाटक कोई और हो सकता है क्या!
साज़ को सोज़ मत बनाइए
लाइट, कैमरा और एक्शन... ये कोरोना काल है, इतने भर से ही काम नहीं चलता। कलाकार को बड़ी स्क्रीन, कंप्यूटर, लाइट, माइक, कैमरा और नेट कनेक्टिविटी के साथ भी सामंजस्य बैठाना पड़ रहा। एक संस्था के बैनर तले हाल ही में संगीत की ऑनलाइन क्लासेज के लिए ये सारा प्रबंध किया गया। स्वघोषित डंका भी बजा कि संगीत के लिए हमसे बेहतर ऑनलाइन प्रयास और कोई नहीं कर रहा। अब कलाकार तो कलाकार ठहरे। संगीत के लिए समर्पण की बात थी, खुद को कम कैसे आंकते। गुरुजी ने सवाल उठाया कि अगर संस्था की ओर से इतना ही बेहतर प्रयास हो रहा तो हमें क्यों नहीं दिख रहा। ये कैसा ऑनलाइन मंच है, जो किसी को नजर नहीं आ रहा। इन सवालों में दम तो था, मगर हमने गुरुजी को समझाया, संगीत तो दिल का साज़ है, इसे सोज़ मत बनाइए। कहने वाले को कहने दीजिए, आप अपनी करते जाइए।
आप संगीत विदुषी हैं, ये तो शाश्वत सत्य है ही
जीवन का वो पड़ाव जब अमूमन हर कोई थक कर बैठ जाता है। आराम करता है, प्रभु नाम जपता है। वो भी उम्र के इसी दौर से गुजर रहीं, पर अंदाज जुदा है। खुद को सुपर सीनियर का भी सीनियर कहती हैं। हमेशा रचनात्मक रहती हैं। जब भी उनसे बात करो, कोई न कोई गीत जरूर सुना देती हैं। हम हर बार हैरान रह जाते हैं कि वो आज भी कोकिल कंठी हैं। आवाज के साथ हम उनकी ऊर्जा के भी कायल हैं। वो भी हम पर खूब आशीष बरसाती हैं। वो अपने लिए संबोधन में सगीत विदुषी पर विशेष जोर देती हैं। चूक हो जाए तो बिगड़ती हैं। ये हमारे मनाने का हुनर है या हमारे लिए उनका लगाव कि वो हर बार मान जाती हैं। हम उनसे यही कहते हैं, आप संगीत विदुषी हैं, ये तो शाश्वत सत्य है। संबोधन में चूक से सत्य नहीं बदला करते।
तीनों ने धोखा दिया, पर गुरु- शागिर्द नहीं डिगे
गुरुजी आपकी सक्रियता को सलाम। विपरीत परिस्थितियों में भी आपने ऑनलाइन नृत्य समारोह आयोजित करके साबित कर दिया कि एक संगीत ही है, जिससे सकारात्मकता का संचार किया जा सकता है। संगीत के अथाह सागर में गोते लगाकर सृजनशील रहा जा सकता है। आपके प्रयास को शिष्यों का भी खूब साथ मिला। दिनभर रियाज चला। सोशल मीडिया पर रिहर्सल के वीडियो ने भी धूम मचाया। हर संगीत प्रेमी की तरह हम भी कार्यक्रम देखने के लिए शाम के तय समय का इंतजार करने लगे। मगर ये क्या! आधे घंटे से ज्यादा हो गया, पर कार्यक्रम तो शुरू ही नहीं हुआ। हमने गुरुजी को फोन किया, वो बोले- एक साथ तीनों ने धोखा दे दिया। झमाझम बारिश हो रही, बिजली भी गुल है और नेट कनेक्टिविटी भी नहीं। गुरु और शागिर्द नहीं डिगे। करीब दो घंटे बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। हर कोई कमाल की प्रस्तुतियों को बस देखता ही रहा।