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हिंसक जीवों के हमले से बचाने को आंदोलित हो गए तराई के किसान

लखीमपुर, पीलीभीत और दुधवा नेशनल पार्क से जुड़े ज्यादातर जिलों में हिंसक वन्यजीवों का आतंक है। इसको लेकर कई जगह किसान आंदोलित हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 10 Jan 2018 05:47 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jan 2018 06:39 PM (IST)
हिंसक जीवों के हमले से बचाने को आंदोलित हो गए तराई के किसान
हिंसक जीवों के हमले से बचाने को आंदोलित हो गए तराई के किसान

लखनऊ (जेएनएन)। लखीमपुर, पीलीभीत और दुधवा नेशनल पार्क से जुड़े ज्यादातर जिलों में हिंसक वन्यजीवों का आतंक है। इसको लेकर कई जगह किसान आंदोलित हैं। लखीमपुर में तो बीते पांच दिन से धरना चल रहा है। बाघ ने हाल ही में लगातार कई लोगों को शिकार बनाया है जबकि तेंदुआ और बिल्ली प्रजाति के कई जीवों का उत्पात भी जारी है। किसान इस बार जब तक बाघ पकड़ा नहीं जाता धरने जारी रखने का ऐसान कर चुके हैं। कल ही एक व्यक्ति को लखीमपुर में बाघ ने अपना निवाला बनाया था। उधर बलरामपुर के सोहेलवा जंगल के तराई क्षेत्र में तेंदुओं का बोलबाला है। तेंदुए के हमले में नौ बच्चों की मौत हो चुकी है। 

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बाघ पकड़े जाने तक भाकियू का धरना

भारतीय किसान यूनियन लोकतांत्रिक का धरना प्रदर्शन पांचवे दिन भी लखीमपुर के महेशपुर में जारी रहा। कार्यकर्ताओं ने वन विभाग के खिलाफ नारेबाजी करते हुए ऐलान किया कि जब तक क्षेत्र में आतंक का पर्याय बने बाघों को पकड़ा नहीं जाता तब तक उनका धरना चलता रहेगा। धरना स्थल पर बाघ के हमले से घायल नंदापुर निवासी रामनरेश, बाघ के हमले में मारे गए महेशपुर निवासी ओमप्रकाश की पत्नी बेहाशा देवी, बाघ के हमले में मारे गए अशर्फीगंज निवासी लालाराम के भाई रामलखन गौरीगंज में बाघ के हमले से मारे गए बैल के स्वामी राजाराम भी पहुंचे थे। दो दिन पहले भाकियू कार्यकर्ताओं से मिलकर गोला एसडीओ आरएन मिश्रा ने कार्रवाई का भरोसा दिलाया था और धरना समाप्त करने की बात कही थी। लेकिन कार्यकर्ताओं ने एसडीओ के आश्वासन पर ध्यान नहीं दिया। बुधवार को कड़ाके की ठंड के बावजूद महेशपुर रेंज कार्यालय के सामने भाकियू के दर्जनों कार्यकर्ता जुटे और बाघों को पकडऩे के लिए आवाज बुलंद की। कार्यकर्ताओं ने कहा कि बाघों की चहलकदमी के कारण कृषि कार्य प्रभावित हो रहा है। गन्ने की छिलाई, गेहूं की रखवाली समेत तमाम कार्य नहीं हो पा रहे हैं। 

बच्चों को निवाला बना रहा तेंदुआ 

बलरामपुर के सोहेलवा जंगल के तराई क्षेत्र में तेंदुओं का बोलबाला है। दो वर्ष में तेंदुए के हमले में नौ ब'चों की मौत हो चुकी है। जबकि सात लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। तेंदुओं के हमलों ने वन विभाग के अफसरों को भी सकते में डाल दिया गया। वनकर्मी इसे ग्रामीणों की लापरवाही का नतीजा मान रहे हैं। वहीं वन्यजीव प्रेमी जंगल में बाघों की कमी के कारण तेंदुओं का बढऩा बता रहे हैं। वन्यजीवों के जानकारों की मानें तो जंगल की कटान ऐसे ही होती रही तो वह दिन दूर नहीं है जब तेंदुए शहर में आना शुरू कर देंगे। 

इनकी हो चुकी मौत

22 दिसंबर को दुंदरा निवासी 12 वर्षीय अरमान अली, 23 दिसंबर को गुरुदास पुरवा के 13 वर्षीय रंजय, 22 अक्टूबर को बनकटी निवासी चार वर्षीया गुडिय़ा, दस सितंबर को नेवलगंज के मजरे झौहना निवासी दस वर्षीय मधौली, तीन सितंबर को बगधरवा निवासी छह वर्षीया कोयली व कुकुरभुकवा निवासी दस वर्षीया दुलारी, एक सितंबर को दर्जिनिया निवासी 12 वर्षीय विश्वनाथ व 27 अगस्त को भदवार गांव निवासी दस वर्षीया ममता की तेंदुए के हमले में मौत हो चुकी है। 

हो चुके घायल

तेंदुए के हमले में 26 जुलाई को जंगल से सटे रतनपुर गांव के 62 वर्षीय गुल्ले, 12 अक्टूबर को इमिलिया गांव के 50 वर्षीय दुलारे, राम फेरे (60), कुकुभुकवा निवासी रामकुमार (49), 31 अगस्त को खैरहनिया गांव के  38 वर्षीय मुन्नवर व 12 जनवरी 2016 को भरनपुरवा गांव की 32 वर्षीया परमिला घायल हो चुकी हैं।

 क्या कहते वन्यजीव प्रेमी 

विक्रम तिवारी का कहना है कि जंगल का क्षेत्रफल सिकुड़ रहा है। जंगल में स्थित भारत नेपाल-सीमा खुली हुई है। नेपाली शिकारियों के भय से तेंदुए रिहायशी इलाकों की ओर रुख  कर रहे हैं। बनकटवा रेंज के वन क्षेत्राधिकारी तिलकराम आर्य का कहना है कि जंगल मेें ग्रामीणों की बढ़ती दखलअंदाजी से तेंदुआ भोजन की तलाश में गांव की ओर रुख करने लगा है। ग्रामीण अपने मवेशियों को जंगल में चराने ले जाते हैं। मवेशियों की महक तेंदुओं को जंगल से बाहर खींच लाती है। 


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