'एलोइम्यून प्रॉब्लम' अपने ही भ्रूण के लिए जानलेवा हो जाता है मां का शरीर
मां के शरीर में एलोइम्यून प्रॉब्लम से हो सकता है गर्भपात इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट पर आयोजित कार्यशाला।
लखनऊ, जेएनएन। कई महिलाओं में बार-बार गर्भपात होने की समस्या होती है। ऐसे कुछ मामलों में महिला का गर्भाशय स्पर्म और भ्रूण के प्रति ऑटो इम्यून हो जाता है। इसे एलोइम्यून प्रॉब्लम कहते हैं। मां का शरीर स्पर्म और भ्रूण के प्रति एंटीबॉडी बनाने लगता है जिससे स्पर्म और एंब्रियो नष्ट हो जाते हैं और प्रेग्नेंसी नहीं हो पाती है । ऐसे में लिम्फोसाइटिक क्रॉस मैच और टीएनएफ एल्फा जांच करवानी चाहिए। यह जानकारी शनिवार को डॉ. मुग्धा और डॉ. मोहन राउत ने लखनऊ ऑब्स एंड गायनोलॉजिस्ट सोसाइटी और मॉर्फिअस लखनऊ फर्टिलिटी सेंटर की ओर से इंफर्टिलिटी विषय पर आयोजित कार्यशाला में दी।
डॉ. राउत ने बताया कि इस तरह के मामलों में लिम्फोसाइट इम्यूनाइजेशन थेरेपी (एलटीटी) अपनाई जाती है। इसमें पति के ब्लड से लिम्फोसाइट लेकर पत्नी की त्वचा में इंजेक्ट किया जाता है। ये पत्नी के शरीर में मौजूद एंटीबॉडी को ब्लॉक कर देते हैं। यह थेरेपी सिंगल सेटिंग की होती है।
हिस्टेरोस्कोपिक मेट्रोप्लास्टिक इंफर्टिलिटी की नई तकनीक
इंदौर के स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. जय श्री श्रीधर ने बताया कि 10 से 15 फीसद इंफर्टिलिटी के कारण अज्ञात होते हैं। अगर महिला गर्भवती नहीं हो रही है तो हिस्टेरोस्कोपिक मेट्रोप्लास्टी तकनीक भी अपनाई जाती है।
प्रीनेटल स्क्रीनिंग जरूरी
चेन्नई के डॉ. दीपक ने बताया कि प्रेग्नेंसी के बाद शुरुआती अल्ट्रासांउड में बच्चे में किसी तरह से असामान्यता दिखे तो कुछ स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। इसके लिए शुरुआत में कंबाइन एंड पेंटा स्क्रीनिंग 11 से 13.6 सप्ताह में और दूसरी क्वैड टेस्ट 25 से 20 सप्ताह के बीच करवाना चाहिए। कुछ पॉजिटिव निकलने पर सीवीएस और क्यूएफपीसीआर जांच करवानी चाहिए।
नि:संतान होने के लिए महिला और पुरुष दोनों जिम्मेदार
यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ अग्रवाल ने बताया कि नि:संतान होने में महिला और पुरुष बराबर रूप से जिम्मेदार होते हैं। अगर शुरुआती दौर में प्रेग्नेंसी नहीं होती है तो आइवीएफ या अन्य तकनीक अपनाने से पहले दवा से इलाज करवाना चाहिए। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सुनीता चंद्रा, उद्घाटन सीएमओ डॉ. नरेंद्र अग्रवाल, डॉ. मधु गुप्ता ने किया।