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हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- भ्रष्टाचार के आरोपित लोक सेवक पर केस चलाने में सरकार से अनुमति जरूरी नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आपराधिक षड्यंत्र दुष्कर्म कदाचार घूस अनुचित लाभ लेने जैसे अपराध में आरोपित लोक सेवक पर अभियोग चलाने की सरकार से अनुमति जरूरी नहीं है। बिना अनुमति लिए मुकदमा चल सकता है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 18 Jun 2021 07:15 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jun 2021 07:17 PM (IST)
हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- भ्रष्टाचार के आरोपित लोक सेवक पर केस चलाने में सरकार से अनुमति जरूरी नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला भ्रष्टाचार के आरोपित लोक सेवक पर केस के लिए सरकार से अनुमति जरूरी नहीं है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आपराधिक षड्यंत्र, दुष्कर्म, कदाचार, घूस, अनुचित लाभ लेने जैसे अपराध में आरोपित लोक सेवक पर अभियोग चलाने की सरकार से अनुमति जरूरी नहीं है। बिना अनुमति लिए मुकदमा चल सकता है। कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 का संरक्षण, लोक सेवक को पद दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराधों तक ही प्राप्त है। यदि सरकार ने अभियोग चलाने की मंजूरी दे दी है तो ऐसे आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत याचिका पोषणीय नहीं है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपित को विचारण न्यायालय में अपनी आपत्ति दाखिल करने का अधिकार है। इस अधिकार का इस्तेमाल कोर्ट के आरोप पर संज्ञान लेते समय या आरोप निर्मित करते समय किया जा सकता है। यहां तक कि अपील पर भी आपत्ति की जा सकती है। कोर्ट को सरकार की अभियोजन चलाने की अनुमति की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार है। साक्ष्य के आधार पर कोर्ट देखेगी कि अपराध का संबंध कर्तव्य पालन से जुड़ा है या नहीं? यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी व न्यायमूर्ति आरएन तिलहरी की खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग आगरा के वित्त एवं लेखाधिकारी कन्हैया लाल सारस्वत की याचिका पर दिया है।

मामले के अनुसार एक सहायक अध्यापक के विरुद्ध शिकायत पर जांच बैठाकर निलंबित कर दिया गया। तीन माह बाद भी जांच पूरी नहीं हुई तब उसने बीएसए को निलंबन भत्ते का 75 प्रतिशत भुगतान करने की अर्जी दी। याची ने आदेश दिलाने के लिए घूस मांगा। अध्यापक ने 50 हजार रुपये घूस लेते याची को विजिलेंस टीम से रंगे हाथ पकड़वा दिया। विजिलेंस टीम ने अभियोजन की सरकार से अनुमति मांगी, जिसे अस्वीकार करते हुए सरकार ने सीबीसीआइडी को जांच सौंपी।

सीबीसीआइडी ने चार्जशीट दाखिल की और कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया। इसके बाद सरकार से अभियोजन की अनुमति मिल गयी। इस आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचिका पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि पद दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराध में संरक्षण प्राप्त है कि सरकारी अनुमति से ही अभियोजन चलाया जाय। ड्यूटी से इतर अपराध किया जाता है तो अभियोजन की अनुमति लेनी जरूरी नहीं है।


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