जीका वायरस के लिए उत्तर प्रदेश में अलर्ट, केजीएमयू बना राज्य का नोडल जांच केंद्र
उत्तर प्रदेश को जीका वायरस के संक्रमण का खतरा हो सकता । फिलहाल जयपुर के 22 लोगों में संक्रमण मिलने के बाद यूपी सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है।
लखनऊ (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश को भी जीका वायरस के संक्रमण का खतरा हो सकता है। फिलहाल जयपुर के 22 लोगों में संक्रमण मिलने के बाद यूपी सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है। लखनऊ के केजीएमयू को जीका वारयस जांच के लिए राज्य का नोडल जांच केंद्र दिया गया है। प्रदेश के सभी हवाई अड्डों पर भी जीका को लेकर सतर्कता बढ़ाई गई है। हालांकि प्रदेश में अब तक इस वायरस की मौजूदगी का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इसकी हकीकत से जुड़ने के लिए इसके इतिहास पर नजर डालते हैं। वैसे इसका सबसे पहले 1947 में पता चला। तब से अब यह भारत से दूर ही रहा। इसका कोई तय इलाज भी नहीं है। हाल ही में एक भारतीय कंपनी ने इसका टीका बनाने का दावा किया है।
जीका वायरस को लेकर निर्देश
स्वास्थ्य विभाग ने उत्तर प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को जीका वायरस को लेकर निर्देश जारी कर दिए हैैं। स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में कहीं भी जीका वायरस से संक्रमित संदिग्ध मरीज मिलने पर उसका सैंपल किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) भेजने का निर्देश दिया गया है। एडीज मच्छरों के काटने से फैलने वाला जीका वायरस एक दिन में ही अपना असर दिखाने लगता है। वायरस के असर से बुखार के साथ जोड़ों में दर्द और सिरदर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। ध्यान रहे कि एडीज दिन में सक्रिय रहने वाला मच्छर है।
जीका वायरस का मानव पर प्रभाव
अधिकारियों के मुताबिक इस बीमारी के लिए फिलहाल कोई टीका नहीं बना और न ही कोई विशेष उपचार निर्धारित है। हां एक कंपनी टीके बनाने का दावा कर रही है। हालांकि इनके प्रयोग की अनुमति फिलहाल नहीं है। डॉक्टरों ने बच्चों और खास तौर पर गर्भवती महिलाओं को सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैैं। जीका वायरस वयस्क मानव पर अपना कोई स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ता है। कुछ रोगियों में बुखार, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, और लाल चकत्ते पड़ने की शिकायत होती है। इसका कोई परिचित इलाज नहीं है और इससे प्रभावित लोग पर्याप्त आराम करके स्वस्थ हो सकते हैं। हालांकि, भ्रूण या अजन्मे बच्चे पर जीका वायरस से गंभीर खतरा है। जब एक गर्भवती महिला वायरस से ग्रस्त हो जाती है, तो उसके गर्भ में पल रहा अजन्मा बच्चा माइक्रोसेफली से प्रभावित हो सकता है। इस स्थिति में पैदा होने वाले बच्चों का सिर असामान्य रूप से छोटा होता है और मस्तिष्क का विकास भी अवरूद्ध हो जाता है। यह उसके विकास में अवरोध, बहरापन, अंधापन और अन्य स्थायी जटिलताओं का कारण बनता है। जीका पूरी पीढ़ी को प्रभावित कर सकता है।
जीका वायरस संक्रमण का इतिहास
जीका वायरस संक्रमण के पहले तीन मामलों का गुजरात के अहमदाबाद (बापूनगर क्षेत्र) में नवंबर 2016 और फरवरी 2017 के बीच डेंगू परीक्षण के दौरान पता चला। जीका मच्छर जनित वायरस है जो एडीज मच्छर के काटने से मनुष्यों में फैलता है यह मच्छर दिन में सक्रिय रहता है। सबसे पहले इसके संक्रमण का युगांडा के जंगल 1947 में बंदरों में पता चला। 1952 में मनुष्यों में पहला जीका संक्रमण पाया गया। 2007 तक, जीका संक्रमण केवल अफ्रीका और एशिया के हिस्सों में पाया जाता था। 2007 में ओशिनिया से बड़े प्रकोप की सूचना मिली। 2016 में, ब्राजील में कई मामलों का पता चला।