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रोजा इफ्तार में अखिलेश यादव के शामिल नहीं होने से अजित समर्थक बेचैन

राष्ट्रीय लोकदल प्रत्याशी की जीत को भले ही गठबंधन का आगाज माना जा रहा हो परंतु बुधवार इफ्तार में अखिलेश के शामिल न होने के सियासी मायने कुछ अलग हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 07 Jun 2018 08:30 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jun 2018 08:31 PM (IST)
रोजा इफ्तार में अखिलेश यादव के शामिल नहीं होने से अजित समर्थक बेचैन
रोजा इफ्तार में अखिलेश यादव के शामिल नहीं होने से अजित समर्थक बेचैन

लखनऊ (जेएनएन)। कैराना संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में सपा के समर्थन से राष्ट्रीय लोकदल प्रत्याशी तबस्सुम की जीत को भले ही गठबंधन का आगाज माना जा रहा हो परंतु बुधवार को रोजा इफ्तार में अखिलेश यादव के शामिल न होने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। नवनिर्वाचित सांसद तबस्सुम का सपा मुख्यालय में अलग से स्वागत किया जाना भी कई वरिष्ठ रालोद नेताओं को अखर रहा है।

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सपा के रुख पर अजित समर्थकों की बेचैनी बेवजह नहीं है। उनका मानना है कि दोनों पार्टियों के बीच पिछली दोस्ती का अनुभव सुखद नहीं रहा है। अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर एक पूर्व विधायक का कहना है कि 2017 विधानसभा चुनाव के ऐन पहले सपा ने रालोद का झटका देते हुए गठबंधन से अलग कर कांग्रेस से हाथ मिला लिए थे। रालोद को मजबूरन अकेले चुनाव मैदान में उतरना पड़ा जबकि गत पांच नवंबर, 2016 को जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित समाजवादी पार्टी के रजत जंयती समारोह में लोहिया और चरण सिंह समर्थकों ने एकजुटता का संकल्प लिया था। इतना ही नहीं, रालोद मुखिया अजित सिंह ने मुलायम सिंह यादव को गठबंधन का नेता स्वीकारते हुए भाजपा विरोधी एकता में साथ देने का मंच से एलान किया था परंतु सपा ने ऐन मौके पर अजित को तन्हा छोड़ दिया।  

कैराना में जयंत को नहीं मिला लडऩे का मौका

रालोद में एक खेमे को कैराना उपचुनाव में जंयत चौधरी को संयुक्त प्रत्याशी न बनाने का भी मलाल है। उनका आरोप है कि कैराना में जाट मतदाताओं का रणनीतिक उपयोग सपा ने केवल अपने हित मेंं किया। रालोद के चुनाव चिह्न पर सांसद बनीं तबस्सुम मूलत: समाजवादी हैं। बुधवार को जिस तरह सपा दफ्तर में तबस्सुम का स्वागत रालोद नेताओं की गैरमौजूदगी में किया गया, उससे अनेक आशंकाओं को बल मिला। उल्लेखनीय है कि बुधवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश से जयंत चौधरी का मिलना तय था। ऐसे दोनों नेताओं की मौजूदगी में सांसद का स्वागत होता तो कोई आशंका न होती।  

रोजा इफ्तार से अखिलेश की दूरी से बढ़ी बेचैनी

रालोद की इफ्तार पार्टी ऐसे वक्त में आयोजित की गई है जब लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन तैयार करने की सुगबुगाहट जोरों पर है। इफ्तार पार्टी के लिए बसपा नेताओं को भी न्योता भेजा गया था परंतु कोई भी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए रालोद के कार्यालय न पहुंचा। बता दें कि कैराना उपचुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने फूलपुर और गोरखपुर ससंदीय क्षेत्रों की तरह मुखर होकर गैरभाजपाई उम्मीदवार को जीताने के लिए अपील न की थी। इसको रालोद के प्रति उनकी अप्रसन्नता से जोड़ा जा रहा है। रालोद के इफ्तार से अखिलेश द्वारा दूरी बनाने के कई कयास लगाए जा रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि महागठबंधन की कोशिश में जुटा सपा नेतृत्व बसपा की नाराजगी नहीं लेता चाहता। 


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