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स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर करोड़ों का खेल

प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर दवाओं और उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये की अनियमितताएं पाई गई हैं। अधिकारियों ने उन फर्म से भी दवाओं की आपूर्ति ले ली जिनके सैम्पल मानक के अनुरूप नहीं पाए गए। इसके अलावा कई उपकरण अनुमानित मूल्य से दोगुने दाम पर खरीदे

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2015 10:18 AM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2015 10:24 AM (IST)
स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर करोड़ों का खेल

इलाहाबाद (हरिशंकर मिश्र)। प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर दवाओं और उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये की अनियमितताएं पाई गई हैं। अधिकारियों ने उन फर्म से भी दवाओं की आपूर्ति ले ली जिनके सैम्पल मानक के अनुरूप नहीं पाए गए। इसके अलावा कई उपकरण अनुमानित मूल्य से दोगुने दाम पर खरीदे गए। एजी की आडिट में यह बात प्रकाश में आई है। इसकी रिपोर्ट सरकार को भी दी गई है।

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प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं दुरुस्त करने के लिए हाईकोर्ट में कई याचिका दायर कर चुके अधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एजी से इलाहाबाद के मोती लाल नेहरू मेडिकल कालेज, समेत प्रदेश के अन्य चिकित्सालयों की आडिट का ब्योरा मांगा था। आफिस ने तीन सालों का ब्योरा उन्हें उपलब्ध कराया है। इसमें लखनऊ के सीएसएम चिकित्सा विश्वविद्यालय के नाम पर खुले पीएलए एकाउंट में 17.75 करोड़ रुपये रखे जाने पर भी सवाल उठे हैं। कहा गया है कि इससे सरकार को 69.82 लाख रुपये की हानि हुई। शासनादेशों में स्पष्ट था कि उपकरणों के क्रय की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही धनराशि निकाली जाएगी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार सभी मंडलीय अपर निदेशकों को उन कंपनियों की सूची भेजी जा चुकी थी, जिन पर सैम्पल मानक के अनुरूप न पाए जाने की वजह से प्रतिबंधित थी। इसके बावजूद ऐसी कई कंपनियों से लाखों की दवाएं खरीदी गईं। इलाहाबाद के ट्रामा सेंटर के लिए 2010 में चार करोड़ 99 लाख रुपये के उपकरण खरीदे गए। आडिट जांच में पाया गया कि स्टाक बुक में इन उपकरणों की प्रविष्टि ही नहीं की गई थी। यह भी सत्यापित नहीं हो सका कि उन उपकरणों का प्रयोग विभाग में किया जा रहा है या नहीं।

आडिट टीम ने महानिदेशक की ओर से पांच उपकरणों की खरीद में एक करोड़ आठ लाख रुपये खर्च किए जाने पर भी आपत्ति जताई गई है। इनका अनुमानित मूल्य 51 लाख रुपये ही आंका गया था। कहा गया कि अनुमानित मूल्य का निर्धारण विभाग की ओर से दिए स्पेसिफिकेशन के आधार पर ही किया जाता है। ऐसे में दोगुना भुगतान का औचित्य समझ से परे है। इसी क्रम में जीवन रक्षक गैस सिलिंडर और केमिकल एवं किट रसायन की खपत पंजिका न बनाए जाने से धांधली की आशंका जताई गई। आडिट में पाया गया कि स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में उपकरण मंगाने के बाद भी उनका उपयोग नहीं किया गया। लगभग पौने दो करोड़ रुपये के उपकरण बेकार पड़े पाए गए, जिनका मरीजों के उपचार में कोई उपयोग नहीं हो रहा है और उनकी कीमत लगातार कम होती जा रही है। इलाहाबाद के सरोजनी नायडू अस्पताल की स्टाक बुक में डेढ़ लाख की औषधि कम अंकित किए जाने को भी अनियमितता की संज्ञा दी गई है।


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