सपा से गठबंधन फेल रहने पर रालोद में उठे सवाल, अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ने का आग्रह
रालोद के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने अजित सिंह व जयंत चौधरी को पत्र लिखकर कहा कि सपा से गठबंधन करने का फैसला पार्टी हित में नहीं रहा है। उपचुनाव में सपा से गठबंधन करके लड़े चुनाव में पार्टी का शर्मनाक प्रदर्शन रहने से कार्यकर्ताओं का अब मनोबल टूटने लगा है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद राष्ट्रीय लोक दल की बुरी गत होने से पार्टी में असंतोष गहराता दिखने लगा है। रालोद कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व को पत्र लिखकर गठबंधन की रणनीति पर पुनर्विचार करने और अस्तित्व बचाने के लिए अपने दम पर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटने का आग्रह किया है।
मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, बागपत व मुजफ्फरनगर आदि जिलों के तीन दर्जन से अधिक प्रमुख कार्यकर्ताओं ने रालोद अध्यक्ष अजित सिंह व उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को लिखे पत्र में कहा कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने का फैसला पार्टी हित में नहीं रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव में सपा से गठबंधन करके लड़े चुनाव में पार्टी का शर्मनाक प्रदर्शन रहने से कार्यकर्ताओं का अब मनोबल टूटने लगा है।
रालोद कार्यकर्ताओं के मुताबिक गत दो चुनावों के नतीजों ने साबित किया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता को गठजोड़ पसंद नहीं है। दोनों ही दलों का वोट एकदूसरे को ट्रांसफर नहीं हो पा रहा है। वरिष्ठ नेता जगवीर सिंह का कहना है कि बुलंदशहर उपचुनाव में रालोद उम्मीदवार को जिस तरह स्थानीय जनता ने खारिज किया वह पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। रालोद को उपचुनाव में समाजवादी पार्टी का समर्थन होने के बावजूद मात्र 7,286 वोट ही प्राप्त हो सके। गौर करने की बात है कि सपा का मुस्लिम-यादव वोटबैंक भी रालोद को नहीं मिल सका।
रालोद के एक पूर्व विधायक का कहना है कि चिंता की बात यह है कि उनके प्रत्याशी प्रवीण कुमार सिंह को कांग्रेस और नवगठित आजाद समाज पार्टी से भी कम वोट हासिल हो सके। इससे बेहतर प्रदर्शन तो गत वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में रहा था जब बुलंदशहर सीट पर रालोद को अकेले लड़ने पर 17,218 वोट मिल गए थे। उन्होंने कहा कि अमरोहा की नौगावां सादात सीट पर भी समाजवादी पार्टी को रालोद के साथ होने का कोई लाभ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि रालोद नेतृत्व समय रहते नहीं चेता तो पार्टी में बड़ा बिखराव भी संभव है।
बसपा व भाजपा की लगीं निगाहें : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन कारगर नहीं होते देखकर भारतीय जनता पार्टी के अलावा बहुजन समाज पार्टी ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि रालोद के जाट वोटबैंक में बिखराव होगा तो उसका लाभ उठाया जा सकता है। गठबंधन से हताश हुए नेताओं को जोड़ने का अभियान जारी है। सपा सरकार में मंत्री रहे कद्दावर नेता किरनपाल सिंह के गत दिनों दलबल सहित भाजपा में शामिल होने को इसी मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि बड़ी संख्या में रालोद के नेता भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी में सपा-रालोद गठबंधन सिरे नहीं चढ़ पाने का सुकून है। बसपाइयों का कहना है कि ऐसे में पश्चिमी जिलों में दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत होगा। इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बसपा प्रमुख ने अन्य राज्यों में लगे अपने काडर के नेताओं को बुलाकर उन्हें जिम्मेदारी सौंपना शुरू कर दिया है।