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लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर के साथ क्यों जोड़ा जाता है बाबा नीब करौरी का नाम; जानें-इतिहास

26 जनवरी यानी बुधवार को लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर का स्थापना दिवस है। श्रद्धालु कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए मंदिर का 55वां स्थापना दिवस मनाएंगे। गोमती तट स्थित बाबा के पुराने आश्रम के साथ ही मंदिर परिसर में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ पूजन-अर्चन करेंगे।

By Vikas MishraEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 08:01 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 03:19 PM (IST)
लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर के साथ क्यों जोड़ा जाता है बाबा नीब करौरी का नाम; जानें-इतिहास
1960 में गोमती में बाढ़ आ गई थी और गोमती के किनारे बाबा का आश्रम डूब गया था।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। हनुमान सेतु मंदिर का 55वां स्थापना दिवस 26 जनवरी को मनाया जाएगा। कोरोना गाइड लाइन के साथ आरती पूजन के साथ आयोजन होगा। गोमती तट स्थित बाबा के पुराने आश्रम के साथ ही मंदिर परिसर में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ पूजन होगा। हनुमान सेतु मंदिर के आचार्य चंद्रकांत द्विवेदी ने बताया कि बाबा नीब करौरी ने मंदिर की स्थापना 1967 में की थर। 1960 में गोमती में बाढ़ आ गई थी और गोमती के किनारे बाबा का आश्रम डूब गया था।

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बाबा ने तपोस्थली खाली न करने का निर्णय लिया। सरकार की ओर से गोमती के पुल का निर्माण करने का प्रस्ताव आया और उसी के साथ हनुमान जी के मंदिर स्थापना का भी बाबा ने निर्णय लिया। 26 जनवरी 1967 में बाबा नीब करौरी ने हनुमान सेतु मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर परिसर में हनुमान जी की प्रतिमाओं के साथ ही अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती हैं। मंदिर परिसर के एक भाग में बाबा की प्रतिमा मौजूद है जहां श्रद्धालु बाबा के दर्शन कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। जयंती के अवसर पर श्रद्धालुओं की ओर से पुष्पांजलि के साथ आरती होगी। मंदिर समिति के अध्यक्ष सदाकांत और सचिव दिवाकर त्रिपाठी के संयोजन वार्षिकोत्सव मनाया जाएगा। 

आगरा से लखनऊ आए थे बाबाः मंदिर के आचार्य चंद्रकांत द्विवेदी ने बताया कि बाबा नीब करौरी ने प्रदेश में कई मंदिरों का निर्माण कराया। बाबा का जन्म आगरा के कुंडला में 1903 को मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष को हुआ था। तभी से उनका जन्म दिन इस तिथि को मनाया जाता है। फर्रुखाबाद के नीब करौरी गांव में एक संत से उनकी मुलाकात हुई। बस वहीं से उन्होंने गृह त्याग कर तप शुरू कर दिया और उन्हें बाबा नीब करौरी के नाम से जाना जाने लगा। 1940 में बाबा जी लखनऊ आए थे। 1973 में बाबा ने शरीर का त्याग किया और मंदिर में 1993 में बाबा की प्रतिमा की स्थापना की गई। बाबा ने राजधानी के साथ ही बाबा ने इलाहाबाद, शिमला, अल्मोड़ा, वृंदावन, कानपुर व नैनीताल में हनुमान जी के मंदिरों का निर्माण कराया।


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