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कभी अकबर ने बदला था नाम, इलाहाबाद को 450 वर्षों बाद मिला अपना पुराना नाम

संगम नगरी इलाहाबाद को 450 वर्षों के बाद आखिरकार अपना पुराना नाम वाप‍स मिल गया। कभी मुगल शासक सम्राट अकबर ने इसका नाम बदलकर प्रयागराज से इलाहाबाद (अल्‍लाहबाद) किया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 03:52 PM (IST)Updated: Thu, 18 Oct 2018 06:23 AM (IST)
कभी अकबर ने बदला था नाम, इलाहाबाद को 450 वर्षों बाद मिला अपना पुराना नाम
कभी अकबर ने बदला था नाम, इलाहाबाद को 450 वर्षों बाद मिला अपना पुराना नाम

नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। संगम नगरी इलाहाबाद को 450 वर्षों के बाद आखिरकार अपना पुराना नाम वाप‍स मिल गया। कभी मुगल शासक सम्राट अकबर ने इसका नाम बदलकर प्रयागराज से इलाहाबाद (अल्‍लाहबाद) किया था। पुराणों में प्रयागराज का कई जगहों पर जिक्र मिलता है। रामचरित मानस में इलाहाबाद को प्रयागराज ही कहा गया है। कहा जाता है कि वन गमन के दौरान भगवान श्री राम प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर आए थे, जिसके बाद इसका नाम प्रयागराज पड़ा। मत्स्य पुराण में भी इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहां गंगा और यमुना बहती है। जिस वक्‍त भारत पर मुगलों का शासन था उस वक्‍त की भी कई किताबों और दस्‍तावेजों में इस शहर का जिक्र किया गया है। अकबर ने करीब 1574 में इस शहर में किले की नींव रखी थी। अकबर ने जब यहां पर एक नया शहर बसाया तब उसने इसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया था। 

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प्रयाग का पौराणिक रूप 

हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहां बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है।

गुप्‍त से अंग्रेजों के हाथ आने तक

भारतवासियों के लिये प्रयाग एवं वर्तमान कौशाम्बी जिले के कुछ भाग यहां के महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। यह क्षेत्र पूर्व में मौर एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुशान साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग निर्माण करवाया था। शहर में मराठों के आक्रमण भी होते रहे थे। इसके बाद अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। 1765 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इलाहाबाद भी सक्रिय रहा। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों की राजधानी था।

आध्‍यात्‍म नगरी है प्रयाग

प्रयागराज या इलाहाबाद प्राचीन काल से ही आध्‍यात्‍म की नगरी के तौर पर देखा जाता रहा है। आज भी लोगों के मन में इसके लिए अपार श्रद्धा का भाव साफतौर पर दिखाई देता है। जहां तक इसका नाम बदलने का सवाल है तो इसको लेकर पूर्व में कई बार आवाज उठती रही हैं। यूपी चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान भी इसके नाम बदलने को लेकर मांग उठी थी। उस वक्‍त योगी आदित्‍यनाथ ने वादा किया था कि यदि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी तो इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज जरूर किया जाएगा। इस बाबत कैबिनेट का ताजा फैसला इसी वादे की पूर्ति है। हालांकि नाम बदलने के बाद इस पर भी राजनीति शुरू हो गई है। 

फैजाबाद का नाम बदलने की मांग

यूपी राजस्व परिषद ने उल्लेख किया है कि प्राचीन ग्रंथों में कुल 14 प्रयाग स्थलों का वर्णन है, जिनमें से यहां के प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद किया गया, बाकी कहीं भी नाम नहीं बदला गया है। सभी प्रयागों का राजा प्रयागराज कहताला है। इलाहाबाद के बाद संत अब यह भी मांग करने लगे हैं कि फैजाबाद जिले का नाम भी अयोध्या या पौराणिक नाम साकेत पर रखा जाए। राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा सुझाव सरकार के सामने आया है। जिस पर जल्द कोई फैसला हो सकता है।

राजनीति का गढ़

देश की आजादी से पहले और बाद के कुछ वर्षों तक राजनीतिक गढ़ बना रहा है। इसका भारत की कई बड़ी हस्तियों जिसमें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम शामिल है, से सीधा संबंध रहा है। उनका बचपन यहीं पर बीता और उन्‍होंने राजनीति का ककहरा भी यहीं पर पढ़ा था। यहां ि‍स्थित आनंद भवन देश में राजनीतिक उतार-चढ़ाव का मूक गवाह आज भी है। 

स्वतत्रता आन्दोलन में अहम भूमिका

भारत के स्वतत्रता आन्दोलन में भी इलाहाबाद की एक अहम भूमिका रही। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इलाहाबाद की भूमि पर हुआ तो गांधी युग में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर लियाकत अली खान ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहां पर 1888, 1892 और 1910 में जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं स्थित 'मिंंटो पार्क' में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था।

चंद्रशेखर आजाद यहीं हुए थे शहीद

उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ इलाहाबाद क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आजाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेजों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आजाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रौलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून, 1920 में इलाहाबाद में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी इलाहाबाद में ही रखी गयी थी।

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