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महीनों का झंझट खत्म, अब कुछ घंटों में ही लग जाएगी बत्तीसी

केजीएमयू में लगी छह लाख की इंट्राओरल वेल्डिंग मशीन। राज्य के पहले सरकारी संस्थान में एडवांस डेंटल इंप्लांटेशन की सुविधा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 06:30 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 08:49 AM (IST)
महीनों का झंझट खत्म, अब कुछ घंटों में ही लग जाएगी बत्तीसी
महीनों का झंझट खत्म, अब कुछ घंटों में ही लग जाएगी बत्तीसी

लखनऊ, जेएनएन। दांत लगवाने में महीनों का झंझट का खत्म हो गया है। केजीएमयू में अब कुछ ही घंटों में पूरी बत्तीसी फिट कराई जा सकेगी। चिकित्सकों ने यहां एडवांस डेंटल इंप्लांटेशन की सुविधा शुरू की है। डेंटल विभाग के चिकित्सकों ने तीन मरीजों में इंट्राओरल वेल्डिंग तकनीक से दांत लगाने में कामयाबी हासिल की है।

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दरअसल, केजीएमयू में इंट्राओरल वेल्डिंग मशीन लगाई गई है। डेंटल विभाग में लगभग छह लाख की लगी यह मशीन सरकारी संस्थानों में इकलौती है। इसके जरिये मरीजों में एडवांस तकनीक से दांत लगाना शुरू किया गया है। प्रॉस्थोडांटिक्स विभाग के डॉ. लक्ष्य कुमार के मुताबिक अब कोई भी इंप्लांटेशन घंटों में ही किया जा सकता है। यहां तक कि कन्वेंशनल इंप्लांटेशन के बाद जहां दांत को लोड करने में तीन से चार माह का वक्त लगता था, अब नई तकनीकि में मरीजों को इंतजार नहीं करना पड़ेगा। कारण, पुराने इंप्लांट में जबड़े की हड्डी के ग्रो करने का इंतजार करते थे। अब छह से आठ घंटे में पूरी बत्तीसी लगाई जा सकती है।

लैब में नहीं, मुंह में बन जाता है फ्रेम

डॉ. लक्ष्य कुमार के मुताबिक पहले इंप्लांट लगाने के बाद व्यक्ति के जबड़ों की नाप ली जाती थी। इसके बाद लैब से निकिल क्रोम का फ्रेम बनाया जाता था। इसके बाद टुथ एंड जिंजाइवा बनाने के लिए लैब नाप जाती थी। मगर अब टाइटेनियम के वायर को मशीन से हीटिंग देकर मुंह में ही फे्रम बना देते हैं। ऐसे में डायरेक्ट टुथ एंड जिंजाइवा लगाकर दांतों को तत्काल लोड कर देते हैं। अब बेसल व कार्टिकल इंप्लांटेशन में भी तीन से चार दिन का वक्त नहीं लगेगा। 

वेल्डिंग से सभी दांतों पर समान लोड

डॉ. लक्ष्य कुमार के मुताबिक मरीज में टाइटेनियम का इंप्लांट पड़ता है। वहीं, नई तकनीक में वायर भी टाइटेनियम का डाला जाता है। यह धातु काफी सुरक्षित होती है। वहीं जितने भी दांत लगाए जाते हैं, सभी टाइटेनियम के वायर से कनेक्ट होते हैं। इससे व्यक्ति किधर से भी खाना खाए। आपस में सभी पर लोड शेयरिंग हो जाती है। इससे इंप्लांट की सफलता दर और बढ़ जाती है। 

पेसमेकर के मरीज के लिए बैन

जिन मरीजों के पेसमेकर पड़ा है। उनमें इंट्रा ओरल वेल्डिंग तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। डॉ. लक्ष्य के मुताबिक वेल्डिंग के वक्त मिली सेकेंड में वायर को दो हजार डिग्री की हीटिंग दी जाती है। ऐसे में व्यक्ति का पेसमेकर खराब होने का खतरा रहता है। वहीं, कक्ष में ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर भी वेल्डिंग नहीं की जा सकती है।

मुफ्त है वेल्डिंग तकनीक

डॉ. लक्ष्य कुमार के मुताबिक मरीज को इंप्लांट का शुल्क देना पड़ता है। इस पर तीन हजार से पांच हजार रुपये तक का खर्च आता है। वहीं, एक हजार रुपये सर्जिकल शुल्क तय है। इंट्रा ओरल वेल्डिंग का कोई शुल्क नहीं है। तीनों मरीजों को इस तकनीक का लाभ मुफ्त में दिया गया है। इंप्लांटेशन टीम में डॉ. शादाब मोहम्मद, डॉ. यूएस पाल भी शामिल रहे।


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