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लिखना जरूरी है : डराती नहीं आपकी डांट, कुछ भी गलत करने से बचाती है.. Lucknow News

संवाद से भरेगा बच्चों के जीवन में रंग। बच्‍चों में डाले अभिभावकों से संवाद की आदत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 10:23 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 11:17 AM (IST)
लिखना जरूरी है : डराती नहीं आपकी डांट, कुछ भी गलत करने से बचाती है.. Lucknow News
लिखना जरूरी है : डराती नहीं आपकी डांट, कुछ भी गलत करने से बचाती है.. Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। मम्मा-पापा, कई बार आपकी डांट से मुझे बुरा लगा। गलती चाहे मेरी ही क्यों न हो, पर डांट पड़ती है तो बुरा लगता ही है। फिर मैंने सोचा कि अगर आप लोग मुझे न डांटते, सख्ती न करते तो क्या होता? हो सकता है कि उस पल के लिए मुझे अच्छा लगता कि चलो डांट खाने से बच गए, लेकिन बाद में वह मेरे लिए नुकसानदेह ही होता। यह बात अब मैं धीरे-धीरे समझने लगी हूं..। आपका साथ ही मेरी ताकत है, इसे कभी मत अलग होने देना। 

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मैं जब छोटी थी तो सोचती थी कि आप दोनों की जिम्मेदारी है मुङो संभालना। अब बातें बदल गई हैं। परिवार जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है, अब मुङो इसका अहसास होने लगा है। आप लोगों ने जिस तरह से मेरे लिए अपनी जिम्मेदारी भरी नौकरी के बीच समय निकाला, उससे मुङो लगता है कि बच्चों के साथ अच्छा समय बिता पाना माता-पिता के लिए कितना अहम होता है। 

पापा आप लखनऊ में नौकरी करते हैं। मम्मा आप ज्यादातर समय लखनऊ से दूर रहीं। फिर भी आपने मुङो समय देने की भरसक कोशिश की। मेरे मन में आपकी इस कोशिश की और ज्यादा इज्जत बढ़ गई है। आप दोनों ने मुङो हमेशा अपनी बात रखने के जो मौके दिए, वह मेरी जिंदगी के लिए कितना जरूरी था, इसका भी अहसास है। 

मम्मा-पापा, मैं मानती हूं कि मुङो आप दोनों का जितना अपनापन और खुलापन मिला, उसने मुङो अपनी बात रखने की हिम्मत दी। कई बार पढ़ाई और व्यक्तिगत जीवन में ऐसे संकट आए जब मुङो बहुत हिम्मत करके आपके सामने अपनी बात रखनी पड़ी। 

आप दोनों ने बहुत ही सहजता से मेरी बात को न केवल समझा, बल्कि उसका हल भी निकाला। मुङो उस सोशल मीडिया की बिल्कुल जरूरत नहीं जो एक अलग ही दुनिया में बच्चों को ले जाती है। जहां अकेलापन है, नकली लोग हैं। कोई भी कठिनाई हो, आपने मुङो ये विश्वास दिया कि हम साथ मिलकर उनका सामना करेंगे। मम्मी-पापा, आपने मुङो सिखाया कि कभी कोई संकट हो तो उस पर बात जरूर करो। हमसे न सही तो अपने किसी बहुत अच्छे दोस्त से ही शेयर कर लो। कोई न कोई हल जरूर निकलेगा

मम्मा पापा, आपने मुझे सबसे घुल-मिलकर रहना सिखाया। अच्छे संस्कार दिए, जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत टीन एज में ही होती है। आप दोनों ही नहीं, भइया जो मुंबई में होने के बाद भी मेरे अच्छे दोस्त की तरह न केवल मुङो याद करता है, बल्कि मुझसे बात भी करता है। उसका झगड़ना और चिढ़ाना भी मुङो अच्छा लगता है।

मम्मा-पापा आपका हर बात के लिए शुक्रिया।

आपकी अक्षरा । (अक्षरा मिश्र, कक्षा नौ ए, लॉरेटो कॉन्वेंट)

बच्‍चों की जिंदगी घर से निखरती है 

बच्चों में जिंदगी जीने की कला घर से ही निखरती है। माता-पिता, दादा-दादी ही उसके पहले गुरु होते हैं। यह बच्चों में सामाजिक व सांस्कृतिक विचारों को ढालने का काम करते हैं। पहले जहां एकाएक समाज में रिश्तों के बिखराव का दौर शुरू हुआ और एकल परिवारों को बढ़ावा मिला, वहीं अब माता-पिता दोनों में नौकरी की चाहत ने बच्चों की जिंदगी में सूनापन ला दिया। ऐसे में माता-पिता का बच्चे के साथ ‘टाइम शेयरिंग’ काफी कम हो गया। अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। उनका मन बहलाने के लिए मोबाइल समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद कम उम्र में ही थमा रहे हैं। ऐसे में मोबाइल, इंटरनेट ने उनके बीच कम्युनिकेशन गैप को और बढ़ा दिया है। यह उनके भटकाव का कारण भी बन रहा है। दूसरी ओर बच्चों पर पढ़ाई का दबाव काफी हो गया है। भारी-भरकम कोर्स में दिमाग खपाने के बाद वह मां-बाप के बजाए मोबाइल में समय दे रहे हैं। ऐसे में स्थिति और बिगड़ती जा रही है। वह रिश्तों के बजाए टेक्नोलॉजी के करीब आ रहे हैं।

(अम्बरीश कुमार) अम्बरीश कुमार, मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर, केजीएमयू

 बच्‍चों से करें संवाद 

  • अपने बच्चों को लाएं करीब
  • माता-पिता समय निकालकर बच्चों के साथ समय बिताएं।
  • उनके साथ संवाद स्थापित करें।
  • बच्चों में इनडोर गेम के बजाए आउटडोर गेम को बढ़ावा दें।
  • उन्हें पार्क व मोहल्ले के बच्चों संग खेलने की छूट दें।
  • बच्चों के स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, दोस्तों से फीडबैक लें।

जागरण की इस पहल के बारे में अपनी राय और सुझाव निम्न मेल आइडी पर भेजें।

sadguru@lko.jagran.com


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