तो फिर जिला उपभोक्ता अदालतों में कैसे मिलेगा न्याय
राज्य में आयोग व जिला फोरमों में सदस्यों के चयन के लिए न तो नीति निर्धारित की जा सकी है और न ही वेतन तय करने के संबंध में कोई पहल ही की गई है।
लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। बीती 26 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल कंज्यूमर कॉन्फ्रेंस में उपभोक्ताओं को सशक्त करने की बात कही थी। इससे उपभोक्ताओं में बड़ी उम्मीद जागी थी। एक साल गुजरने को है, उपभोक्ताओं के हाथ अभी भी खाली हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों का अनुपालन तक प्रदेश सरकार नहीं कर सकी है। राज्य में आयोग व जिला फोरमों में सदस्यों के चयन के लिए न तो नीति निर्धारित की जा सकी है और न ही वेतन तय करने के संबंध में कोई पहल की जा सकी है। ऐसे में कोर्ट की अवमानना का मामला भी बन सकता है। बचाव में आए अधिकारियों ने मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष प्रजेंटेशन दिया।
दरअसल, प्रदेश में स्थित जिला उपभोक्ता अदालतों में से करीब पचास फीसद कोरम पूरा न होने के कारण निष्क्रिय पड़ी हैं। उपभोक्ता अदालतों में सदस्यों के कुल 158 पद हैं। इनमें से 95 पद रिक्त चल रहे हैं। यही नहीं, बीस जिला अदालतों में अध्यक्ष पद भी रिक्त चल रहा है। राज्य आयोग में सालों से लंबित मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए दस बेंचों का गठन किया गया था। नियुक्ति न होने की वजह से मात्र दो बेंच ही सुनवाई कर रही हैं। एक्ट के अनुसार तीन माह में न्याय मिलना चाहिए, जबकि उपभोक्ताओं को इसके लिए वर्षों इंतजार करना पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की हो रही अवहेलना
उपभोक्ता अदालतों में सदस्यों की चयन प्रक्रिया के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जज अजीत पसायन की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। कमेटी ने देश भर में उपभोक्ता अदालतों में चयन प्रक्रिया एक हो, इसके लिए लिखित परीक्षा के साथ साक्षात्कार की सिफारिश की थी। वहीं राज्य आयोग के सदस्यों का वेतन शासन के विशेष सचिव और जिला फोरमों में तैनात सदस्यों का वेतन शासन के उप सचिव के समतुल्य किए जाने के आदेश दिए गए थे। इसके अतिरिक्त सदस्यों को अवकाश दिए जाने की भी सिफारिश की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को इन सिफारिशों पर अमल करते हुए तीन माह में चयन प्रक्रिया पूरी किए जाने के आदेश बीती 18 मई को दिए थे। प्रदेश सरकार को भी 18 सितंबर तक रिक्त पदों पर चयन प्रक्रिया पूरी कर लेनी थी।
पांच लाख तक के वाद निश्शुल्क दायर कर सकेंगे
जिला उपभोक्ता फोरमों में दायर किए जाने वाले पांच लाख तक के वाद अब निश्शुल्क दायर किए जा सकेंगे। मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1987 में संशोधन किया है। इसके अनुसार पांच लाख रुपये तक के वाद निश्शुल्क दायर किए जा सकेंगे। इसके लिए वर्तमान में 100 रुपये न्यायालय शुल्क लगता था। इसी प्रकार पांच से दस लाख रुपये तक के वाद के लिए मात्र 200 रुपये और दस से 20 लाख रुपये तक के वाद के लिए 400 रुपये न्यायालय शुल्क ही देय होगा।
क्या कहते हैं अधिकारी
जिला उपभोक्ता फोरम (प्रथम), लखनऊ के न्यायिक सदस्य राजर्षि शुक्ला ने बताया कि छोटे उपभोक्ताओं को इससे बड़ी राहत मिलेगी। जिला फोरमों में हर माह 100 से 120 ऐसे वाद दायर होते हैं। इनमें आमतौर पर फ्रिज, टीवी, मकान, प्लाट, रेलवे आदि से जुड़ी शिकायतें आती हैं।