एक छत के नीचे भारत-पाक, तीस वर्षों से कर रहे नागरिकता लेने का प्रयास
भारतीय नागरिकता के लिए तीस वर्षों से प्रयास कर रहे पाक से आए 70 से अधिक परिवार।यहां जन्मे बच्चों को मिल चुकी है भारतीय नागरिकता, लेकिन माता-पिता सरकारी सुविधाओं से वंचित।
लखनऊ, (राजीव बाजपेयी)। रामदेव आसवानी विजय नगर में रहते हैं और एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते हैं। पत्नी के अलावा दो बच्चे हैं। बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और बेटी इंटर की छात्रा है। आप सोच रहे होंगे कि इसमें खास क्या है। दरअसल, इस परिवार के बच्चे तो हिंदुस्तानी हैं, लेकिन माता-पिता अब तक पाकिस्तानी नागरिक हैं। नागरिकता हासिल करने की इनकी जंग तीस साल बाद भी जारी है।
यह कहानी अकेले रामदेव की नहीं है। राजधानी में 70 से अधिक ऐसे परिवार हैं, जो दशकों से भारत की नागरिकता हासिल करने के इंतजार में हैं। 1990 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से रामदेव अपने भाई के साथ लॉन्ग टर्म वीजा पर आकर बसे थे। नागरिकता न होने से रामदेव का बैंक एकाउंट, आधार और राशन कार्ड तक नहीं बना है। उनको किसी तरह की सरकारी सुविधा भी नहीं मिलती। शहर से बाहर जाने पर थाने को सूचित करना पड़ता है। बच्चों का दाखिला कराने से लेकर घर चलाने तक में इन्हें रिश्तेदारों का सहारा लेना पड़ता है।
पाकिस्तानी दूतावास के लगा रहे चक्कर
1996 में रामदेव की शादी पाकिस्तान से ही आए एक परिवार की शकुंतला हासवानी से हो गई। अब इनका बेटा आकाश 23 वर्ष और बेटी कोमल 17 वर्ष की हो गई हैं। बच्चे यहीं जन्मे। लिहाजा, उनको तो भारत की नागरिकता मिली गई है, लेकिन दंपती को अब तक नागरिकता का इंतजार है। दंपती जिला प्रशासन से लेकर पाकिस्तानी दूतावास तक के चक्कर लगा रहे हैं।
गृहमंत्री की पहल से जगी उम्मीद
लॉन्ग टॅर्म वीजा पर पाक से आए लगभग सत्तर परिवार पहचान के लिए लड़ रहे हैं। दिसंबर में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इन लोगों को नागरिकता दिलाने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद उम्मीद जगी है।
एडीएम पश्चिम संतोष वैश्य के मुताबिक गृहमंत्री के निर्देश के बाद करीब 80 परिवारों को नागरिकता दिलाई जा चुकी है। पाकिस्तानी दूतावास से सहयोग नहीं मिल रहा है। दस्तावेज पूरे होते ही शेष लोगों को भी नागरिकता दे दी जाएगी।