लखनऊ की 58.4 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ि़त, शुरू होगा जागरूकता कार्यक्रम Lucknow News
लखनऊ सीएमओ ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे -4 की रिपोर्ट पर की चर्चा। एनीमिया मुक्त भारत अभियान के तहत किया जाएगा महिलाओं को जागरूक।
लखनऊ, जेएनएन। खून की कमी महिलाओं में होने वाली आम समस्या है, जिसके चलते प्रसव के दौरान ज्यादातर महिलाएं अपनी जान गवां देती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 के मुताबिक प्रदेश में 15 से 49 वर्ष की लगभग 52.4 फीसद महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं। लखनऊ की बात करें तो यहां 15 से 49 वर्ष की 58.4 फीसद महिलाएं खून की कमी यानी एनीमिया से पीड़ित हैं जो चिंता का विषय है। ये बातें, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ने कहीं। वह शुक्रवार को एनीमिया मुक्त भारत अभियान के तहत अंतर विभागीय बैठक में उन्होंने कहा कि लखनऊ में छह से 59 माह के लगभग 72 फीसद बच्चे और 15 से 49 वर्ष के लगभग 22.9 फीसद पुरुष भी खून की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं, 15-49 वर्ष की लगभग 35.4 फीसद गर्भवती महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं।
मार्च 2020 तक चलेगा अभियान : उन्होंने कहा कि यह अभियान गर्भ से लेकर 19 वर्ष तक के किशोर-किशोरियों को ध्यान में रखकर उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाएगा। 31 मार्च 2020 तक आइईसी (व्यापक प्रचार-प्रसार) अभियान चलाया जाएगा। चिकित्सा स्वास्थ्य परिवार कल्याण बेसिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, पंचायती राज, एनसीसी व एनएसएस, स्काउट एंड गाइड विभाग मिलकर इसे चलाएंगे।
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी व एनीमिया मुक्त भारत अभियान के नोडल अधिकारी डॉ. एके दीक्षित ने कहा कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य समाज में खून की कमी से ग्रसित छह वर्ष से 19 वर्ष तक के किशोर-किशोरियों और गर्भवती व धात्री माताओं में हर साल तीन फीसद की दर से गिरावट लाना है। मुख्य रूप से पोषक तत्वों की कमी के कारण खून की कमी हो जाती है। जिसके चलते शारीरिक व मानसिक विकास बाधित होता है। प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आ जाती है। टाइप टू मधुमेह मरीजों को दिल और आंखों की समस्याओं का जोखिम ज्यादा बना रहता है। टाइम टू डूमोरटीएम की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ सहित दिल्ली, जयपुर, चंडीगढ़ आदि में दिल और आंख की बीमारियां चिन्ताजनक बनी हुई है। किंगजार्ज मेडिकल कालेज के पूर्व प्रोफेसर डॉ. एम.के. मित्र ने कहा नई डायग्नोज़ की गई टाईप 2 डायबिटीज़ के मरीजों की इलाज की पारंपरिक विधि एक दवाई या मोनोथेरेपी एवं आहार में परिवर्तन और शारीरिक व्यायाम से शुरू होती है।
किशोरियों में एनीमिया आगे जाकर गर्भावस्था के लिए खतरा बनता है। शिक्षा एवं सूचना अधिकारी योगेश रघुवंशी, डिस्टिक्ट अर्ली इंटर्वेशन मैनेजर डॉ. गौरव सक्सेना, जिला कार्यक्रम प्रबंधक विष्णु प्रताप व वात्सल्य से डॉ. जोहा मौजूद रहे।