Move to Jagran APP

प्रदेश में स्वयं सहायता समूह बनाकर 34 हजार महिला सफाई कर्मियों की होगी भर्ती

इन्हें पांच हजार रुपये व कूड़े से होने वाली आमदनी में हिस्सा दिया जाएगा। सरकार प्रत्येक 200 घरों में एक महिला सफाई कर्मी रखेगी।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 11:44 AM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 11:44 AM (IST)
प्रदेश में स्वयं सहायता समूह बनाकर 34 हजार महिला सफाई कर्मियों की होगी भर्ती
प्रदेश में स्वयं सहायता समूह बनाकर 34 हजार महिला सफाई कर्मियों की होगी भर्ती

लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। प्रदेश सरकार सूबे में साफ-सफाई व कचरा प्रबंधन के लिए 'अंबिकापुर मॉडल अपनाने जा रही है। इसके तहत एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में स्वयं सहायता समूह बनाकर महिला सफाई कर्मी रखी जाएंगी। पहले चरण में 34 हजार महिला सफाई कर्मियों को रखने की योजना है। जब तक यह समूह अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे तब तक सरकार इनकी मदद करेगी। इन्हें पांच हजार रुपये व कूड़े से होने वाली आमदनी में हिस्सा दिया जाएगा। सरकार प्रत्येक 200 घरों में एक महिला सफाई कर्मी रखेगी।

loksabha election banner

वर्तमान में प्रदेश में 15500 टन प्रति दिन कूड़ा निकलता है। इसमें से मात्र 4615 टन प्रति दिन कूड़ा ही निस्तारित हो पाता है। प्रदेश में कुल 12007 वार्ड हैं इनमें से केवल 7413 वार्डों के घरों से ही कूड़ा उठता है। यानी 4594 वार्ड ऐसे हैं जहां से डोर-टू-डोर कूड़ा नहीं उठता है। इनमें ज्यादातर छोटे शहर हैं। इन शहरों के लिए सरकार ने छत्तीसगढ़ के 'अंबिकापुर मॉडल को अपनाने का निर्णय लिया है। इसमें महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाकर घरों से कूड़ा उठवाया जाएगा।

नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि पहले चरण में 34 हजार महिला सफाई कर्मी रखी जाएंगी। इन्हें एक-डेढ़ साल तक स्वच्छ भारत मिशन से पांच हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाएगा। साथ ही इन्हें कूड़े से होने वाली आमदनी में भी हिस्सा दिया जाएगा। महिला स्वयं सहायता समूह घरों से कूड़ा उठाने के लिए 50 से 100 रुपये महीने का यूजर चार्ज भी लेंगी। एक-डेढ़ साल बाद नगरीय निकाय व समूह आर्थिक रूप से समृद्ध हो जाएंगे। महिला स्वयं सहायता समूह को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन से भी जोड़ा जाएगा। इसके इनकी आमदनी और बढ़ जाएगी।

क्या है अंबिकापुर मॉडल

छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर नगर निगम है। वहां का कचरा प्रबंधन मॉडल पूरे देश में सराहा जा रहा है। वहां नगर निगम कचरे से ही करीब 17 से 18 लाख रुपये प्रति माह की आमदनी कर रहा है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सुबह घरों से कचरा एकत्र करती हैं। इसके बाद कचरे को सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सेंटर लाया जाता है। शहर में तीन-चार वार्ड पर एक सेंटर बनाया गया है।

इसमें सूखे व गीले कचरे को अलग-अलग किया जाता है। कूड़े से निकलने वाले कबाड़ को बेच दिया जाता है। इसके बाद गीले कचरे में शहर के बड़े सब्जी बाजार से निकलने वाली सड़ी-गली सब्जियां मिला दी जाती हैं। तीन टन क्षमता वाली ऑर्गेनिक वेस्ट कन्वर्टर मशीन में इसे डाल दिया जाता है। इसमें 60 से 65 दिनों में जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती है।

यह है विशेषता

-देश का पहला शहर जहां नहीं है डंपिंग ग्राउंड।

-शत-प्रतिशत कचरे का हो रहा है प्रबंधन।

-गीले कचरे से बनने वाली खाद से हो रही लाखों की कमाई।

-महिलाओं के हाथ में कचरा प्रबंधन की पूरी कमान।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.