Pandit Birju Maharaj: पंडित बिरजू महाराज से जुड़ा लखनऊ में कथक का गौरवशाली इतिहास
Pandit Birju Maharaj Death इलाहाबाद की हंडिया तहसील के ईश्वरी प्रसाद जी से ही लखनऊ कथक घराने के पूर्वजों की वंश परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। कहा जाता है कि एक सौ पांच वर्ष की आयु में सांप के काटने से उनकी मृत्यु हुई और पत्नी सती हुई।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। पंडित बिरजू महाराज के पूर्वज ठाकुर प्रसाद, दुर्गा प्रसाद तथा मान सिंह कथक कला में निपुण थे। अवध के नवाब अमजद अली शाह ने इनकी कला से प्रभावित होकर यह ड्योढ़ी उनके निवास स्थान के रूप में दी। इसके बाद अवध के पांचवें नवाब वाजिद अली शाह 1847-56 के समय लखनऊ घराने की कथक कला चरम पर पहुंची। अवध के नवाबों की कलाप्रियता ने भरत के अलग-अलग क्षेत्रों से, जिसमें कश्मीर के भांड, ब्रज के रास लीलाधारी, दिल्ली से मुगल शैली के नृत्यकारों को 1754 में लखनऊ में बसाया।
इलाहाबाद की हंडिया तहसील के ईश्वरी प्रसाद जी से ही लखनऊ कथक घराने के पूर्वजों की वंश परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। कहा जाता है कि एक सौ पांच वर्ष की आयु में सांप के काटने से उनकी मृत्यु हुई और पत्नी सती हुई। ईश्वरी प्रसाद जी के तीन पुत्र अड़गू जी, खड़गू जी और तुलाराम जी ने कथक परंपरा को आगे बढ़ाया। अड़गू जी ने अपने तीनों पुत्रों प्रकाश जी, दयाल जी और हरिलाल जी को नृत्य विद्या सिखाई।
प्रकाश महाराज के तीनों पुत्रों ठाकुर प्रसाद जी, दुर्गा प्रसाद जी और मान सिंह जी ने विरासत में मिली कथक कला काे नए रूप में प्रस्तुत कर अवध के नवाब अमजद अली शाह 1842-1847 के दरबार में सम्मानित नृतक के तौर पर स्थान प्राप्त किया। दुर्गा प्रसाद जी के तीनों पुत्रों बिंदादीन महाराज 1830, कालका महाराज और भैरों प्रसाद जी ने कथक कला को आगे बढ़ाया। बिंदादीन महाराज ने करीब 1500 ठुमरियां रचीं और कथक में भाव सौंदर्य को और ऊंचा स्थान दिया। कालका महाराज के पुत्र अच्छन महाराज 1893-1947, लच्छू महाराज 1901-1977 और शंभू महाराज 1904-1970 ने अहम योगदान दिया।
गुरु लच्छू महाराज ने अनेक शिष्यों को फिल्म व स्टेज के लिए तैयार किया। इनमें सितारा देवी, गोपी किशन, पदमा शर्मा, कपिला राज, कुमकुम धर, कुमकुम आदर्श और मालविका आदि शामिल हैं। पंडित अच्छन महाराज की तीनों पुत्रियों विद्यावती जी, सरस्वती जी व चंद्रावती जी एवं पुत्र पंडित बिरजू महाराज जी ने आधुनिक समाज के साथ जोड़कर पारंपरिक लखनऊ घराने की कथक संस्कृति को बचाए रखा। पंडित बिरजू महाराज ने कथक केंद्र, नई दिल्ली के निदेशक तथा गुरु पद पर कई वर्षाें तक काम किया।