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National Girl Child Day: 13 साल की उम्र में लक्ष्मी बन गईं बाल योद्धा, म‍िल‍िए बहराइच की बाल प्रधानमंत्री से

गांव महज पांच वर्ष पहले तक बाल विवाह और बाल मजदूरी जैसी कुप्रथा के भंवर में जकड़ा था। बेटियों के लिए पांचवी तक की शिक्षा अंतिम दीवार बन गई थी। ऐसे में चुन्ना की 13 वर्षीय बेटी लक्ष्मी ने अपनी सहेलियों के साथ संघर्ष का बीड़ा उठाया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 07:05 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 01:50 PM (IST)
National Girl Child Day: 13 साल की उम्र में लक्ष्मी बन गईं बाल योद्धा, म‍िल‍िए बहराइच की बाल प्रधानमंत्री से
आखिरकार रंग लाई जनजाति थारू समाज की बालिका की बाल विवाह व बाल मजदूरी के विरुद्ध जंग।

बहराइच, [मुकेश पांडेय]। कम नहीं ये किसी से साबित कर दिखलाएंगी, खोल दो बंधन हर मंजिल पा जाएगीं। ये पंक्तियां जनजाति थारू समाज की बेटी 18 वर्षीय लक्ष्मी पर सटीक बैठ रही है। उसने चार वर्ष के संघर्ष में अपने गांव को न केवल बाल विवाह एवं बाल मजदूरी जैसी कुप्रथा से निजात दिलाई, बल्कि तरक्की के द्वार पर ला खड़ा किया। शहर से 110 किलोमीटर दूर मिहींपुरवा ब्लॉक का थारू जनजाति बाहुल्य लोहरा गांव कतर्नियाघाट के जंगलों में बसा है। यह गांव महज पांच वर्ष पहले तक बाल विवाह और बाल मजदूरी जैसी कुप्रथा के भंवर में जकड़ा था। बेटियों के लिए पांचवी तक की शिक्षा अंतिम दीवार बन गई थी। ऐसे में चुन्ना की 13 वर्षीय बेटी लक्ष्मी ने अपनी सहेलियों के साथ संघर्ष का बीड़ा उठाया। क्षेत्र में काम कर रही सामाजिक संस्था देहात से संपर्क किया। संस्था के मार्गदर्शन में बाल संसद का गठन किया व इसकी बाल प्रधानमंत्री बनी।

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प्रशिक्षण के बाद लक्ष्मी ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन, जनसुनवाई, चाइल्ड लाइन के माध्यम से जिलाधिकारी, क्षेत्रीय विधायक को समस्याओं से लिखित रूप में अवगत कराना शुरू किया। इसका सकारात्मक नतीजा सामने आया। अब गांव में बाल विवाह व बाल मजदूरी जैसी कुप्रथाएं खत्म हो चुकी हैं। मां-बाप पहले बेटियों को कक्षा पांच से आगे पढऩे बाहर नहीं भेजना चाहते थे, वहां अब बालिकाओं की शिक्षा परवान चढ़ रही हैं। वह खुद भी इंटरमीडिएट की शिक्षा ग्रहण कर रही है। इस गांव की 14 बालिकाएं बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।  बकौल लक्ष्मी, आंगनबाड़ी व स्कूल अतिक्रमण का शिकार था। मुख्य मार्ग कीचड़ व गड्ढों से भरा था। गांव में बिजली नहीं थी। किसी भी घर में शौचालय नहीं था। अब लोहरा के सभी घरों में शौचालय, हर घर में बिजली, सोलर लाइट, पक्के रास्ते बन चुके हैं। आंगनबाड़ी व स्कूल हैं।

गांव आ चुका अमेरिकी छात्रों का अध्ययन दल

आदर्श गांव का खिताब पा चुके लोहरा गांव में सांस्कृतिक अध्ययन के लिए अमेरिकी छात्रों के कई दल दस्तक दे चुके हैं। देहात संस्था के मुख्य कार्यकारी जितेंद्र चतुर्वेदी बताते हैं कि यहां तीन साल में अमेरिका के डेढ़ सौ छात्र-छात्राओं का दल अपने प्रोफेसरों के साथ आ चुका है। इसमें हार्वर्ड, कैलीफोर्निया, न्यूयार्क, टेक्सास विश्वविद्यालय शामिल रहे।


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