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UP MLC Election 2021: सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चली बड़ी चाल, दो प्रत्याशी उतार चुनाव बनाया रोमांचक

UP MLC Election 2021 समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बड़ी चाल चल दी है पार्टी के पास आराम से सिर्फ एक सीट जीतने का संख्या बल है ऐसे में अखिलेश ने दो प्रत्याशियों का नाम जारी करके भाजपा के साथ अन्य के खेमे में खलबली मचा दी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 11:28 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 11:34 AM (IST)
UP MLC Election 2021: सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चली बड़ी चाल, दो प्रत्याशी उतार चुनाव बनाया रोमांचक
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने निश्चित तौर पर एक बड़ा सियासी दांव खेला

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में 12 सीट पर 28 जनवरी को होने वाले मतदान को लेकर भारतीय जनता पार्टी के साथ अन्य दल अभी प्रत्याशियों के चयन में लगे हैं कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बड़ी चाल चल दी है। समाजवादी पार्टी के पास आराम से सिर्फ एक सीट जीतने का संख्या बल है, ऐसे में अखिलेश यादव ने दो प्रत्याशियों का नाम जारी करके भाजपा के साथ अन्य दलों के खेमे में खलबली मचा दी है।

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समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बुधवार को विधान परिषद चुनाव के लिए दो कद्दावर नेताओं अहमद हसन और राजेंद्र चौधरी के नामों की घोषणा की तो सियासी जगत में इसकी गूंज आज तक सुनाई दे रही है। सपा ने विधान परिषद में दल नेता अहमद हसन को फिर से मैदान में उतारने के साथ पार्टी के प्रवक्ता तथा उत्तराखंड के प्रभारी राजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी घोषित किया गया है। पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के इस दांव ने बहुजन समाज पार्टी की उलझन बढ़ा दी है।

इसके साथ ही भाजपा को भी अब अपना 11वां प्रत्याशी मैदान में उतारने से पहले काफी सोचना पड़ेगा। प्रदेश विधान सभा में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या को देखते हुए उसे विधान परिषद की एक सीट पर कामयाबी मिलना तो तय था मगर दूसरी सीट के लिए जरूरी 32 वोटों के लिए सपा को दूसरे दलों के विधायकों की जरूरत पड़नी भी तय बात है। बीते राज्यसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के छह विधायक सपा के पाले में नजर आए थे। सपा को दूसरा प्रत्याशी जिताने के लिए 17-18 विधायकों के वोट चाहिए। ऐसे से कांग्रेस और सुभासपा के अलावा निर्दल विधायकों की भी जरूरत होगी।

सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने निश्चित तौर पर एक बड़ा सियासी दांव खेला है। जिसमें एक बड़ा जोखिम भी शामिल है। यदि सफल हुए तो वह एक तीर से कई शिकार करने में कामयाब होंगे। एक तरफ वह बसपा को भाजपा की बी टीम बताने में भी कामयाब हो जाएंगे। दूसरी तरफ वह अगर बसपा और भाजपा में बगावत दिखने में कामयाब होते हैं तो अगला विधान सभा चुनाव भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी के बीच होने का संदेश भी आसानी से स्थापित हो जाएगा। अगर बसपा अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है तो भी यह अखिलेश यादव की सीधी जीत होगी।

राज्यसभा चुनाव में रणनीतिक मात खाने के बाद सबक सीखे अखिलेश यादव इस बार पूरी तैयारी से हैं। सपा मुख्यालय में उन्होंने बुधवार को सभी विधायकों को बुला कर उन्होंने एमएलसी चुनावी रणनीति तय की। सपा विधायकों की संख्या पर्याप्त नहीं होने के बाद भी उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला लिया। पार्टी में आंतरिक असंतोष न पनपे इसलिए पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं अहमद हसन व राजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी तय किया गया। सपा को दूसरा उम्मीदवार जिताने के लिए अन्य पार्टियों की मदद लेगी ही पड़ेगी। ऐसे में बसपा के बागियों के अलावा कांग्रेस व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की भी जरूरत होगी।

12वीं सीट पर दिखेगा चुनाव का नया रंग

विधान परिषद चुनाव में सबसे चौंकाने वाली बात यह भी है कि बसपा ने विधान परिषद चुनाव के लिए दो फार्म खरीदे हैं। भाजपा ने खुद को सुरक्षित रखते हुए अभी दस फार्म ही लिए हैं और सपा ने भी दो फार्म लिए हैं। फिलहाल की स्थिति में 12 में से 11 सीटों पर तो कोई समस्या नहीं जहां भाजपा के 10 और सपा का एक उमीदवार आसानी से जीत जाएगा, लेकिन 12 वी सीट पर चुनाव यूपी की सियासत में नया रंग दिखाएगा यह निश्चित है। प्रदेश में फिलहाल 12वीं सीट पर बसपा और सपा ही आमने-सामने होंगी। माना जा रहा है कि बसपा को भाजपा का समर्थन मिल सकता है। निगाहें कांग्रेस के रुख पर भी रहेंगी। ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा का रुख भी देखने को मिलेगा। कांग्रेस का विधानमंडल दल भी टूटा हुआ है। कुल सात विधायकों वाली पार्टी के दो विधायक बागी हो चुके हैं। यह खुलेआम भाजपा के साथ हैं। बाकी बचे पांच विधायकों वाली कांग्रेस के नेता सपा को ही वोट देंगे। अब ऐसे में अगर अखिलेश यादव ने अपने दो प्रमुख चेहरों को मैदान में उतारने की घोषणा की है तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों ने कुछ सोचा जरूर होगा, क्योंकि यदि इनमे से कोई भी हारता है तो पार्टी की छवि को बड़ा धक्का लगेगा।

सपा को 16 अतिरिक्त वोट की जरूरत

महज 16 अतिरिक्त वोटों के साथ अपना दूसरा उम्मीदवार उतारने के बाद समाजवादी पार्टी को 16 अतिरिक्त वोटों की जरूरत पड़ेगी। और यदि किन्ही दो उमीदवारों को प्रथम वरीयता वाले 32 वोट नहीं मिले तो दूसरी वरीयता के वोटों से फैसला होगा। समाजवादी पार्टी की निगाह इस बार दूसरे दलों के असंतुष्टों पर लगी है। राज्यसभा के चुनावों के वक्त जिस तरह से बसपा के चार विधायक अचानक सपा के खेमे में आगए थे उस दृश्य को अगर दुहराया गया तो सपा एक बड़ा संदेश दे देगी। 


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