100 year old Lucknow University: लविवि सहेजेेगा अपनी सबसे पुरानी डिग्री, DIG के परिजन ने सौंपी
100 year old Lucknow University लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) से पहले कैनिंग कॉलेज से सिराजुद्दीन ने किया था इंटरमीडिएट। आजादी के बाद उप्र के पहले डीआइजी बने थे सिराजुद्दीन। 1922 में बीएससी करने वाले सिराजुद्दीन के पुत्र कर्नल फसीह ने सौंपे दस्तावेज।
लखनऊ, जेएनएन। 100 year old Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) पूर्व छात्र सिराजुद्दीन अहमद को दी गई सबसे पुरानी डिग्री फिर सहेजेगा। शुक्रवार को उनके पुत्र कर्नल फसीह अहमद ने कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय को यह दस्तावेज भेंट किए। सिराजुद्दीन ने 1922 में यहां से बीएसएसी की थी। यही नहीं, जब 1920 में लविवि कैनिंगकॉलेज था, तब उन्होंने इंटरमीडिएट भी यहीं पढ़कर पूरा किया। उसका भी प्रमाणपत्र कर्नल फसीह ने सौंपा। सिराजुद्दीन पहले इम्पीरियल पुलिस में भर्ती हुए। देश स्वतंत्र होने के बाद वे उप्र के पहले भारतीय डीआइजी बने।
मरहूम सिराजुद्दीन अहमद के पुत्र कर्नल फसीह अहमद शुक्रवार को लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंचे। यहां उनका विशेष अतिथि के रूप में स्वागत हुआ। इस दौरान कर्नल फसीह ने पिता की इंटरमीडिएट, बैचलर ऑफ साइंस और बैचलर ऑफ लॉ की मूल डिग्रियां विश्वविद्यालय को सौंपीं। उत्कृष्ट रूप से संरक्षित 100 साल पुरानी पहली डिग्री कर्नल फसीह के पिता की कैनिंग कॉलेज से मिले इंटरमीडिएट का प्रमाणपत्र है। दूसरी डिग्री कैनिंग कॉलेज से नवंबर 1920 में लखनऊ विश्वविद्यालय बने संस्था की पहले स्नातक पाठ्यक्रम की डिग्रियों में से एक है। कर्नल फसीह खुद भी लखनऊ विवि के छात्र रहे हैैं। कुलपति से भेंट के दौरान परिसर के बारे में पिता के सुनाए किस्से भी याद किए। बोले, यह विश्वविद्यालय उनके जीवन में प्रारंभिक शक्ति रहा। वहीं, कुलपति प्रोफेसर राय ने कर्नल फसीह को विवि के शताब्दी वर्ष में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए धन्यवाद दिया।
सिराजुद्दीन का सफर, इम्पीरियल पुलिस बल में हुए थे भर्ती
सिराजुद्दीन ने 1920 में इंटरमीडिएट पास कर नवगठित लविवि के पहले स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। उन्होंने 1922 में रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और जूलॉजी के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1925 में व्यावसायिक विधि की डिग्री भी पूरी की। उसी वर्ष उन्हें इम्पीरियल पुलिस बल के लिए चुना गया। जिस दिन भारत ने स्वतंत्रता हासिल की, वे उत्तर प्रदेश के पहले भारतीय डीआइजी बने।