Lucknow New Talent : भरतनाट्यम की ख्याति को और बढ़ाना चाहती हैं प्रख्याति
Lucknow New Talent शहर की युवा भरतनाट्यम कलाकार प्रख्याति श्रीवास्तव सिर्फ नृत्य नहीं नृत्य शास्त्र की भी बखूबी जानकारी रखती हैं। बोली मां को देखकर जागी नृत्य के प्रति रुचि। मेरे लिए भरतनाट्यम सिर्फ एक नृत्य विधा नहीं आराध्य आराधना का लयबद्ध रूप है।
लखनऊ, जेएनएन। नृत्य को ईश्वर से जुड़ाव का सशक्त और सात्विक माध्यम मानने वाली शहर की युवा भरतनाट्यम कलाकार प्रख्याति श्रीवास्तव सिर्फ नृत्य नहीं, नृत्य शास्त्र की भी बखूबी जानकारी रखती हैं। प्रख्याति जब कक्षा 11 में थीं, तब उन्होंने 19 जनवरी 2018 को अपना अरंगेत्रम पूरा किया। अरंगेत्रम को भरतनाट्यम की ग्रेजुएशन सेरेमनी भी कह सकते हैं। ये भरतनाट्यम की एक खूबसूरत परंपरा है। गुरु को जब लगता है कि शिष्य मंच पर अकेले उतरने के काबिल हो गया है, तब उसे ये मौका मिलता है। गुरु अमृत सिन्हा ने प्रख्याति पर विश्वास किया और प्रख्याति उनके विश्वास पर शत प्रतिशत खरा उतरीं। प्रख्याति को अवध और यूपी रत्न समेत कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
प्रख्याति बताती हैं, मां शालिनी श्रीवास्तव को हमेशा ही गाने और नृत्य का शौक रहा है। उनको देख-देखकर मुझ में भी नृत्य के प्रति रुचि जागी। मेरी पहली नृत्य गुरु मां ही बनीं। उसके बाद मैंने नृत्य विधाओं को समझना शुरू किया। मुझे भरतनाट्यम की भाव भंगिमाएं बेहद आकर्षक लगीं। मैंने मां से भरतनाट्यम सीखने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद सात साल की उम्र में गुरु शिष्य परंपरा के तहत कलाश्री अमृत सिन्हा जी से भरतनाट्यम सीखना शुरू कर दिया।
लुभाती हैं हाव भाव की शुद्धता और सटीकता
प्रख्याति के अनुसार भरतनाट्यम की हाव-भाव की शुद्धता और सटीकता पर विशेष जोर रहता है। प्राचीन समय से ही भरतनाट्यम विश्व भर में सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानजनक कला रूपों में से एक माना गया है। मैं अपनी मेहनत और लगन से इसकी प्रतिष्ठा और ख्याति को और बढ़ाना चाहती हूं। मेरे लिए भरतनाट्यम सिर्फ एक नृत्य विधा नहीं आराध्य आराधना का लयबद्ध रूप है। मैं इसी भाव के साथ भरतनाट्यम सीखना शुरू किया और अपने सपनों की ओर नित आगे बढ़ती जा रही हूं।