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Dussehra In Ayodhya: रामनगरी में दशानन के दलन से असत्य पर सत्य की विजय की पूर्णाहुति

Dussehra In Ayodhya सितारों से सज्जित रामलीला की नौवीं प्रस्तुति का आकर्षण 40 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन था। पुतले में आग लगते ही लक्ष्मणकिला का विशाल परिसर अन्याय-अनाचार के अंत के आलोक से आलोकित हो उठा।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 07:21 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 06:31 AM (IST)
Dussehra In Ayodhya: रामनगरी में दशानन के दलन से असत्य पर सत्य की विजय की पूर्णाहुति
सितारों से सज्जित रामलीला की नौवीं प्रस्तुति का आकर्षण 40 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन था।

अयोध्या, जेएनएन। Dussehra In Ayodhya: यूं तो रामकथा की शुरुआत से ही श्रीराम विजित हो रहे होते हैं और रावण परास्त हो रहा होता है, पर रामकथा की पूर्णाहुति होते-होते रावण ही नहीं उसका समग्र अस्तित्व काल कवलित हो उठता है और श्रीराम युगों-युगों तक के लिए अमरत्व की प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। यह सच्चाई पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित रसिक उपासना परंपरा की शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला के परिसर में चल रही नौ दिवसीय रामलीला के अंतिम दिन भी बखूबी प्रतिपादित हो रही होती है।

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प्रस्तुति की शुरुआत से ही रावण के सिर पर मृत्यु मंडरा रही होती है। महाबली भ्राता कुंभकर्ण और कुटिलता-क्रूरता से इंद्र को भी मात देने वाले प्रिय पुत्र मेघनाद को खोकर वह अत्यंत चिंतित है। उसके रनिवास सहित पूरी लंका में मातम पसरा है। रावण की भूमिका में रजत पट के जाने-माने अभिनेता शाहबाज खान रह-रह कर आह भरने के साथ अपने अहंकार को सहेज कर रावण की युगों पुरानी स्मृति जीवंत करते हैं। संकट की इस घड़ी में उसे अपने एक अन्य पुत्र अहिरावण की याद आती है। वह मंत्र शक्ति से अहिरावण का आह्वान करता है और अगले पल रावण के सम्मुख अहिरावण प्रकट होता है।

अहिरावण की भूमिका में बॉलीवुड के दिग्गज रजा मुराद होते हैं। हालांकि अपनी पहचान से मुक्त रजा मुराद अहिरावण की भूमिका को जीवंत कर रहे होते हैं। अहिरावण की छवि के अनुरूप कुटिल, कुचाली और दुर्दमनीय छवि के साथ। अहिरावण रावण को प्रणाम करता है और रावण उसे आयुष्मान भव का आशीर्वाद देते हुए संकट पर पूरा विवरण सुनाता है। पिता की तरह अहंकारी अहिरावण रावण को आश्वस्त करता है और श्रीराम एवं लक्ष्मण की ओर संकेत करता हुआ कहता है, मैं उन दोनों तपस्वियों को हर लाऊंगा और देवी की भेंट चढ़ा दूंगा।

अहिरावण अपने छल में कुछ हद तक कामयाब भी होता है। वह विभीषण का वेश धारण कर श्रीराम के शिविर में पहुंचता है। द्वार पर हनुमान जी को धोखा देता हुआ, वह श्रीराम-लक्ष्मण सहित रामादल के अन्य योद्धाओं को मूर्छित कर श्रीराम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक पहुंचता है और दोनों भाइयों की बलि देने की तैयारी शुरू करता है। उधर विभीषण जब पूजा के बाद रामादल के शिविर में लौटते हैं, तब हनुमान जी बेचैन मिलते हैं और श्रीराम-लक्ष्मण का कुछ पता नहीं चलता।

राक्षसों के रवैए से परिचित विभीषण को समझते देर नहीं लगती कि यह सब कुछ अहिरावण का किया-कराया है और वे हनुमान जी से कहते हैं कि वे अहिरावण के पाताल लोक जाकर श्रीराम और लक्ष्मण को शीघ्र वापस लाएं। अगले दृश्य में हनुमान जी पाताल लोक पहुंचते हैं। अहिरावण की नगरी के सामने मकरध्वज पहरा दे रहा होता है। छुप कर आगे बढ़ रहे हनुमान जी पर उसकी दृष्टि पड़ती है और वह हनुमान जी को आगे बढ़ने से रोकना चाहता है। इस बीच मकरध्वज स्वयं का परिचय हनुमान जी के पुत्र के रूप में देता है। हनुमान जी चकरा जाते हैं और कहते हैं कि मेरा तो कोई पुत्र ही नहीं है, तब मकरध्वज याद दिलाता है कि लंकादहन के समय उनके पसीने की धारा सागर तक बह कर आयी थी और उसे एक मछली ने पान कर लिया था।

दैवयोग से उसी मछली के गर्भ से मेरा जन्म हुआ। यद्यपि सेवक के धर्म से बंधे मकरध्वज और हनुमान जी में युद्ध होता है। हनुमान जी आसानी से मकरध्वज को बांध कर अहिरावण की नगरी में प्रवेश करते हैं। अगले दृश्य में अहिरावण देवी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की तैयारी कर रहा होता है। इसी बीच हनुमान जी प्रकट होते हैं और एक ही वार से अहिरावण की भुजा उखाड़ कर श्रीराम एवं लक्ष्मण को मुक्त कराते हैं। अगले पल वे नगर के द्वार पर लौट मकरध्वज को बंधन से मुक्त कर श्रीराम एवं लक्ष्मण के हाथों मकरध्वज का पाताल लोक की गद्दी पर राज्याभिषेक कराते हैं।

श्रीराम एवं लक्ष्मण को कंधे पर बैठा वापस रामादल के सैन्य शिवरि में लेकर पहुंचे हनुमान जी की भूमिका में बिंदु दारा सिंह अपने महान पिता बजरंगबली की भूमिका के पर्याय और दुनिया भर में अविजित पहलवान रहे दारा सिंह की याद दिला कर अपनी भूमिका से न्याय कर रहे होते हैं। अगला दृश्य रावण के पूजा कक्ष का है, वह युद्ध से पूर्व शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर रहा होता है।

पूजा के बाद वह अपनी चिर-परिचित चंद्रहास तलवार उठाता है, जो उसके हाथ से छूट कर गिर जाती है। उसे अपनी मृत्यु का भान होने लगता है। वह सोचता है यदि मारा भी गया, तो साक्षात नारायण के हाथों मारा जाऊंगा। कुछ पल के बाद वह युद्ध के मैदान में होता है। श्रीराम से सामना होने के पूर्व उसके सामने हनुमान जी होते हैं। हनुमान जी का मुक्का खाकर रावण कुछ देर के लिए मूर्छित होता है और चेतना लौटने पर पर वह श्रीराम से युद्ध करता है। मृत्यु से पूर्व रावण का पराक्रम चमत्कारिक होता है। अंत में विभीषण श्रीराम को उसकी नाभि पर प्रहार की सलाह देते हैं और इसी सलाह के अनुरूप श्रीराम एक साथ 31 बाण का संधान कर रावण की इहलीला समाप्त करते हैं।

अन्याय-अनाचार के अंत का आलोक : सितारों से सज्जित रामलीला की नौवीं प्रस्तुति का आकर्षण 40 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन था। पुतले में आग लगते ही लक्ष्मणकिला का विशाल परिसर अन्याय-अनाचार के अंत के आलोक से आलोकित हो उठा। यद्यपि कोरोना संकट के चलते दर्शकों की मौजूदगी न के बराबर थी, पर रावण का पुतला दहन होने के साथ जैसे पशु-पक्षी और हवाएं भी दशानन के दलन से उपजे आह्लाद का जश्न मना रहे थे। इस मौके पर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी एवं उनकी पत्नी तथा प्रख्यात गायिका मालिनी अवस्थी की मुख्य एवं विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूदगी रही।


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