Move to Jagran APP

Ayodhya Ram Mandir: सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा- अयोध्या का लाइव कार्यक्रम घर बैठे देखें लोग

Ayodhya Ram Mandir मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बीच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अयोध्या में भूमि पूजन के दौरान कोविड 19 के दृष्टिगत भीड़ ना होने देने की तैयारी में लगें।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 05:05 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 05:05 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir: सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा- अयोध्या का लाइव कार्यक्रम घर बैठे देखें लोग
Ayodhya Ram Mandir: सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा- अयोध्या का लाइव कार्यक्रम घर बैठे देखें लोग

लखनऊ, जेएनएन। रामनगरी अयोध्या में पांच अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भूमि पूजन तथा शिलान्यास की जोरदार तैयारियों के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ की वरीयता लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने की भी है। इसी कारण उन्होंने लोगों से अपील की है कि अयोध्या में पांच अगस्त को होने वाले भूमि पूजन का कार्यक्रम लोग घर बैठे लाइव देखें।

loksabha election banner

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बीच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अयोध्या में भूमि पूजन के दौरान कोविड 19 के दृष्टिगत भीड़ ना होने देने की तैयारी में लगें। सरकार का प्रयास कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए इस भव्य एवं दिव्य आयोजन को संपन्न कराना है। इसके साथ सीएम योगी आदित्यनाथ ने भूमि पूजन के दौरान कोविड-19 और सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखने की अपील की है। सीएम योगी ने कहा कि आमजन घर में रहकर इस ऐतिहासिक कार्यक्रम को लाइव देखें। उन्होंने कहा कि चार व पांच अगस्त को लोग घरों में देव मंदिरों में दीप जलाएं। इस दौरान अखंड रामायण का पाठ करें।

वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा में उलझी रही अवधपुरी

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारी अवधपुरी वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा के भंवर जाल में उलझी रही। अब यह आध्यात्मिक और आधुनिक संस्कृति का नया प्रमिमान बनकर उभरेगी। यहां रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। इसी बीच विगत तीन वर्षों में विश्व ने अयोध्या की भव्य दीपावली देखी है, अब यहां धर्म व विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी।

पांच को नए युग का शिलान्यास

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पांच अगस्त को भूमिपूजन व शिलान्यास न केवल मंदिर का है वरन एक नए युग का भी है। यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है। यह युग मानव कल्याकण का है। युग लोककल्याण के लिए तपोमयी सेवा का है। यह युग रामराज्य का है। यहां पर भाव-विभोर करने वाले इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रत्येक देशवासी का मन प्रफुल्लित होगा, हर्षित-मुदित होगा। किन्तु स्मरण रहे, प्रभु श्री राम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है। अब इस उत्साह के बीच भी हमें संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाये रखना है क्योंकि यह भी हमारे लिए परीक्षा का क्षण है।

मुख्यमंत्री ने आह्वान किया है कि विश्व के किसी भी भाग में मौजूद समस्तद श्रद्धालुजन चार व पांच अगस्त को अपने-अपने निवास स्थान पर दीपक जलाएं। पूज्य संत एवं धर्माचार्यगण देवमंदिरों में अखण्ड रामायण का पाठ एवं दीप जलाएं। निर्माण का स्वतप्नय पालकर पवित्र तप करने वाले तथा ऐसे ऐतिहासिक क्षण को देखे बिना गोलोक पधार चुके अपने पूर्वजों का स्मतरण करें और उनके प्रति कृतज्ञता व्यषक्तो करें। पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रभु श्रीराम का स्तूवन करें।

उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृतति के प्राण प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली हमारे शास्त्रों में मोक्षदायिनी कही गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सरकार इस पावन नगरी को पुन: इसी गौरव से आभूषित करने के लिए संकल्पबद्ध है। श्रीअयोध्या जी वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अंकित हो और इस धर्मधरा में रामराज्य की संकल्पना मूर्त भाव से अवत्रित हो इसके लिए हम नियोजित नीति के साथ निरन्तर कार्य कर रहे हैं। प्रधानमंत्री सवा सौ करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब हैं, वह स्वयं भूमिपूजन/शिलान्यास करेंगे यह प्रत्येक भारतीय के लिए एक गौरव का क्षण होगा। प्रभु श्रीराम का आशीष हम सभी पर बना रहेगा। श्रीराम जय राम जय जय राम।

अयोध्या: 1527 से 1857 तक का संघर्ष

जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय श्रीराम जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। (फैजाबाद जिला गजेटियर पृष्ठ 173 के अनुसार बाबर 29 मार्च 1527 को अयोध्या पहुंचा था।) यह सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धि प्राप्त करने लगा। जलालशाह कट्टर मुसलमान था और उसको एक ही सनक थी, देश में हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा तो बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में मृत मुसलमानों को बलपूर्वक दफन करना शुरू किया और मीरबाकी के माध्यम से बाबर को उकसा कर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया।

इसके बाद दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूॢतयां तो सरयू में प्रवाहित कीं और खुद हिमालय की ओर तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारों पुजारियों के सर काट लिए गए। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे, अयोध्या पहुंचने पर रास्ते में उन्हेंं यह खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर एक लाख चैहत्तर हजार लोगों के साथ बाबर की सेना के चार लाख 50 हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े। इस बीच रामभक्तों ने सौगंध ले रखी थी कि रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे, जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े 17 दिनों तक जन्मभूमि की रक्षा के लिए घोर संग्राम करते हुए राजा महताब सिंह सहित लाखों वीरों ने इस धर्मयुद्ध में अपने जीवन के प्राणों की आहुति दे दी। इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखते हैं कि एक लाख 74000 हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।

इसके बाद हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है कि जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नींव मस्जिद बनवाने के लिए दी थी। जन्मभूमि के रक्षार्थ अगली मुहिम पंडित देवीदीन पाण्डेय ने आरंभ की। उन्होंने सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित कर आहृवान किया कि आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा। देवीदीन पाण्डेय के आह्वान पर दो दिन के भीतर 90 हजार क्षत्रिय इकट्ठा हो गए। दूर-दूर के गांवों से समूहों में इकट्ठा होकर जन्मभूमि के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया। शाही सेना से लगातार पांच दिनों तक युद्ध करते हुए रामभक्तों ने जन्मभूमि के रक्षार्थ बलिदान दिया। इसके 15 दिन बाद जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ 25 हजार सैनिकों के साथ मीर बाकी की विशाल और शस्त्रों से सज्जित सेना पर आक्रमण किया। यह युद्ध 10 दिन तक चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा। जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी जयराज कुमारी ने उनके संकल्प को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि के लिए मुगल सेना पर हमला बोला। इस दौरान कई दिनों तक छापामार युद्ध के बाद इन वीरांगनाओं ने राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। इसके बाद स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्त साधू-सन्यासियों और आम लोंगों को इकट्ठा करके मुगल सेना से संघर्ष किया।

रामजन्म भूमि के अगले संघर्ष का नेतृत्व स्वामी बलरामाचारी ने अपने हाथों में लिया। रामभक्तों की मजबूत सेना तैयार कर जन्मभूमि के उद्धारार्थ 20 बार आक्रमण किये। इन 20 हमलों में 15 बार स्वामी बलरामाचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर अधिकार अल्पकालिक था। इससे सम्पूर्ण अयोध्या अंचल में नवीन चेतना जागृत हुई, जिससे अकबर को मस्जिद के प्रांगण में मंदिर स्वीकारना पड़ा।

औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु रामदास महाराज के शिष्य बाबा वैष्णवदास ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों में अयोध्या के आस-पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया, जिनमें सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुंवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। सारे वीर यह जानते हुए भी कि उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं हैं, अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।

चिमटाधारी साधुओं की सेना ने मुगल सेना को मार भगाया

समर्थ गुरु रामदास जी के शिष्य बाबा वैष्णवदास के नेतृत्व में हजारों चिमटाधारी साधुओं की सेना ने मुगल सेना को मार भगाया। प्रतिक्रिया स्वरूप औरंगजेब ने जन्मभूमि पर पड़ी झोपड़ी भी नष्ट कर दी, जहां हिन्दू पूजा करते थे। इसके बाद 1680 में बाबा वैष्णवदास जी ने सिक्खों के गुरु गुरु गोविंद सिंह से युद्ध में सहयोग के लिए पत्र लिखा। संदेश पाकर गुरु गोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रह्मकुंड पर अपना डेरा डाला। ब्रह्मकुंड वही जगह है जहां आजकल गुरु गोविंद सिंह की स्मृति में सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णवदास एवं गुरु गोविंद सिंह जन्मभूमि की रक्षा के लिए एक साथ रणभूमि में कूद पड़े। इन वीरों के सुनियोजित हमलों से मुगलों की सेना के पांव उखड़ गये और सैय्यद हसन अली भी युद्ध में मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया। औरंगजेब ने 1664 में एक बार फिर श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण किया। इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग दस हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी, नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गई। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमें फेंककर चारों ओर दीवार उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप 'गज शहीदा' के नाम से प्रसिद्ध है और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है।

नवाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वीं में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व में बाबरी ढांचे पर पुन: पांच आक्रमण किये गये। अब लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नवाब ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ नमाज पढऩे और भजन करने की इजाजत दी, पर उसने हिन्दुओं को जमीन नहीं सौंपी।

फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा है कि इस संग्राम में बहुत ही भयंकर खून-खराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़-फोड़ कर बर्बाद कर डालीं, मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेडऩा शुरू किया। मगर, हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुंचाई। इस दौरान अयोध्या में प्रलय मचा हुआ था।

पुन: रामलला की स्थापना

इतिहासकार कनिंघम लिखते हैं कि ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू-मुस्लिम बलवा था। हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब के तोड़े गए अपने चबूतरे को फिर बनाया। चबूतरे पर तीन फीट खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया, जिसमें पुन: रामलला की स्थापना की गई।

देश में 1857 की क्रांति में बहादुर शाह जफर के समय में वहां बाबा रामचरणदास ने एक मौलवी अमीर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च 1858 को कुबेर टीला पर एक इमली के पेड़ में दोनों को एक साथ अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। जब अंग्रेजों ने यह देखा कि यह पेड़ भी देशभक्तों व रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप में विकसित हो रहा है तब उन्होंने इस पेड़ को कटवा दिया।

इसके बाद गोरक्षपीठ के गोपालनाथ महराज ने आन्दोलन शुरू किया। उन्हेंं ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार लिया। उनके लिए जोधपुर रियासत सहित कई क्षत्रिय रियासतों ने मुक्त करने के लिए दबाव बनाया, लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हेंं रिहा नहीं किया। तत्पश्चात नेपाल नरेश ने दबाव बनाया और गोरखा रेजिमेंट को हटाने की धमकी दी। इसके बाद इन्हेंं रिहा किया गया।

ब्रिटिश-महारानी विक्टोरिया ने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की जानकारी पाकर, बाबरी मस्जिद का नक्शा मंगवाया और प्रांगण के बीच रेखा खीचकर आदेश किया कि अब इस रेखा पर दीवार बनवा दी जाए। मुसलमान भीतर नमाज पढ़े और हिन्दू बाहर के चबूतरे पर पूजा-पाठ करें। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.