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Ex PM Chaudhary Charan Singh: किसानों के मसीहा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह नहीं कर सके थे संसद का सामना

Ex PM Chaudhary Charan Singh किसानों के हित की खातिर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले चौधरी चरण सिंह ने प्रदेश में भी राजनीति की लम्बी पारी खेली।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 02:01 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 02:04 PM (IST)
Ex PM Chaudhary Charan Singh: किसानों के मसीहा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह नहीं कर सके थे संसद का सामना
Ex PM Chaudhary Charan Singh: किसानों के मसीहा पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह नहीं कर सके थे संसद का सामना

लखनऊ, जेएनएन।Ex PM Chaudhary Charan Singh:भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा रहे चौधरी चरण की आज 33वीं पुण्यतिथि है। डॉ. राममनोहर लोहिया से जमीनी नेतागिरी का ककहरा सीखने वाले चौधरी चरण सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को अपना मुरीद बना लिया था। चौधरी चरण सिंह देश की आजादी के आंदोलन से लेकर इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में हमेशा ही आगे की कतार में खड़े नजर आए। 

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स्पष्टवादी नेता की छवि वाले चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा माने जाते थे। किसानों के हित की खातिर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में भी राजनीति की लम्बी पारी खेली। देश में आपातकाल के खात्मे और इंदिरा गांधी की राजनीति में वापसी के बीच चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने थे। उन्हेंं राजनीति के चौधरी साहब ऐसे ही नहीं कहा जाता है बल्कि अपने सिद्धांतों और मर्यादित व्यवहार के कारण उनकी चौधराहट चलती थी।

एक भी दिन नहीं किया संसद का सामना

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी। इसी का विरोध करने पर चौधरी चरण सिंह को भी जेल में बंद किया गया था। इंदिरा गांधी की इसी तानाशाही इसके बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा हारीं और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई। जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। किसान नेता चौधरी चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे। इसी बीच जनता पार्टी में कलह हो गई और मोरारजी की सरकार गिर गई। इसके बाद 1979 में कांग्रेस के ही समर्थन से चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन संसद में इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। इसी वह एक भी दिन संसद का सामना नहीं कर सके और इस्तीफा देना पड़ा।

जन्म हापुड़ में कर्मस्थली बागपत

चौधरी चरण सिंह जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ में हुआ था। चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से लॉ में डिग्री ली। 1928 में गाजियाबाद में वकालत करने लगे। इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने आजादी के आंदोलन से राजनीति में कदम रखा दिया था। पहली बार उन्होंने 1937 में उत्तर प्रदेश के छपरौली से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में छपरौली ने एक-छत्र राज देश के किसानों के दिल में बसकर किया। उन्होंने बागपत जिले की छपरौली विधानसभा सीट 1977 तक लगातार प्रतिनिधित्व किया। 1952, 1962 और 1967 की विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद उत्तर प्रदेश में गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री रहे। इसके साथ ही राजस्व, कानून तथा स्वास्थ्य मंत्रालय भी उनके पास रहा। वह संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में भी मंत्री रहे। इसके बाद 1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली।

उत्तर प्रदेश के सीएम भी रहे

चौधरी चरण सिंह समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया से बेहद प्रभावित थे। कांग्रेस छोडऩे के बाद डॉ. लोहिया का हाथ इनके ऊपर था। प्रदेश में 1966-67 में पहली बार कांग्रेस हारी। इसके बाद चौधरी चरण सिंह 1967 और 1970 में मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने खाद पर से बिक्री कर को हटाया था।

किसानों के हित वाली सोच

चौधरी चरण सिंह को जब-जब देश तथा प्रदेश की सत्ता में रहने का अवसर मिला उन्होनें किसानों और गरीबों के जीवन स्तर को उठाने वाली नीतियों को आगे बढ़ाया। उनके प्रयास से उपज के उचित दाम से लेकर, भू-सुधार, चकबंन्दी, भूराजस्व, भूमि-अधिग्रहण तथा जमींदारी उन्मूलन जैसे साहसी और क्रांतिकारी निर्णय हुए। किसानों की किस्मत बदलते हुए चौधरी चरण सिंह ने 1 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर डाला। इसी दिशा में उनका अगला क्रांतिकारी फैसला 1954 का उत्तर-प्रदेश भूमि संरक्षण कानून था।  

किसान परिवार से न होकर किसानों तथा गरीबों के हितों को वरीयता देने वाले चौधरी सिंह की राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह तथा पोता जयंत चौधरी आगे बढ़ा रहे हैं। अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में इनके दल के नेता काफी सक्रिय हैं। 


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