सिर्फ मनरेगा के भरोसे नहीं सुधरेंगे गांवों के हालात, अब तक चार लाख प्रवासी श्रमिकों के बने जॉब कार्ड
कोरोना आपदा काल में मनरेगा पर दोहरा दबाव बना है। प्रवासी मजदूरों के उत्तर प्रदेश आने के साथ ही यहां निष्क्रिय श्रमिकों ने भी रोजगार मांगना शुरू कर दिया है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। कोरोना संकट से प्रभावित प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा तात्कालिक उपचार जरूर है, लेकिन इसे गांवों के हालात सुधारने के लिए जीविकोर्पाजन का स्थायी साधन नहीं माना जा सकता है। उत्तर प्रदेश में अन्य राज्यों से लगभग 25 लाख श्रमिकों के आने का अनुमान है। ग्राम पंचायतों में पंजीकृत 9,48,787 प्रवासी मजदूरों में से अब तक 4,00,002 के ही जॉब कार्ड बने हैं। दो जिलों गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद को छोड़कर शेष 73 जिलों के 43,564 गांवों में अभी तक 38.77 लाख श्रमिकों को ही रोजगार उपलब्ध कराया गया है, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 50 लाख की घोषणा की है।
इस कोरोना आपदा काल में मनरेगा पर दोहरा दबाव बना है। प्रवासी मजदूरों के उत्तर प्रदेश आने के साथ ही यहां निष्क्रिय श्रमिकों ने भी रोजगार मांगना शुरू कर दिया है। ऐसे में नए जॉब कार्ड बनाने के साथ पुराने के नवीनीकरण का दबाव भी बढ़ा है। प्रदेश के ग्राम्य विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह ने बताया कि सभी प्रवासी श्रमिकों को मांग के अनुसार जॉब कार्ड दिए जाएंगे। मनरेगा के तहत श्रमिकों को रोजगार देने में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है।
परांपरगत कार्यों के भरोसे श्रमिकों का भला नहीं होगा : केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित ने कहा कि मनरेगा में परांपरगत कार्यों के भरोसे श्रमिकों का भला नहीं होगा। जब तब कृषि व कुटीर उद्योगों को मनरेगा से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक गांवों का भला होने वाला नहीं है।
रोजगार अवसर सृजन का संकट : मनरेगा के तहत रोजगार के अवसर सृजित करने का संकट भी बना है। अभी प्रदेश में मानसून से पूर्व जलसंरक्षण, बाढ़ नियंत्रण, जल स्रोतों और नदियों का जीर्णोद्धार, भूमि समतलीकरण, सिंचाई व वृक्षारोपण के साथ विकास कार्यो में ही मनरेगा श्रमिक लगे हैं। विभिन्न विभागों से रोजगार के अवसर तलाशने को कहा गया है।
औसत मानव दिवस भी बढ़ाने होंगे : मनरेगा के तहत सौ मानव दिवस सृजित करने की व्यवस्था है, लेकिन अभी तक प्रदेश में औसतन 45 मानव दिवस का सृजन हो पाता था। प्रत्येक श्रमिक को प्रतिदिन 201 रुपये मानदेय दिया जाता है। ऐसी स्थिति में श्रमिकों को आर्थिक संबल प्रदान कर पाना आसान नहीं है। हालांकि लॉकडाउन के दौरान सरकार की गंभीरता के चलते मानव दिवस का औसत बढ़ता दिख रहा है लेकिन बढ़कर भी यह लगभग 80 तक हो पाना ही संभव है।