'ह' से हिंदू, 'म' से मुसलमान हम यानी हिंदुस्तान..दो बुजुर्ग बने दोस्ती की मिसाल
रिश्ता 82 के बकरीदी और 85 के कृष्णदत्त समझा रहे हिंदुस्तान का फलसफा।
अमेठी [दिलीप सिंह]। भजन गाने कभी मंदिर में जब रसखान आते हैं, मंजर देखने ऐसा वहां भगवान आते हैं। फिरकापरस्ती उस गांव को छू नहीं सकती, बनाने राम की मूरत जहां रहमान आते हैं..।
अमेठी, उप्र के पीढ़ी गांव में ऐसा मंजर तब सजता है जब लंबी सफेद दाढ़ी और सिर पर इस्लामी टोपी पहने बकरीदी शिव मंदिर में आते हैं। इस मंदिर का निर्माण उन्होंने बालसखा कृष्णदत्त तिवारी के संग मिलकर कराया है। इसलिए चाहे सावन का आयोजन हो या फिर महाशिवरात्रि, बकरीदी मदरसे से छुट्टी लेकर यहां शिव की सेवा में रमे नजर आते हैं। ऐसे किसी भी अवसर पर अमेठी के इस रसखान को यहां शिव का गुणगान करते देखा जा सकता है। कृष्णदत्त भी बकरीदी के साथ ईद आदि त्योहारों की खुशी साझा करते हैं। यह दोस्ती आज की नहीं बल्कि 75 साल पुरानी है।
82 साल के बकरीदी और 85 के कृष्णदत्त की मित्रता इलाके में मिसाल है। ये बालसखा साझा संस्कृति की उस विरासत की झलक देते हैं, जिस पर देश टिका हुआ है। श्रद्धालुओं के सहयोग और इस वयोवृद्ध जोड़ी की मेहनत से गांव के प्राचीन तपेश्वरनाथ स्थान पर आज भव्य मंदिर खड़ा है। कृष्णदत्त इसकी देखभाल करते हैं। खास मौकों पर वह अनिवार्य रूप से मौजूद होते हैं।
पुजारी कृष्णदत्त तिवारी के मुताबिक, मैं और बकरीदी बचपन के साथी हैं। हम दोनों की मेहनत और गांव के श्रद्धालुओं के सहयोग से तपेश्वरनाथ स्थान पर भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है।
मदरसा शिक्षक बकरीदी का कहना है कि ईश्वर एक है। हर कोई उसे अपने-अपने तरीके से मानता-पूजता है। हमने वही किया जो ऊपर वाले ने हमसे कराया। तपेश्वरनाथ धाम आकर मन को बहुत सुकून मिलता है।
हम हैं तो हिंदुस्तान है..
सीएए के नाम पर नफरत की दीवार खड़ी की जा रही है। बकरीदी और कृष्णदत्त इस पर हो रही हिंसा को उग्रवाद बताते हैं। इसे फिरकापरस्त नेताओं की साजिश बताते हुए बहकावे में न आने को कहते हैं। दोनों धर्म और दीन की पहली सीढ़ी मुहब्बत को बताते हैं। अपनी दोस्ती पर दोनों कह पड़ते हैं- हम हैं तो हिंदुस्तान है..। हम का मतलब समझाने लगते हैं- ह से हिंदू, म से मुसलमान। ह पहले है यानी हिंदू बड़े भाई और म बाद में मतलब मुस्लिम छोटे भाई की भूमिका में हैं। दोनों का मेल ही हिंदुस्तान को दुनिया से अलग बनाता है।