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नैमिषारण्‍य में डंका बजते ही शुरू हुई 84 कोसी परिक्रमा, 84 लाख योनियों से मिलती है मुक्ति

ललिता मंदिर तिराहे पर परिक्रमार्थियों पर हुई पुष्प वर्षा। नैमिष से पहले पड़ाव कोरौना के लिए निकले श्रद्धालु।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 11:22 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 11:22 AM (IST)
नैमिषारण्‍य में डंका बजते ही शुरू हुई 84 कोसी परिक्रमा, 84 लाख योनियों से मिलती है मुक्ति
नैमिषारण्‍य में डंका बजते ही शुरू हुई 84 कोसी परिक्रमा, 84 लाख योनियों से मिलती है मुक्ति

सीतापुर, जेएनएन। नैमिषारण्य में सोमवार तड़के महंत भरत दास के डंका बजाते ही 84 कोसी परिक्रमा शुरू हुई। सुबह के चार बजते ही नैमिषारण्य में चहल-पहल दिखने लगी थी। पहला आश्रम में महंत बाबा भरतदास के डंका बजाते ही चौरासी कोसीय परिक्रमा पथ रामनाम के जयघोष से गूंज उठा। आश्रम में डंका बजाने के बाद रथ पर सवार महंत और हाथी-घोड़ों पर सवार संतों ने डंका बजाते हुए पूरे नैमिष का भ्रमण किया। डंके की आवाज सुनते ही धर्मशाला, आश्रमों में, मंदिरों में ओर सड़कों के किनारे विश्राम कर रहे परिक्रमार्थी पहले पड़ाव कोरौना के लिए निकल पड़े। संतों-महंतों की अगुवाई में सिर पर वे हाथो में सामान की गठरी उठाये श्रद्धालुओं का कारवां परिक्रमा पथ पर बढ़ चला।

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मेला प्रशासन ने इस बार श्रद्धालुओं के स्वागत की नई परंपरा की शुरूआत की है। ललिता मंदिर तिराहे पर परिक्रमार्थियों पर पुष्प वर्षा की गई। रास्ते में भी जगह-जगह श्रद्धालुओं का स्वागत किया गया। नैमिष से कोरौना परिक्रमा मार्ग पर पडऩे वाले गांव के लोग भी परिक्रमार्थियों के स्वागत-सत्कार में लगे रहे। 84 कोसी परिक्रमा में पहली बार हाईटेक रथ का इस्तेमाल हो रहा है। पहले महंत पालकी पर चलते थे।

देश के दूर प्रांतों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालु भी परिक्रमा में शामिल हुए। रास्ते की तमाम मुश्किलों से बेपरवाह श्रद्धालुओं का रामादल रामनाम के सहारे परिक्रमा के लिए उत्साहित नजर आया। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी में आस्था का अलग ही रंग दिखाई दिया। इससे पहले ललिता मंदिर चौराहे पर एसडीएम राजीव पांडेय, तहसील दार सीके त्रिपाठी, कानूनगो गिरिजा यादव, तीर्थ पुजारी राजनारायण पांडेय, पालिका अध्यक्ष सरला भार्गव ने संतों व श्रद्धालुओं का स्वागत किया, उन पर पुष्प वर्षा की गई।

दूर प्रांतों व नेपाल से आते हैं परिक्रमार्थी

चौरासी कोसी परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। मान्यता है कि ये परिक्रमा 84 लाख योनियों से मुक्ति देती है। नैमिष में प्रभु श्रीराम ने अयोध्यावासियों के साथ परिक्रमा की थी। इसलिए परिक्रमार्थियों के समूह को रामादल कहा जाता है। आस्था के महापर्व में डुबकी लगाने के लिए राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात आदि प्रांतों सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी परिक्रमार्थी आए हैं। ये सभी परिक्रमार्थी पंद्रह दिनों तक नैमिषारण्य क्षेत्र की परिक्रमा कर होली से एक दिन पहले वापस लौटेंगे।

सीतापुर में सात व हरदोई में चार पड़ाव

चौरासी कोसी परिक्रमा के सात पड़ाव सीतापुर जिले के कोरौना, देवगवां, मड़रूआ, जरिगवां, नैमिषारण्य, कोल्हुआ बरेठी व मिश्रिख हैं। इसी तरह हरदोई जिले में हरैया, नगवा कोथावां, गिरधरपुर उमरारी व साक्षी गोपालपुर पड़ाव स्थल हैं।

मिश्रिख में होती है पंच कोसी परिक्रमा

परिक्रमा के दस पड़ाव पार कर परिक्रमार्थियों का कारवां महर्षि दधीचि की नगरी मिश्रिख पहुंचता है। यहां श्रद्धालु पांच दिन ठहरकर मिश्रिख के आसपास पंच कोसी परिक्रमा करते हैं। पंच कोसी परिक्रमा पथ पर पडऩे वाले मंदिरों में दर्शन पूजन के साथ ही दधीचि कुंड में स्नान व आचमन करते हैं।


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