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Hindi Diwas 2019: हिंदी में समझा रहे विज्ञान की गुत्थियां, इसमें छिपा है जानकारियों का खजाना Lucknow News

हिंदी से शान और पहचान है हमारी। चिकित्सा और विज्ञान की ग्राह्य भाषा भी है हिंदी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 06:25 PM (IST)Updated: Sat, 14 Sep 2019 07:50 AM (IST)
Hindi Diwas 2019: हिंदी में समझा रहे विज्ञान की गुत्थियां, इसमें छिपा है जानकारियों का खजाना Lucknow News
Hindi Diwas 2019: हिंदी में समझा रहे विज्ञान की गुत्थियां, इसमें छिपा है जानकारियों का खजाना Lucknow News

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। सरल और सहज हिंदी संवाद का सुगम माध्यम है। ये महज भाषा नहीं, हिंदुस्तान की गौरव गाथा है। देश के कण-कण में बसी एक कालजयी परिभाषा है। फारसी, अरबी और उर्दू से लेकर आधुनिक अंग्रेजी को भी इसने आत्मीयता से अपनाया है। शहर में कई ऐसे लोग हैं, जो निज भाषा में काम करने के साथ ही जन-जन तक जानकारियां पहुंचा रहे हैं। चिकित्सा और विज्ञान की ग्राह्य भाषा के रूप में भी ङ्क्षहदी का अपनाया जा रहा है।

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हिंदी को चिकित्सा जगत में मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष

रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने 1991 में एमडी का शोध पत्र हिंदी में लिखने की ठानी। एक साल के संघर्ष के बाद विधानसभा में विशेष प्रस्ताव पारित कर अनुमति दी गई। हिंदी को चिकित्सा जगत में मान्यता दिलाने की यह कोशिश आगे भी जारी रही। जनवरी 1992 में वाराणसी में आयोजित कॉन्फ्रेंस में हिंदी में विश्व का पहला शोध पत्र प्रस्तुत किया। एनएमओ जर्नल में हिंदी में पहला संपादकीय लिखने का भी श्रेय डॉ.सूर्यकांत को जाता है। डॉ. सूर्यकांत ने हिंदी में कई पुस्तकें भी लिखीं। उनके इन प्रयासों के चलते उन्हें गत वर्ष मॉरीशस में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में विदेश विभाग द्वारा भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर भेजा गया। हिंदी संस्थान द्वारा 2013 में विश्वविद्यालय स्तरीय सम्मान व इलाहाबाद की संस्था द्वारा तीन बार सम्मानित किया गया है। वह बताते हैं कि उनके विभाग में डॉक्टर मरीज को दवा में दवा व उसकी डोज लिखते हैं।

प्रोफेशनल कोर्स में हिंदी को मिले बढ़ावा

पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक विभाग, केजीएमयू के हेड डॉ. अजय सिंह की अब तक तीन किताबें ङ्क्षहदी में आ चुकी हैं। इनमें से ऑस्टियोपोरोसिस पर किताब ङ्क्षहदी संस्थान से प्रकाशित हुई। अन्य किताबें उन्नत जीवनरक्षक बाल चिकित्सा और बच्चों की सुरक्षा संबंधी विशेष जानकारियां तथा उपचार हैं। वह आजकल चौथी किताब जन्मजात विकृतियां : हमारे सुझाव लिख रहे हैं। डॉ. अजय के अनुसार प्रोफेशनल कोर्स में ङ्क्षहदी को और बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। ये उन विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी होगा जो ङ्क्षहदी बैकग्राउंड से आते हैं। साथ ही चिकित्सकीय जानकारियां और सुझाव हिंदी में जितना अधिक दिए जाएं उतना उपयोगी होगा।

विज्ञान की सरल, सुगम और सहज व्याख्या

डॉ. मधुस दन उपाध्याय ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञान जागरूकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार प्रसार तथा सतत् विकास के एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट के समन्वयक की भूमिका निभा रहे हैं। स्टीफन हॉकिन्स के जीवन वृत्त और शोध कर्म पर एक लघु पुस्तिका प्रकाशित की, जिसका नेपाली तथा असमिया भाषा में हिंदी से अनुवाद भी हुआ है। पर्यावरणीय चेतना, वन्य जीव संरक्षण, नदी चेतना आदि से संबंधित कविताएं और लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। हिंदी में विज्ञान लेखन के लिए कई पुरस्कार भी मिले। आणविक जीव विज्ञान में पीएचडी करने वाले डॉ. मधुसूदन विज्ञान संबंधी विषयों जैव प्रौद्योगिकी, जीन अभियांत्रिकी, अंतरिक्ष विज्ञान आदि की सुगम, सरल और सहज व्याख्या में यकीन रखते हैं। अब तक विज्ञान आधारित कई पुस्तकें आ चुकी हैंए जिनमें आठ हिंदी में हैं। 15 शोध पत्र हिंदी में प्रकाशित हो चुके हैं। सोशल मीडिया पर हिंदी के जरिए विज्ञान जागरूकता में विशेष सक्रियता है। लुप्त होते परंपरागत ज्ञान और प्राचीन शास्त्रों में उपलब्ध वैज्ञानिक तथ्यों को जनसामान्य निज भाषा में पहुंचाने का प्रयास खास है।

हिंदी में चिकित्सकीय जानकारियां

विवेकानंद पॉली क्लीनिक एंड इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में चिकित्सकीय परामर्शदाता डॉ. एके अग्रवाल सरल ङ्क्षहदी में चिकित्सकीय जानकारियां देने में यकीन रखते हैं। डॉ. अग्रवाल फिजिकल मेडिसिन एवं रिहैबिलिटेशन, केजीएमयू के पूर्व विभागाध्यक्ष भी रहे हैं। विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में हिंदी में लेख और पुस्तकें आदि लिखने के लिए कार्यशाला का आयोजन करते रहे हैं। खुद भी कई किताबें लिखीं हैं, जिनमें पांच पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें पोलियो : मार्ग दर्शिका, कुष्ठ रोग : मार्ग दर्शिका, पेराप्लीजिया के रोगी में गुर्दे, मूत्रशय तथा मूत्रवाहिनी के रोगों से बचाव, प्रोस्थेटिक एवं आर्थोटिक और प्रेरक लघु कथाएं शामिल हैं। मार्च 2018 में पोस्ट पोलियो सिंड्रोम पर केंद्रित किताब कल के लिए दिव्यांगों की संपूर्ण पत्रिका 'रोशनी की मीनारें' आई। डॉ. अग्रवाल बताते हैं, मां से हिंदी में लिखने और काम की प्रेरणा मिली।

हिंदी में सरलता से समझाते विज्ञान की गुत्थियां

डॉ. चंद्र मोहन नौटियाल विज्ञान की जटिलतम गुत्थियों को सरलता से समझाने में माहिर हैं। शोध के साथ- साथ बीरबल साहनी पुरावनस्पति संस्थान में स्वयं को राजभाषा के कार्य से भी जोड़े रखा था। आज भी हिंदी माध्यम से विज्ञान संचार में उतनी ही ऊर्जा के साथ जुड़े हुए हैं, हालांकि कार्यक्षेत्र अब और भी विस्तृत हो गया है। पिछले एक वर्ष में मेरठ, आगरा, नोएडा, लखनऊ आदि के अतिरिक्त राजस्थान, गुजरात, अरुणाचल, झारखंड एवं मध्यप्रदेश के तमाम शहरों और गांवों में भी विज्ञान विषयक व्याख्यान हिंदी में दिए हैं। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन एवं अन्य चैनलों से भी बहुत से विज्ञान विषयों तथा चंद्रयान-2 आदि पर प्रसारण किया है। हाल ही में डॉ. नौटियाल द्वारा संयुक्त रूप में अनुवादित पुस्तक भारत को बदलता भारतीय विज्ञान को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। डॉ. नौटियाल खास तौर पर उच्च अध्ययन तथा शोध संस्थानों में भी हिंदी में व्याख्यान देते हैं। वर्ष के लगभग 60 व्याख्यानों में दो- तिहाई हिंदी में ही होते हैं।

हिंदी के साथ अंग्रेजी के भी धाराप्रवाह वक्ता डॉ. नौटियाल का मानना है कि विज्ञान को देश मे आम जन तक पहुंचाना है तो यह हिंदी के माध्यम से ही होगा। डॉ. नौटियाल भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली में परामर्शदाता हैं एवं भारतीय भाषा प्रतिष्ठान राष्ट्रीय परिषद से उपाध्यक्ष के रूप में तथा विज्ञान परिषद, प्रयाग के वाह्य अन्तरंगी के रूप में भी जुड़े हुए हैं। 1997 और 2013 में विज्ञान परिषद, प्रयाग ने विज्ञान वाचस्पति तथा शताब्दी सम्मान दिए। 2017 में हिंदी साहित्य विभूषण का सम्मान मिला।


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